प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में घोषणा की थी कि महात्मा गांधी के 150वीं जयंती के अवसर पर भारत खुले में शौच से मुक्त हो जाएगा. लेकिन दिल्ली तक में रहने वाले तमाम गरीबों के पास अब तक शौचालय की सुविधा नहीं पहुंची है.
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती स्वच्छ भारत दिवस के तौर पर मनाई जाती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी की 150वीं जयंती पर भारत को "खुले में शौच मुक्त" घोषित करना चाहते थे. लेकिन इस दिशा में हुई भारी प्रगति के बावजूद इसके सौ फीसदी सफल होने के साहसिक दावे को लेकर संदेह बना हुआ है. विशेषज्ञ कहते हैं कि अभी भी देश के लाखों लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है. इनमें से कुछ लाख लोग ऐसे भी हैं जिनके घर में शौचालय बन तो गया है लेकिन पुरानी आदत की वजह से वे बाहर में ही शौच करने जाते हैं.
2014 में सत्ता में आने के पहले ही साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सभी के लिए शौचालय' उपलब्ध कराने की घोषणा की थी. उन्होंने लाल किले से यह ऐलान किया था कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर भारत को खुले में शौच से मुक्त कर दिया जाएगा. इसके बाद से शौचालय निर्माण में खूब तेजी आई. सरकार ने पिछले पांच साल में लगभग 10 करोड़ शौचालय बनाने का दावा किया है. इसके लिए मोदी मोदी सरकार को विदेशों से भी पुरस्कार मिले. इसमें बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन से पिछले सप्ताह न्यूयॉर्क में मिला पुरस्कार भी शामिल है.
इस साल मार्च महीने में अधिकारियों ने बताया था कि अब 5 करोड़ लोग ही खुले में शौच करने जाते हैं. 2014 में ऐसे लोगों की तादाद 55 करोड़ थी. सरकार ने दावा किया कि करीब 93.1 प्रतिशत लोगों के घरों में शौचालय की सुविधा हो चुकी है. हालांकि कई विशेषज्ञ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के आंकड़ों का हवाला देते हुए इन दावों पर संदेह जताते हैं.
रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैशनेट इकोनॉमिक्स (आरआईसीई) की संगीता व्यास कहती हैं, "घरों में शौचालय की उपलब्धता 35 प्रतिशत से बढ़कर करीब 70 प्रतिशत हो गई है. इससे खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है. लेकिन दिसंबर 2018 में हमने अनुमान लगाया कि बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के आधी आबादी खुले में शौच जाती है." व्यास का मानना है कि इस स्थिति में अब तक भी ज्यादा बदलाव आने की कम ही संभावना है और शायद ही खुले में शौच जाने वालों की संख्या में और कमी आई है. इन चार राज्यों की कुल जनसंख्या ही 45 करोड़ से ज्यादा है. न्यूज वेरिफिकेशन वेबसाइट फैक्टचेकर ने देश के पांच राज्यों में की अपनी खोजी पत्रकारिता में पाया कि कई जगहों पर आधे अधूरे बने टॉयलेट थे और कई दूसरी जगहों पर टॉयलेट बने होने के बावजूद पानी उपलब्ध ना होने के कारण उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा था.
