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मैर्कैल यानी 'नई हिटलर' !

१८ अप्रैल २०१३

यूरो संकट पुरानी भावनाओं को उभार रहा है. संकट का सामना कर रहे देशों में जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल को अक्सर नाजी और यहां तक कि नए हिटलर के रूप में पेश किया जाता है. क्या यूरोप की राजनीतिक संस्कृति विफल हो गई है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

शुरुआत ग्रीस में हुई. तीन साल पहले क्रुद्ध एथेंस निवासी पहली बार ऐसी तख्तियां लेकर सड़कों पर उतरे जिनमें चांसलर मैर्केल को कुख्यात नाजी टुकड़ी एसएस के यूनिफॉर्म में दिखाया गया था. तब से नाजियों के साथ मैर्केल की तुलना का अंत नहीं हो रहा है. बहुत से प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यूरो संकट में मैर्केल की सख्त बचत नीति यूरोप में जर्मनी की ताकत को पुख्ता कर रही है. यह उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के कब्जे की याद दिलाती है.

उस समय जर्मनों के हाथों लाखों ग्रीसवासियों की जान गई थी. 1944 में डिसिटोमो गांव की तरह, जहां जर्मन वेयरमाख्त सैनिकों ने लड़कियों और औरतों का बलात्कार किया, गांव में बचे सभी लोगों को गोली मार दी. करीब 70 साल बाद ग्रीस के बहुत से लोग अपने को फिर से पीड़ित समझ रहे हैं. देश में आत्महत्या के मामलों में एक तिहाई वृद्धि हुई है, हर दूसरे युवा के पास रोजगार नहीं है. आबादी का बड़ा हिस्सा असहाय होकर देख रहा है कि संकट उनसे सारी संभावनाएं छीन रहा है. प्रदर्शनकारियों के अलावा ग्रीक मीडिया भी जर्मनों पर हमले पर उतर आई है.

जिंदा है नाजी जर्मनी

जब कभी संकट के बादल मंडराते हैं तो नाजी आरोपों का डंडा यूरोप के दूसरे हिस्सों में भी घुमाया जाने लगता है. जैसे साइप्रस में, जिस पर जर्मन कब्जे का असर नहीं हुआ था. वहां जब यह डर पैदा हुआ कि बैंकों को बचाने के लिए छोटे खाताधारियों को भी योगदान देना होगा, तो प्रदर्शनकारी मैर्केल के हिटलर की मूंछों वाले मुखौटे लेकर सड़कों पर दिखाई दिए. तख्तियों पर लिखा था, "नाजी जर्मनी जिंदा है." और स्पेन में हाल में अर्थशास्त्र के एक बड़े प्रोफेसर ने देश के प्रमुख दैनिक में लिखा, "हिटलर की तरह , मैर्केल ने बाकी यूरोप के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया है, इस बार आर्थिक निवासस्थान के लिए." अखबार ने बाद में भले ही लेख वापस ले लिया हो, माहौल बिगड़ा हुआ है.

इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि नाजी आरोप ऐतिहासिक रूप से गलत हैं. लंबे समय तक यूरोपीय संसद के सदस्य रहे ओलाफ श्वेंके (एसपीडी) कहते हैं, "पूरी तरह से अनुचित, लेकिन मनोवैज्ञानिक तौर पर कुछ हद तक समझ में आने लायक." वे अब यूरोपीय सांस्कृतिक न्यास की जर्मन शाखा के अध्यक्ष हैं और नाजी हमलों का शिकार हुए देशों की साझा स्मृति के बारे में कहते हैं, "जब कभी भी कोई चुनौती आती है, इस तरह से अनुचित प्रतिक्रिया होती है."

राजनीतिक संस्कृति

ओलाफ श्वेंके जर्मन सरकार की आलोचना करते हुए कहते हैं, "पिछले महीनों में यह साफ किया जाना चाहिए था कि मदद की कार्रवाई यूरोपीय एकजुटता का कदम है, न कि बेहतर ज्ञान का." वे कहते हैं कि यह रवैया कि "हम सही कर रहे हैं, तुम भी वही करो जो हम कर रहे हैं," गलत रास्ता है.

