जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने कहा है कि "दरबार" ट्रांसफर पर हर साल 200 करोड़ रुपये खर्च होते हैं और पूछा है कि क्या ये जरूरी है कि संसाधनों की भारी कमी वाला एक प्रदेश इस खर्च का बोझ हर साल उठाए? जानिए इस प्रथा के बारे में.
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जम्मू और कश्मीर के अलावा देश में ऐसा दूसरा कोई केंद्र प्रशासित प्रदेश या राज्य नहीं है जिसकी दो ऐसी राजधानियां हों जिनके बीच साल में दो बार पूरे के पूरे प्रशासन का ट्रांसफर होता हो. जम्मू और कश्मीर की सर्दियों की राजधानी है जम्मू और गर्मियों की राजधानी है श्रीनगर. हर साल दो बार जम्मू और कश्मीर सरकार का पूरा का पूरा प्रशासन एक शहर से उठ कर 300 किलोमीटर दूर दूसरे शहर चला जाता है. कश्मीरी इसे "दरबार" ट्रांसफर कहते हैं.
इसकी शुरुआत जम्मू और कश्मीर रियासत के राजा महाराज रणबीर सिंह ने 1872 में की थी. दोनों शहरों में मौसम की तीव्रता से बचने के लिए ऐसा किया जाता था. अब ना राजा हैं ना दरबार लेकिन "दरबार" ट्रांसफर अभी भी होता है. अधिकारी तो एक शहर से दूसरे शहर जाते ही हैं, कागजात और अन्य सामान को भी बंडलों, कार्टन और लोहे के संदूकों में बंद कर 200 से ज्यादा ट्रकों में भर कर ले जाया जाता है.
2020 में 148 सालों में पहली बार इस प्रथा में कोविड-19 की वजह से रुकावट आई, लेकिन इसे अभी तक एक अस्थायी रुकावट माना जा रहा है. हालांकि अब जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इस प्रथा के जारी रहने पर पुनर्विचार करने के बारे में कहा है. अदालत ने निर्देश नहीं दिए हैं, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस पर विचार करने को कहा है. अदालत ने कहा कि राजधानियां बदलने पर हर साल कम से कम 200 करोड़ रुपये खर्च होते हैं और पूछा कि क्या ये जरूरी है कि संसाधनों की भारी कमी से जूझने वाला एक प्रदेश इस तरह के खर्च का बोझ हर साल उठाए?
राजनीतिक हलकों में और जानकारों में इसे लेकर मिली जुली प्रतिक्रिया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है और कहा है कि ये प्रथा प्रदेश के दोनों हिस्सों जम्मू और कश्मीर के लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक है और इसे बंद करने से दोनों इलाकों के बीच अंतर बढ़ जाएगा.
पीडीपी ने अभी अपना रुख साफ नहीं किया है लेकिन जानकारों का कहना है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इन हालात में इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगी.
वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर के इतिहास और राजनीति के जानकार उर्मिलेश ने डीडब्ल्यू को बताया कि "दरबार" के ट्रांसफर में पैसों के खर्च से ज्यादा लोगों के श्रम का जो दुरूपयोग होता है वो बहुत भयानक है. वो कहते हैं, "अगर दोनों इलाकों के लोग सहमत हों कि प्रदेश की एक ही राजधानी हो तो ये सबसे अच्छी बात होगी...और श्रीनगर से बेहतर कोई राजधानी हो ही नहीं सकती है."
कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि ये विवाद श्रीनगर की अहमियत कम करने के लिए शुरू किया गया है. कश्मीर में रहने वाले शिक्षाविद प्रोफेसर सिद्दीक वाहिद का कहना है कि ये जम्मू को सत्ता का केंद्र बनाने की शुरुआत है.
बहरहाल, कश्मीर अभी ऐसी समस्याओं से गुजर रहा है जो इससे बड़ी हैं. वहां 9 महीनों से आम जनजीवन पर कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं जिनसे प्रदेश का हर आम नागरिक प्रभावित हो रहा है. पहले इस स्थिति को सामान्य किए जाने की जरूरत है.
कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.