विडम्बना देखिए
देश के पिछड़े राज्यों में ही नहीं राजधानी नई दिल्ली भी अब तक खुले में शौच मुक्त नहीं कही जा सकती. हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास ही रेलवे ट्रैक के पास सुबह सुबह खुले में शौच करके आई एक महिला विजया बताती है, "हम जहां रहते हैं, वहां शौचालय नहीं है. हमें खुले में ही जाना पड़ता है. इससे कुछ ही दूर बारापुल्ला में गरीबों की बस्ती में रहने वाली तीन बच्चों की मां कावेरी रहती है. जीवनयापन के लिए दूसरों के घरों में घरेलू नौकरानी का काम करने वाली कावेरी कहती है, "हम यहां कई सालों से रह रहे हैं लेकिन बार-बार कहने के बावजूद किसी ने शौचालय का निर्माण नहीं करवाया है. हम मजबूरी में खुले में शौच करने जाते हैं. यह सुरक्षित भी नहीं हैं लेकिन करें तो क्या करें."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलग अलग रूप
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहनावे की वजह से भी चर्चा में रहते हैं. देश में विभिन्न जगहों पर भ्रमण के दौरान उनका पहनावा ऐसा होता है जो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है. एक नजर उनके पहनावे पर.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
पारंपरिक मराठी पगड़ी पहने नरेंद्र मोदी
यह तस्वीर उस समय की है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. इसमें वे पारंपरिक मराठी पगड़ी पहने हुए नजर आ रहे हैं. नरेंद्र मोदी वर्ष 2006 में अहमदाबाद में छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पर आधारित नाटक 'जाणता राजा' कार्यक्रम का उद्घाटन करने पहुंचे थे. यह कार्यक्रम 6 दिनों तक हुआ था, जिसमें हाथी, घोड़ा, ऊंट के साथ 200 से ज्यादा कलाकारों ने अपना प्रदर्शन किया था.
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पगड़ी में नरेंद्र मोदी
तस्वीर वर्ष 2007 की है. इस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. गांधीनगर में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के साथ बैठक के दौरान नरेंद्र मोदी ने यह पगड़ी पहन रखी थी.
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केसरिया पगड़ी पहने हुए नरेंद्र मोदी
तस्वीर वर्ष 2009 की है, जब 24 जून को 'जग्गनाथ रथ यात्रा' के मौके पर अहमदाबाद में आयोजित रथ यात्रा जुलूस के दौरान नरेंद्र मोदी केसरिया पगड़ी पहने हुए नजर आए. इस मौके पर भगवान जग्गनाथ के मंदिर से भगवान जग्गनाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की शोभायात्रा निकाली गई थी.
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सफेद पगड़ी में नरेंद्र मोदी
तस्वीर वर्ष 2011 की है. इस समय नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद स्थित गुजरात विश्वविद्यालय कन्वेंशन सेंटर में उपवास की शुरुआत की थी. यह उपवास 17 सितंबर को खुद को प्रधानमंत्री पद के सुयोग्य उम्मीदवार के रूप में खुद को दिखाने के लिए की गई थी. इस दौरान स्वामीनारायण मंदिर के पुजारी ने उनके माथे पर तिलक लगाया था.
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असम में पहने जाने वाली टोपी
यह तस्वीर 30 अप्रैल 2010 की है. नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. गुजरात के स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर अहमदाबाद में अतिथियों से मुखातिब होते वक्त उन्होंने पूर्वोत्तर भारत स्थित राज्य असम में पहनी जाने वाली टोपी पहन रखी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
लाल और पीले रंग की पगड़ी
नरेंद्र मोदी को पगड़ी से खास लगाव है और यह खासियत उनके ड्रेसिंग सेंस को अन्य नेताओं से अलग बनाती है. यह तस्वीर है 15 अगस्त 2014 की है. प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार देश को लाल किले से संबोधित कर रहे नरेंद्र मोदी ने लाल और पीले रंग की पगड़ी पहनी थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Das
रंगीन पगड़ी
यह तस्वीर है 15 अगस्त 2019 की. देश को लाल किले से संबोधित कर रहे मोदी ने कुर्ता-पायजामा तथा रंगीन पगड़ी पहन रखी था. इस दौरान अपने 90 मिनट से अधिक के संबोधन में तीन तलाक, स्वच्छता, जल का महत्व, जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दों पर बात की. उनके भाषण के साथ-साथ पगड़ी भी चर्चा का विषय बनी रही.
