जर्मनी की छवि चीजों को प्रभावी तरीके से पूरा करने की है. हालांकि इसके विपरीत भी कई प्रमाण मौजूद हैं. बावजूद इसके यह छवि बनी हुई है. जर्मन इतिहास में दक्षता ने अहम भूमिका निभाई. लेकिन इसके परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं रहे.
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अंतरसांस्कृतिक सलाहकार क्रिस्टिना रॉटगर्स जब अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों और व्यावसायिक दोस्तों के साथ काम करती हैं, तो वे एक स्टीरियोटाइप एसोसिएशन गेम खेलते हुए शुरुआत करती हैं. जब वे उन लोगों से जर्मनी के बारे में उनकी धारणा के बारे में पूछती हैं, तो वे लोग विश्वस्त तरीके से बताते हैं कि जर्मनी एक मशीन की तरह दक्ष या प्रभावी देश है.
जर्मन दक्षता, शक्ति धारण के साथ एक अंतरराष्ट्रीय स्टीरियोटाइप या रूढ़िबद्ध धारणा है. यह अन्य जर्मन मूल्यों से इतनी मजबूती के साथ बंधा हुआ है कि इसे अलग करना मुश्किल है. इतिहास में यदि जाएं तो पता चलता है कि दक्षता की जड़ें काफी गहरी हैं और कैसे इसकी उत्पत्ति हुई. यह भी पता चलता है कि समय के साथ इस धारणा ने कैसे जन्म लिया.
जर्मनी की सदियों पुरानी प्रतिष्ठा
दक्षता को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है कि किसी मनचाही वस्तु को कम से कम संसाधन का इस्तेमाल करके प्राप्त करना. इस मामले में जर्मनी की प्रतिष्ठा सदियों पुरानी है और इसकी जड़ें दोहरी हैं.
'द शॉर्टेस्ट हिस्ट्री ऑफ जर्मनी' पुस्तक के लेखक और इतिहासकार जेम्स हॉव्स इसकी जड़ें मध्यकालीन युग में देखते हैं, जब पश्चिमी राइनलैंड की विदेशों में ख्याति व्यावसायिक दक्षता के लिए थी और यह ख्याति यहां उच्चस्तरीय गुणवत्ता की वस्तुओं के निर्माण की वजह से थी. डीडब्ल्यू से बातचीत में हॉव्स कहते हैं, "मेंज के घड़ी बनाने वाले और जोलिंगन के शस्त्र निर्माता पूरे मध्य काल के दौरान मशहूर रहे."
पूर्वी जर्मन राज्य प्रशा एक अलग तरह की ही दक्षता का स्रोत समझा जाता था. यह थी प्रशासनिक और सैन्य दक्षता. साल 1750 तक फ्रेडरिक महान के शासन काल में प्रशा ने एक प्रभावी नौकरशाही और सैन्य शक्ति विकसित कर ली थी.
जैसे-जैसे प्रशा ने अपने नियंत्रण को बढ़ाया और आखिरकार 1871 में जर्मन साम्राज्य को एक करते हुए उसे अपने अधीन कर लिया, उसने इन प्रणालियों और प्रथाओं को भी फैलाया. इसके कर-आधारित पब्लिक स्कूल और दक्ष सेना ने दुनिया के अन्य देशों को भी आधुनिक बनने के लिए प्रेरित किया. कई देशों ने तो इसी आधार पर अपने यहां संस्थाओं का निर्माण किया.
19वीं सदी के प्रशा राज्य में भी नौकरशाही और सेना के लिए मूल्यों की एक रणनीतिक सूची तैयार की गई जिसमें तमाम चीजों के अलावा समय की पाबंदी, मितव्ययिता, कर्तव्यपालन और कर्मठता जैसे तत्व भी शामिल थे. हालांकि दक्षता को एक अकेले मूल्य के तौर पर नहीं देखा गया है लेकिन यह वही मूल्य हैं जो कि एक दक्ष राष्ट्र को बनाने के लिए जरूरी हैं.