खुद अपने देश की आलोचना करने वाले ग्रीक लेखक पेट्रोस मार्कारिस ने जर्मन दैनिक ज्युड डॉयटे साइटुंग में लिखा है, "जर्मनों को इसीलिए, और सिर्फ ग्रीस में ही नहीं, हेडमास्टर के रूप में देखा जाता है." वे कहते हैं कि बाल्कन के तकरीबन सभी देश खुद को निर्दोष शिकार समझते हैं, जबकि जर्मनों को अपनी उपलब्धियों पर नाज है और वे चाहते हैं कि बाकी यूरोपीय, खासकर दक्षिण यूरोप के देश उनकी नकल करें. मार्कारिस का कहना है कि वे इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि "दक्षिण की एकदम अलग संस्कृति है."

जर्मन दैनिक बिल्ड जर्मनों को पीड़ित के रूप में दिखाता है और कहता है कि वे यूरोप के खजांची हैं. यूरोपीय विदेश संबंध परिषद की बर्लिन शाखा की प्रमुख उलरीके गुरो शिकायत करती हैं, "पीड़ित वाली बहस खुद को नेक ठहराने वाली है. उसमें जर्मन जिम्मेदारी का कोई संकेत नहीं दिखता." गुरो कहती हैं कि सीडीयू के संसदीय नेता फोल्कर काउडर के कहे शब्द कि यूरोप जर्मन बोलता है, भुलाए नहीं गए हैं. उन्हें एक दूसरे के साथ सम्मानजनक और संवेदनशील बर्ताव का अभाव दिखता है. "यह दिखाता है कि 50 साल के साथ में चढ़ा सांस्कृतिक मुलम्मा कितना पतला है." वे कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि जर्मनी की सांस्कृतिक नीति विफल हो गई है, बल्कि संकट का आयाम ऐसा है जो पहले कभी नहीं दिखा है.

उभरती पुरानी नफरततस्वीर: PATRICK BAZ/AFP/Getty Images

जटिल यूरोपीय संकट

यूरोप की स्थिति एकदम जटिल है, जिसमें सांस्कृतिक बहस का भी अभाव है. "जब चीजें बहुत जटिल हो जाती हैं, तो सरल जवाब जीतने लगते हैं. जर्मनी में लंबे समय तक जटिल संकट का जवाब आलसी ग्रीक से दिया जाता रहा. सरल बनाने के उसी क्रम में जर्मनों को "मैर्केल हिटलर है" का जवाब मिल रहा है." इसलिए अनुवादकों की जरूरत है, सांस्कृतिक अर्थ में अनुवादकों की, जो यह समझते हों कि इटली में क्या हो रहा है, कि फ्रांसीसी क्यों जर्मन मॉडल से पटकनी दी गई महसूस कर रहे हैं.

तो क्या यह सिर्फ संवाद की समस्या है? ओलोफ श्वेंके इसे राजनीति की समस्या मानते हैं, "यह दिख रहा था कि जर्मनों के खिलाफ हमले और नाजियों के साथ तुलना होगी. यदि समय रहते इसके बारे में सोचा गया होता तो सांस्कृतिक विवाद का कार्यक्रम तैयार किया होता." श्वेंके कहते हैं कि विदेश मंत्रालय इसके लिए गोएथे इंस्टीट्यूट जैसी संस्थाओं को संसाधन मुहैया करा सकता था. पेट्रोस मार्कारिस ने 2012 के शुरू में ही कहा था, "यूरोप ने अर्थव्यवस्था में बहुत सारा निवेश किया है, लेकिन संस्कृति और साझा मूल्यों में बहुत कम." वे कहते हैं कि दोनों पक्षों की बड़ी मदद होती यदि ग्रीक लोगों को उनकी भावनाओं में थोड़ा विवेक मिलता और जर्मनों को उनके विवेक में थोड़ी संवेदना मिलती.

उलरीके गुरो भी हर किसी से संयम की मांग करती हैं. "स्वाभाविक रूप से साइप्रस का बिजनेस मॉडेल बहुत अव्यवस्थित है, लेकिन हमने आंखें बंद रखीं और उससे कमाया. फ्रांस को सचमुच संरचनात्मक सुधार करने होंगे, लेकिन वे उचित ही कहते हैं कि जर्मनी सोशल जंपिंग की नीति चला रहा है, यानि हर किसी में नुख्स है." एक दूसरे को उंगली दिखाने के बदले एक दूसरे के साथ संवाद करने की जरूरत है. गुरो कहती हैं कि यह यूरोप के अनुकूल भी होगा.

रिपोर्टः आया बाख/एमजे

संपादनः निखिल रंजन

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