तस्वीर: imago images/Hindustan Times
केदारनाथ में नरेंद्र मोदी
लोकसभा चुनाव 2019 का मतदान संपन्न होने पर नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ पहुंच भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी. यहां उन्होंने करीब 17 घंटा बिताए थे. पूजा और गुफा में ध्यान के बाद मोदी ने ट्वीट कर लिखा था, 'शानदार, शांत और आध्यात्मिक. हिमालय में बहुत कुछ खास है. पहाड़ों पर लौटना हमेशा से ही एक सुखद अनुभव रहा है.'
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ध्यान करते मोदी
तस्वीर 18 मई 2019 की है. लोकसभा चुनाव में मतदान संपन्न होने के बाद नरेंद्र मोदी उत्तराखंड के केदारनाथ पहुंचे थे. यहां उन्होंने 'ध्यान कुटिया' में ध्यान लगाया था. इसके बाद से ही यह कुटिया आकर्षण का केंद्र बन गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर ही इक गुफा का निर्माण किया गया था. इसे रूद्र गुफा के नाम से भी जाना जाता है. 12,250 फीट की ऊंचाई पर बने इस गुफा में श्रद्धालु ध्यान करते हैं.
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जिन शौचालयों का निर्माण किया गया है उनमें से कई का उपयोग नहीं किया जा रहा है. किसी में दरवाजा नहीं है तो किसी का इस्तेमाल सामान रखने और दूसरे कामों के लिए किया जा रहा है. दो बच्चों की मां 26 वर्षीय रेखा दिल्ली के बवाना इलाके में रहती हैं. उन्होंने बताया, "मेरे घर के नजदीक जो शौचालय बना है, वह किसी काम का नहीं है. एक दूसरा शौचालय है जहां तीन रुपये लिए जाते हैं. मैं और मेरे पति किसी तरह महीने में 10 से 12 हजार रुपये कमा पाते हैं. हम हर बार तीन रुपया देने में सक्षम नहीं हैं. झाड़ियों में जाना हमें अच्छा नहीं लगता है. कई ऐसे पुरुष होते हैं जो ताकझांक करते हैं लेकिन हम मजबूर हैं. हमें अपनी इज्जत प्यारी है. लेकिन जाएं तो कहां जाएं."
सांस्कृतिक बाधाएं, पुरानी आदतें या स्वच्छता को लेकर ज्ञान की कमी भी शौचालय के इस्तेमाल में बाधक बन रही है. जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट संतोष मेहरोत्रा कहते हैं, "यदि आप ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से चली आ रही आदतों को बदलने जा रहे हैं तो सबसे पहले आपको उनका व्यवहार बदलने पर ध्यान देना होगा. लक्ष्य को पाने के लिए 'घरों में शौचालय' की संख्या से ही यह मान लिया गया है कि गांव 'खुले में शौच से मुक्त' हो गया है. जबकि ऐसा नहीं है."
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 1 अरब से भी ज्यादा लोग रहते हैं. इस विशाल देश की कुछ खास बातें जानिए. हमारा दावा है कि इन्हें जानने के बाद आपको भारत से एक बार फिर से प्यार हो जाएगा.
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शांतिप्रिय
भारत ने कभी किसी देश पर हमला नहीं किया.
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दिमागी कसरत
शतरंज की खोज भारत में हुई थी.
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अध्ययनशील
अल्जेब्रा, ट्रिग्नोमेट्री और कैलकुलस का अध्ययन भारत में शुरू हुआ.
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देता ना दश्मलव भारत तो
दशमलव की खोज भारत में 100 ईसा पूर्व में हुई.
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निर्माता
ग्रेनाइट से बनी दुनिया की पहली इमारत तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर है.
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खेल खेल में
सांप-सीढ़ी खेल की खोज 13वीं सदी में संत ज्ञानदेव ने की थी.
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ऊंचाइयां
दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के चैल में है.
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विशालकाय
दुनिया में सबसे ज्यादा डाकखाने भारत में हैं.
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पहली यूनिवर्सिटी
दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी 700 ईसा पूर्व भारत के तक्षशिला में बनी.
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हर धर्म से प्यार
भारत में तीन लाख मस्जिदें हैं, दुनिया के किसी भी मुल्क से ज्यादा.