इन मूल्यों को 'प्रशियन गुणों' के तौर पर जाना गया. हालांकि इतिहासकार और बर्लिन में मोसेस मेंडेलसोन सेंटर फॉर यूरोपियन-जुइश स्टडीज के संस्थापक डायरेक्टर जूलियस शोएप्स कहते हैं कि उन्हें विभिन्न समूहों के बीच खुद को स्थापित करने में काफी समय लगा. उनके मुताबिक, "प्रशियन मूल्यों की यह चर्चा 19वीं सदी में तभी शुरू हुई जब इस बारे में उनसे बात की जाने लगी."
जब ब्रिटिश पर्यटकों ने 19वीं सदी के मध्य में प्रशा के नियंत्रण वाले राइनलैंड की यात्रा शुरू की, तो उन्होंने प्रशा की समृद्धि और योग्यता के इतिहास से भी लोगों को परिचित कराया. हॉव्स के मुताबिक, उनकी रिपोर्ट्स में हमेशा टिप्पणी की जाती थी कि वहां कैसे हर चीज बेहतर तरीके से काम करती है. मसलन, ट्रेन कैसे समय से चलती है, सीमा पर मौजूद कर्मचारी कितने चुस्त होते हैं, होटल कितने साफ-सुथरे रहते हैं इत्यादि.
बीसवीं सदी में भी आर्थिक गुणवत्ता और एक संगठित राज्य के दोहरे गुण ने जर्मन दक्षता की छवि को बरकरार रखा. साल 1930 तक 'ऑर्डनुंग' का विचार जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय पहचान बन गया. ऑर्डनुंग नियम-कानून और गंभीर दृष्टिकोण का ऐसा सम्मिश्रण था, जो कि सैद्धांतिक रूप से दक्षता में योगदान कर सकता था. साल 1934 में तत्कालीन राष्ट्रपति पाउल फॉन हिंडरबुर्ग की तस्वीर अपने कवर पेज पर प्रकाशित करते हुए टाइम पत्रिका ने लिखा था "Ordnung muss sein" अर्थात "व्यवस्था होना अनिवार्य है". द न्यूयॉर्क टाइम्स तो साल 1930 में ही इस मुहावरे का जिक्र 'विश्व प्रसिद्ध' के तौर पर कर चुका था.
जर्मनी में स्नान संस्कृति का इतिहास
सामूहिक रूप से स्नान का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है. रोमन काल के गरम सोतों से लेकर मध्य युग के स्नानगृहों से होकर सागर तटों पर नहाने तक इसने लंबा सफर तय किया है. आइए नहाने के इतिहास पर एक नजर डालें.
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स्विमिंग सूट उठाओ...
ये 1950 के दशक की एक लोकप्रिय जर्मन धुन से टेक था. गर्म पानी, नीला आसमान और अंतहीन धूप लाखों जर्मनों को उत्तरी सागर के समुद्र तटों की ओर आकर्षित कर रहा था. और जिनके घर के आसपास कोई समुद्र तट नहीं होता, वे पड़ोस की सबसे नजदीकी झील या सार्वजनिक पूल में तैरने चले जाते थे. लोग हजारों वर्षों से पानी से रोमांचित होते रहे हैं और हर युग की अपनी स्नान संस्कृति रही है.
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रोमन पूल परिसर
रोमन साम्राज्य के शुरुआती दिनों में लोग सार्वजनिक स्नान के बड़े प्रशंसक थे. इसे यहां जीर्णोद्धार किए गए उस काल के स्पा में देखा जा सकता है. रोमन काल के पुरुष और महिलाएं पानी के गर्म, गुनगुने और ठंडे पूलों के बीच बारी-बारी से पसीना बहाया करते थे. उन दिनों वे एक साथ नहीं अलग-अलग हिस्सों में नहाया करते थे. रोमन स्पा मुख्य रूप से स्नान के अलावा गपशप, विश्राम और कारोबार के लिए मुलाकातों की जगह भी थे.
