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क्या है अमेरिकी चुनाव में निर्वाचक मंडल

स्पेंसर किमबॉल
२८ अक्टूबर २०१६

अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव प्रचार तो जोरों से होता है पर जनता निर्वाचक मंडल चुनती है जो राष्ट्रपति का चुनाव करता है.

Symbolbild Wählerverzeichnis
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हर चार साल पर होता है. लेकिन राष्ट्रपति का अंतिम चुनाव जनता सीधे नहीं करती. अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव नवंबर में होने वाले आम चुनाव के महीने भर बाद एक निर्वाचक मंडल करता है.

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की ऐसी व्यवस्था है जिसे बहुत से अमेरिकी भी नहीं समझ पाते. 18 वर्ष की आयु के बाद अमेरिकी नागरिकों को राष्ट्रपति चुनने का हक है. वे 8 नवंबर को होनेवाले मतदान में हिस्सा लेंगे लेकिन उनका वोट सीधे इस बात का फैसला नहीं करेगा कि कौन राष्ट्रपति होगा. अमेरिका के सर्वोच्च पद के फैसले का अधिकार एक निर्वाचक मंडल का है जिसमें 538 सदस्य होते हैं. ये सदस्य अमेरिका के 50 राज्यों से चुनकर आते हैं.

हर प्रांत को निर्वाचक मंडल के सदस्यों की एक खास संख्या आवंटित की जाती है जिसका फैसला उस प्रांत के सांसदों के आधार पर होता है. संसद के दोनों सदनों प्रतिनिधि सभा और सीनेट में किसी प्रांत के जितने सदस्य होते हैं उतने ही उसके निर्वाचक मंडल में सदस्य होते हैं. प्रतिनिधि सभा में किसी प्रांत के सदस्यों की संख्या उसकी आबादी के आधार पर तय होती है जबकि सीनेट में हर प्रांत के दो सदस्य तय हैं.

मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क प्रांत के प्रतिनिधि सभा में 27 और सीनेट में दो सदस्य हैं. निर्वाचक मंडली के 29 सदस्यों के लिए न्यूयॉर्क की रिपब्लिकन और डेमोक्रैटिक पार्टियां 29 उम्मीदवारों को मनोनीत करेंगी. टेक्सस यूनिवर्सिटी के निर्वाचन मंडली विशेषज्ञ जॉर्ज एडवर्ड बताते हैं, "ये उम्मीदवार आम तौर पर पार्टी के स्थानीय कद्दावर नेता होते हैं, जिन्हें इस तरह पुरस्कृत किया जाता है."

अप्रत्यक्ष लोकतंत्र

अमेरिका में जब मतदाता राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करते हैं तो वे राष्ट्रपति का चुनाव करने के बदले इस बात का फैसला करते हैं कि वे दो बड़ी पार्टियों में से किस पार्टी को अपने से प्रांत से निर्वाचक मंडली में सदस्य भेजने के लिए चुनेंगे. जिस पार्टी को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं वही पार्टी प्रांत से निर्वाचक मंडली में पूरे के पूरे सदस्य भेजती है. एक महीने बाद दिसंबर में निर्वाचक मंडली के सदस्य अपने अपने प्रांतों में इकट्ठा होते हैं और राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान करते हैं. कांग्रेस को ये वोट जनवरी में मिलते हैं जब उनकी गिनती होती है.

निर्वाचक मंडली में 270 वोट जीतने वाला उम्मीदवार राष्ट्रपति चुना जाता है. आम तौर पर नवंबर में होने वाले चुनाव के लोकप्रिय मतों में और दिसंबर को निर्वाचक मंडल के मतदान में एक ही उम्मीदवार राष्ट्रपति चुना जाता है. लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता और अंतर होने पर निर्वाचक मंडल का वोट अहम माना जाता है. अब तक अमेरिकी चुनाव के इतिहास में तीन उम्मीदवारों ने लोकप्रिय वोट हारने के बावजूद राष्ट्रपति बनने में कामयाबी पाई है. 2000 के चुनाव में डेमोक्रैटिक उम्मीदवार अल गोर को रिपब्लिकन जॉर्ज डब्ल्यू बुश से पांच लाख वोट ज्यादा मिले थे, लेकिन निर्वाचक मंडल में 271 वोट होने के कारण जीत बुश की हुई.  

मतदाताओं का असंतोष

राष्ट्रपति चुनने के लिए निर्वाचक मंडली की व्यवस्ता संविधान निर्माताओं के बीच समझौते से हुई. उन दिनों लोकतंत्र नया था और उसे टेस्ट नहीं किया गया था. कुछ संविधान निर्माताओं को डर था कि राष्ट्रपति के सीधे चुनाव से भीड़तंत्र को बढ़ावा मिलेगा. 1788 में संविधान बनने के बाद से अमेरिका बहुत बदल गया है लेकिन चुनाव व्यवस्था वही रही है. हालांकि ज्यादातर अमेरिकी उसे बदलना चाहते हैं. 2011 में हुए एक गैलप सर्वे के अनुसार 60 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति को सीधे चुना जाए.

निर्वाचक मंडल चुनने के लिए अमेरिका के 48 प्रांतों में विजेता को सारी सीटें के सिद्धांत से फैसला होता है. कैलिफोर्निया में राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत हमेशा डेमोक्रैटिक पार्टी को मिलता है, इसलिए आम तौर पर हमेशा निर्वाचक मंडल में की सारी सीटें मिल जाती हैं. प्रांत में रिपब्लिकन पार्टी को कोई सीट नहीं मिलती. नतीजा ये होता है कि डेमोक्रैटिक पार्टी मानकर चलती है कि कैलिफोर्निया की सीटें उसे मिलेगी और रिपब्लिकन पार्टी उसे चुनौती नहीं देती. यही हाल टेक्सस में रिपब्लकिन का है. विपक्षी पार्टी वहां जीतने की कोशिश भी नहीं करती. सारा ध्यान कोलोरैडो, फ्लोरिडा, नेवादा, ओहायो और बर्जीनिया जैसे स्विंग स्टेट पर होता है जहां बहुमत बदलता रहता है.

सुधारों पर जोर

हालांकि ज्यादातर अमेरिकी चुनाव पद्धति में परिवर्तन चाहते हैं, लेकिन इसमें सुधार करने की प्रक्रिया भी इतनी आसान नहीं है. निर्वाचक मंडल की पद्धति को खत्म करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा और इसके लिए संसद में दो तिहाई बहुमत और राज्यों में तीन चौथाई बहुमत की जरूरत होगी.  लेकिन एडवर्ड कहते हैं, "राजनीतिज्ञ अक्सर अज्ञानी होते हैं. उनमें करीबी राजनीतिक लाभ देखने की रुझान होती है. यदि उन्हें लगता है कि उनका फायदा हो रहा है तो वे सिस्टम को नहीं बदलेंगे."

नेशनल पॉपुलर वोट नाम की पहलकदमी इस प्रक्रिया को बदलने की कोशिश कर रही है. 10 राज्यों और वाशिंगटन डीसी ने कहा है कि वे निर्वाचन वोट उसी उम्मीदवार को देंगे जिसे लोकप्रिय वोट मिलेगा. राष्ट्रीय लोकप्रिय वोट का सिद्धांत लागू होने के लिए इस पर उतने राज्यों को दस्तखत करना होगा जिनके पास 270 निर्वाचक वोट हों. ये अभियान अभी उससे 61 प्रतिशत दूर है.

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