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फलस्तीन का इस्लामिक जिहाद क्या हमास से बड़ा है

१३ नवम्बर २०१९

गजा पट्टी में इस्राएल के हवाई हमले में बहा अबू अल अता की मौत हो गई है. अबू अल अता इस्लामिक जिहाद चरमपंथी गुट के एक बड़े नेता थे. इसके बाद इलाके में हिंसा फिर शुरू हो गई है.

Israel Gaza Konflikt
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Jini

बीते कई महीनों के बाद गजा पट्टी एक बार फिर अशांत है. सोमवार को इस्राएल के ताजा हवाई हमले में दो और लोगों की जान गई है. इसे मिलाकर हाल के दिनों में शुरू हुई हिंसा में अब तक कुल 12 लोगों की मौत हो चुकी है. मरने वालों में इस्लामिक जिहाद चरमपंथी गुट के बड़े नेता बहा अबू अल अता भी शामिल हैं. इस्लामिक जिहाद इस्राएल से लड़ने वाले कई गुटों में से एक गुट है. लेबनान में हिज्बुल्लाह और गजा में हमास भी ऐसे ही चरमपंथी संगठन हैं.

गजा पट्टी के दो प्रमुख चरमपंथी गुटों में एक इस्लामिक जिहाद भी है. यह सत्ताधारी गुट हमास से काफी छोटा है हालांकि ईरान से मिले धन और हथियारों के बल पर इसने काफी ताकत जुटा ली है. इस्राएल के साथ होने वाली झड़पों और रॉकेट हमलों में इन दिनों यह संगठन काफी ज्यादा सक्रिय है.

बहा अबू अल अतातस्वीर: Reuters/M. Salem

2007 में हमास ने गजा का नियंत्रण अंतरराष्ट्रीय मान्यता वाले फलस्तीनी अथॉरिटी से अपने हाथ में ले लिया था. प्रशासन अपने हाथ में लेने के बाद से हमास के हाथ बंध गए हैं. इस्लामिक जिहाद के पास ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं है इसलिए यह चरमपंथी गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय है और कुछ मौकों पर इसने हमास के प्रभुत्व को भी चुनौती दी है.

इस्लामिक जिहाद का गठन 1981 में हुआ था जिसका मकसद पश्चिमी तट, गजा और नया इस्राएल कहे जाने वाले इलाके को मिलाकर इस्लामी फलस्तीनी राज्य का गठन करना था. अमेरिकी विदेश मंत्रालय, यूरोपीय संघ और दुनिया की कई दूसरी सरकारों ने इसे आतंकवादी संगठन करार दिया है.

मध्यपूर्व और इसके बाहर के देशों में दूसरे चरमपंथी गुट भी इस्लामिक जिहाद के नाम का इस्तेमाल करते हैं लेकिन तब इसका मतलब अंतरराष्ट्रीय होता है स्थानीय जिहाद नहीं और ये संगठन आमतौर पर आपस में जुड़े नहीं हैं.

इस्राएली अधिकारी अबू अल अता को इस गुट की हथियारबंद ईकाई का कमांडर बताते है. अधिकारियों के मुताबिक गजा में इस गुट के शीर्ष कमांडर अबू अल अता ने इस्राएल के खिलाफ हुए हाल के हमलों की साजिश रची थी. 2014 में गजा पट्टी में हुई जंग के बाद अबू अल अता की हत्या को इस कड़ी में सबसे हाई प्रोफाइल हत्या कहा जा रहा है.

तस्वीर: Reuters/I. Abu Mustafa

इस्लामिक जिहाद के बढ़ते प्रभाव का संकेत इस बात से भी मिलता है कि पिछले महीने इसके नेताओं ने स्वतंत्र रूप से काहिरा की यात्रा कर मिस्र के खुफिया विभाग के अधिकारियों से मुलाकात की थी. इस दल में अबू अल अता भी शामिल थे. मिस्र के खुफिया विभाग के अधिकारी इस्राएल के साथ मध्यस्थ की भूमिका में हैं.

ईरान से संपर्क

बताया जाता है कि ईरान इस्लामिक जिहाद को ट्रेनिंग और पैसा देता है. हालांकि इस गुट के लिए हथियार स्थानीय स्तर पर ही तैयार किए जाते हैं. हाल के वर्षों में इसने हमास के बराबर हथियार विकसित कर लिए हैं. इनमें लंबी दूरी के रॉकेट भी शामिल है जो इस्राएल के तेल अबीब तक मार करने में सक्षम हैं.