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स्नान घर और पाप की तपिश
रोमन साम्राज्य के पतन के बाद स्पा संस्कृति का पतन होने लगा. मध्य युग के दौरान लोग पानी से कतई नहीं डरते थे. इस तरह के स्नानघरों में लोग टबों में नहाया करते थे, हालांकि कैथोलिक चर्च अत्यधिक स्नान को पाप बताता था. रोम की ही तरह मध्ययुग में भी स्नानागार मुलाकातों और आपस में घुलने मिलने की जगह होते थे. और कभी-कभी यह पाप के केंद्र बन जाते थे जहां पुरुष और महिलाएं एक साथ मिलते.
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स्पा की लोकप्रियता
पानी सिर्फ पानी नहीं होता. 15 वीं सदी में खनिजों से भरे सोते बीमारी का तेज इलाज चाहने वाले अमीरों के लिए बड़ा आकर्षण थे. उस समय का मंत्र था कि "बहुत ज्यादा बहुत मदद करता है." स्पा आने वाले मेहमान अपना समय लंबे समय तक विशेष टब में डूबकर बिताते थे. खूब सारा भोजन, पीने के लिए कई तरह की ड्रिंक और जमकर पार्टी सेहत की तैयारियों का हिस्सा था.
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अमीरों के लिए नहाने का मजा
सदियों पहले से ही स्पा जाने वाले अपने टबों से बाहर निकलकर समुद्र की ओर जाने लगे थे. बाल्टिक तट पर स्थित हाइलिगेनडम 1793 में जर्मनी का पहला आउटडोर स्पा था और वह आज भी मौजूद है. यह रूस के जार सहित दुनिया भर के मेहमानों में बहुत ही लोकप्रिय था. हाइलिगेनडम बहुत ही महंगा ठिकाना था जहां केवल अमीर लोग ही जा सकते थे. बाकी की आबादी झीलों या नदियों में तैरने जाती थी.
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महिलाओं के लिए स्नान गाड़ियां
समुद्र तट पर और नए स्पा बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. हालांकि उन दिनों महिलाओं के लिए पुरुषों के आस-पास कहीं भी स्नान करना असभ्य माना जाता था. एक विकल्प था नहाने के लिए खासतौर से बनी घोड़ा गाड़ियां. वह मेहमानों को समुद्र तट से पानी तक ले जाती थीं, जहां महिलाएं चुपचाप समुद्र के पानी में नहा सकती थीं. बाद में समुद्र से दूर के शहरों ने भी नदी के किनारे सार्वजनिक स्नानघर बनाना शुरू कर दिया.
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गर्मियों की छुट्टियां
ऊजेडोम द्वीप पर ली गई इस तस्वीर में लिखा है, आलबेक पुरुष स्पा में पुरुष सौंदर्य. बाल्टिक रिसॉर्ट 20 वीं सदी की शुरुआत में गर्मियों में छुट्टियां बिताने की किफायती जगह थी जहां अधिक से अधिक लोग आ सकते थे. लेकिन, यहां महिलाएं नहीं आया करती थीं. महिलाओं के नहाने का अपना इलाका मुख्य समुद्र तट से दूर था. 1920 में जर्मनी में विवाहित जोड़ों को एक साथ नहाने की अनुमति मिली.
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सभी के लिए सार्वजनिक स्नान
उसके बाद जल्द ही साथ नहाना जर्मनी में लोकप्रिय होने लगा. 1900 के आसपास जर्मनी के कई शहरों में सार्वजनिक स्विमिंग पूल बन गए जहां कोई भी जा सकता था. जो लोग खर्च नहीं करना चाहते थे उनके लिए बर्लिन में वान्न लेक की तरह अक्सर पास में तैरने की जगह हुआ करती थी. तैराकी आम लोगों का शगल बन गया. 1870 से डॉक्टर कहने लगे थे कि "हर जर्मन को हफ्ते में एक बार स्नान करना चाहिए."