हालांकि इसका गढ़ गजा में है लेकिन इस्लामिक जिहाद के नेता बेरुत और दमिश्क में भी हैं जो ईरानी अधिकारियों के साथ करीबी रिश्ता रखते हैं. मंगलवार को इस्राएल के एक कथित मिसाइल हमले में इस गुट के एक और नेता अकरम अल अजूरी की मौत हो गई. इस बारे में सीरिया में मौजूद गुट के अधिकारियों ने जानकारी दी.

इस्राएल की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के पूर्व प्रमुख गियोरा आइलैंड का कहना है, "वह एक तरफ इस्लामिक जिहाद और ईरान के बीच सीधा संपर्क सूत्र था तो दूसरी तरफ गजा पट्टी और दूसरी जगहों पर निर्देश देता था."

तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Amra

तेल अबीब के थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज के सीनियर रिसर्च फेलो कोबी मिषाएल का कहना है कि ईरान के प्रॉक्सी के रूप में यह चरमपंथी गुट तेहरान की उस नीति में मदद करता है जिसके तहत ईरान इस्राएल पर सभी मोर्चों से दबाव बनाए रखना चाहता है. मिषाएल ने कहा, "उनकी नजरों में स्थिरता इस्राएल को मजबूत करेगी, इसलिए वो इसे पसंद नहीं करते."

संतुलन बनाना कठिन

2007 में नियंत्रण हासिल करने के बाद हमास ने इस्राएल से तीन बार जंग लड़ी है और इसमें अकसर इस्लामिक जिहाद के लड़ाकों ने उसकी मदद की है. हालांकि हमास ने मिस्र और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में हुए हाल के युद्धविराम का मुख्य रूप से पालन किया है. युद्धविराम का मकसद स्थिति और यहां रहने वाले 20 लाख से ज्यादा लोगों के जीवन को बेहतर करना है.

इस्लामिक जिहाद के चरमपंथी बिना जिम्मेदारी लिए रॉकेट दाग कर हमास को चुनौती देते हैं. उनका मकसद फलस्तीनी लोगों के बीच अपना कद बढ़ाना है जबकि हमास युद्धविराम का पालन करता है. मिषाएल का कहना है कि इस्राएल पर इस्लामिक जिहाद के हमलों को रोकना और स्थानीय लोगों के गुस्से के डर से उस पर कार्रवाई नहीं करने के बीच संतुलन बनाने में हमास को काफी दिक्कत हो रही है. मिषाएल के मुताबिक, "अगर हमास फलस्तीनी इस्लामिक जिहाद के खिलाफ कार्रवाई करता है तो तुरंत ही उस पर यह आरोप लग जाएगा कि वह इस्राएल के खिलाफ राष्ट्रीय संघर्ष को नुकसान पहुंचा रहा है."

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. Hamra

आखिरकार हमास को ही यह फैसला करना होगा कि हिंसा या युद्ध का यह मौजूदा दौर कब तक चलेगा. गजा की अल अहजर यूनिवर्सिटी में राजनीति पढ़ाने वाले प्रोफेसर मखाईमार अबूसादा का कहना है, हमास को मालूम है, "गजा की स्थिति कितनी विनाशकारी है और सैन्य कार्रवाई के नतीजे और ज्यादा भयानक होंगे."

नाजुक वक्त

अबू अल अता की हत्या ऐसे समय में हुई है जब इस्राएल के लिए नाजुक वक्त चल रहा है. देश में दो बेनतीजा रहे चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू एक कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. सरकार बनाने की कोशिश में दो बार नेतन्याहू नाकाम हो चुके हैं.

अब यह काम सेना के पूर्व प्रमुख बेनी गांत्स ने अपने हाथ में ले लिया है लेकिन उनके पास भी महज एक हफ्ते का ही वक्त है. ऐसी स्थिति में इस्राएल के राष्ट्रपति या तो किसी और को सरकार बनाने की कोशिश करने के लिए कहेंगे या फिर देश में एक साल के भीतर तीसरी बार चुनाव होंगे जो अभूतपूर्व होगा. 

नेतन्याहू ने इस्राएल के ऐसे अकेले नेता के रूप में अपनी छवि बनाई है जो देश की सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर सकता है. उन्होंने गांत्स के सैन्य अनुभवों के बावजूद उन्हें कमजोर बताया है. प्रधानमंत्री दफ्तर के मुताबिक नेतन्याहू गांत्स को सुरक्षा की स्थिति के बारे में बताया करते थे.

आलोचक इस हमले के वक्त को लेकर सवाल उठा रहे हैं. राजनीतिक गतिरोध के इस वक्त में यह हमला नेतन्याहू की स्थिति को मजबूत कर सकता है जो फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं और आने वाले हफ्तों में उन्हें बड़े अभियोगों का सामना करना पड़ सकता है.

एनआर/एके(एपी)

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