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'स्वीडिश बाथ'
जब सामूहिक रूप से नहाने की प्रथा विकसित हो रही थी तो नग्न स्नान का आंदोलन भी शुरू हुआ. यह बहुत से लोगों के लिए चौंकाने वाली बात थी. हिप्पी आंदोलन से आधी सदी पहले ही नग्न होकर नहाने के आंदोलन ने नैतिकता के रखवालों को परेशानी में डाल दिया. जर्मनी में स्वीडिश बाथ कहा जाने वाला नग्न स्नान 1900 के आसपास दिखाई दिया और इसे सहज व्यवहार के खिलाफ माना जाता था.
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'हंगेरियन सी' पर छुट्टियां
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्ट पूर्वी जर्मनी के निवासी भी छुट्टियां बिताने और गर्मियों में तैरने के लिए बाल्टिक से बाहर दूसरे समुद्र तटों पर जाना चाहते थे. लेकिन, पश्चिम जर्मनी के भाइयों के विपरीत, उन्हें पश्चिम में छुट्टी बिताने की अनुमति नहीं थी. हंगरी में बालाटोन लेक एक विकल्प था. पैसे बचाने के लिए यहां छुट्टियां बिताने वाले पूर्वी जर्मन हमेशा डिब्बाबंद सामान साथ ले जाते थे.
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बीच पर जगह की कमी
आजकल तैरना नियमित व्यायाम का हिस्सा है. जगह जगह स्विमिंग पूल बने हैं और दूसरे देशों में छुट्टियां बिताना भी सामान्य है. गर्मियों में कई समुद्र तटों पर लोगों की ऐसी भीड़ होती है कि वे पानी में सार्डिन मछली की तरह दिखते हैं. लेकिन अगर भीड़ से बचना हो तो हर कहीं समुद्र तटों पर सुनसान इलाके अभी भी मिल जाते हैं. प्राथमिकता चाहे जो हो, लोगों को हर कहीं अपने लिए एक स्नान संस्कृति मिल ही जाती है.
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एक 'भयानक' दक्षता
साल 1982 में सोशल डेमोक्रेट राजनेता ऑस्कर लैफोंटेन ने कहा था कि प्रशियन मूल्यों (जिनका प्रचार उस वक्त के पश्चिमी जर्मनी के चांसलर हेलमुट श्मिट भी कर रहे थे) के साथ एक व्यक्ति "यातना गृह का संचालन भी कर सकता है."
इतिहासकार शोएप्स के मुताबिक, नाजी पार्टी ने वास्तव में प्रशियन मूल्यों का भी कुछ हद तक चुनाव किया था. वे कहते हैं, "आत्मविश्वास अहंकार में बदल गया, सुव्यवस्था नीचतापूर्ण पाखंड में बदल गई और किसी के कर्तव्यों का निर्वहन विशुद्ध अमानवीयता में बदल गया. हो सकता है कि तथाकथित प्रशियन गुणों ने नाजी शासन और उसकी व्यवस्थित हत्या के तहत अधिनायकवादी राज्य बनाए रखने में मदद की हो."
कोलंबस विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर फ्रैंकलिन मिक्सन श्रम और औद्योगिक संस्थानों के मामलों के जानकार हैं और "ए टेरिबल एफिशिएंसी: एंटरप्रेन्युरियल ब्यूरोक्रेट्स एंड द नाजी होलोकॉस्ट" पुस्तक के लेखक भी हैं. इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि नाजी नौकरशाही के दौरान व्यवहार कुशलता को कैसे सम्मानित और प्रोत्साहित किया गया. किस तरह से अक्सर सीधे और अनौपचारिक आदेश के तहत विध्वंसात्मक कार्रवाइयां की गईं. मिक्सन कहते हैं, "नाजी जो कर रहे थे वह प्रोत्साहन था, नौकरशाही से जुड़े लोगों का अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहे थे, जो कि उनके कार्यों का हिस्सा नहीं था."
जर्मन चांसलर के 15 साल
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हॉव्स कहते हैं कि दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के तत्काल बाद, जर्मन लोगों को ऐसे लोगों के तौर पर देखा गया जो कि अविश्वसनीय तरीके से अमानवीय थे. 50 और 60 के दशक में जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती गई, पश्चिमी जर्मनी की पहचान अपने उद्योगों और गुणवत्तापूर्ण चीजों के उत्पादन से होने लगी. इस उत्पादन प्रक्रिया ने जर्मन दक्षता की प्रतिष्ठा को एक बार फिर स्थापित कर दिया. यह अलग बात है कि ऋण में कमी, मुद्रा सुधार, सस्ता श्रम जैसे कुछ कारकों ने इस छवि को कुछ हद तक धूमिल किया.
जर्मनी ने एकीकरण के बाद आई आर्थिक मंदी से खुद को बचाए रखा और आज भी अपने उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के जरिए हर क्षेत्र में जर्मन दक्षता को कायम रखा है, न सिर्फ बाजार और उद्योग में बल्कि सरकार और यहां तक राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में भी.
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दक्षता: विशेषता और रूढ़िवादी धारणा
दक्षता को भले ही एक गुण के तौर पर देखा जा रहा हो लेकिन जर्मनी में आज यह वास्तविकता से काफी दूर है. अक्षमता के तमाम उदाहरण यहां मौजूद हैं. मसलन, नया बर्लिन हवाई अड्डा बनाने में 9 साल का समय लग गया और मौजूदा समय में कोविड संक्रमण से निबटने में नौकरशाही कागजी कार्रवाइयों में ही व्यस्त रही और आज टीकाकरण की प्रक्रिया भी बेहद धीमी गति से चल रही है.
सीनियर पॉलिसी एडवाइजर आंद्रे फॉन शूमन कहते हैं कि इन सबके बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी दक्षता संबंधी इस स्टीरियोटाइप को बनाए रखने में सफल रहा है. वे कहते हैं कि रूढ़िवादी धारणाएं बहुत लंबे समय तक जिंदा रहती हैं और उनमें बदलाव बहुत ही धीमी गति से होता है. उनका कहना है कि रूढ़िवादी धारणा या मान्यता तभी खत्म हो सकती है जब इसका समर्थन करने वाले उदाहरण बहुत कम रह जाएं और उसका खंडन करने वाले उदाहरण ही लोगों को दिखते रहें.
अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ ऐसे रहे हैं मैर्केल के रिश्ते
जर्मनी की चांसलर बनने के बाद अंगेला मैर्केल ने अपने 15 साल के कार्यकाल में अमेरिका के तीन राष्ट्रपतियों के साथ काम किया है. जानिए किसके साथ उनके संबंध कैसे रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
आंखें मिलाना भी मुश्किल
ईरान को लेकर नीति हो या नाटो को, मैर्केल और ट्रंप के विचार कभी नहीं मिले. राजनीतिक तौर पर इनके बीच मतभेद तो हमेशा रहा है, साथ ही निजी स्तर पर भी यह साफ दिखता था. ऐसी भी खबरें आईं कि ट्रंप ने मैर्केल को "स्टुपिड" कहा था. यह तस्वीर 2019 की है जहां ट्रंप मैर्केल से नजरें चुराते दिखे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler
कौन किसकी सुने?
इस तस्वीर ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी. यह 2018 में कनाडा में हुए जी7 शिखर सम्मलेन की तस्वीर है. आपको क्या लगता है, इसमें कौन किस पर हावी है? मैर्केल - जो ट्रंप के सामने खड़ी रह कर अपनी ताकत दिखा रही हैं? या फिर ट्रंप - जो तस्वीर में मौजूद एकमात्र नेता हैं जो बाकियों की परवाह ना करते हुए कुर्सी पर बैठे हैं.
तस्वीर: Reuters/Bundesregierung/J. Denzel
हाथ नहीं मिलाउंगा
मार्च 2017 में जब मैर्केल पहली बार राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने व्हाइट हाउस पहुंचीं, तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने उनसे हाथ मिलाने से ही इनकार कर दिया. तब ही समझ आ गया था कि अगर पहली मुलाकात ही ऐसी है, तो अगले चार साल आसान नहीं होने वाले हैं.
तस्वीर: Reuters/J. Ernst
आंखों में दिखता था प्यार
ट्रंप से अलग बराक ओबामा के साथ मैर्केल का रिश्ता खास था. ओबामा आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे और इस दौरान दोनों की दोस्ती गहरी हो गई. यह तस्वीर नवंबर 2016 की है, जब ट्रंप की चुनाव में जीत के बाद ओबामा मैर्केल से मिलने बर्लिन आए थे.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
इतनी अच्छी दोस्ती
मैर्केल और ओबामा के हावभाव से साफ दिखता था कि दोनों एक दूसरे के साथ कितने सहज हैं. यह तस्वीर 2015 की है जब जी7 शिखर सम्मलेन जर्मनी की आल्प वादियों में आयोजित हुआ था. मैर्केल को जलवायु परिवर्तन और अन्य कई मुद्दों पर ओबामा का साथ मिला.
तस्वीर: Reuters/M. Kappeler
ऐसी मुस्कुराहट
जून 2011 में अंगेला मैर्केल को अमेरिका के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार "प्रेजिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम" से नवाजा गया. ओबामा ने यूरोप को एकजुट रखने के मैर्केल के प्रयासों की जम कर तारीफ की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हाथों में हाथ
ओबामा से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भी मैर्केल के साथ अच्छे संबंध थे. 2006 में जब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में जी8 सम्मलेन हुआ तब बुश का मैर्केल के कंधे दबाने वाला वीडियो खूब वायरल हुआ.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Nemenov
मिलजुल कर खाना
यह तस्वीर जुलाई 2006 की है. मैर्केल ने बुश को जर्मनी में आमंत्रित किया था. औपचारिक बैठकों के बाद मैर्केल ने बारबीक्यू रखा था जिसे इस आयोजन की हाइलाइट बताया गया था. बुश मेहमान थे लेकिन मैर्केल को खाना उन्होंने ही परोसा था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/BPA/G. Bergmann
कभी मेहमान, कभी मेजबान
2007 में बुश ने मैर्केल और उनके पति योआखिम साउअर को अमेरिका में आमंत्रित किया. इस दौरान बुश खुद गाड़ी चलाते नजर आए. अमेरिकी अंदाज में उन्होंने "पिक अप ट्रक" एसयूवी में मैर्केल को घुमाया.
तस्वीर: Matthew Cavanaugh/dpa/picture-alliance
क्लिंटन के साथ भी
मैर्केल ने बतौर चांसलर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ काम नहीं किया है लेकिन उनके साथ भी मैर्केल के संबंध अच्छे हैं. यह तस्वीर 2017 की है जब पूर्व जर्मन चांसलर हेल्मुट कोल के देहांत के बाद क्लिंटन ने भाषण दिया. स्पीच के बाद जब वे वापस अपनी कुर्सी पर आ कर बैठे, तो बगल में बैठी मैर्केल का हाथ थाम लिया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/M. Murat
और बाइडेन के साथ भी
यह तस्वीर नवंबर 2009 की है. जो बाइडेन तब अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे. मैर्केल ने वॉशिंगटन में अमेरिकी संसद में एक स्पीच दी थी. जिस दौरान संसद तालियों की आवाज से गूंज रही थी, बाइडेन मैर्केल को हंसाने में लगे थे. बतौर राष्ट्रपति बाइडेन मैर्केल के साथ कुछ ही महीने काम कर पाएंगे.