क्या है स्विफ्ट, जिसका यूक्रेन विवाद के बीच जिक्र हो रहा है
१४ जनवरी २०२२यूक्रेन सीमा पर रूसी सेना की तैनाती को लेकर तनाव बना हुआ है. तनाव घटाने के लिए वार्ताएं बेनतीजा रही हैं. अमेरिका ने कहा है कि अगर रूस ने हमला किया, तो वह आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा. उसने यह भी चेतावनी दी है कि इस बार के प्रतिबंध पहले के मुकाबले ज्यादा गंभीर और विस्तृत होंगे. प्रतिबंधों से जुड़ी एक आशंका स्विफ्ट (एसडब्ल्यूआईएफटी) नेटवर्क से भी जुड़ी है. आशंका जताई जा रही है कि शायद इस बार रूसी बैंकों को इस नेटवर्क के इस्तेमाल पर रोक लगा दी जाए. हालांकि कई जानकार इसे 'चरम विकल्प' बता रहे हैं.
क्या है यह नेटवर्क?
स्विफ्ट एक मैसेजिंग नेटवर्क है. इसका पूरा नाम है, सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंशल टेलिकम्युनिकेशन. बैंक और बाकी वित्तीय संस्थाएं देश के बाहर भुगतान करने के लिए इसका इस्तेमाल करती हैं. यह दुनियाभर के बैंकों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक भुगतान व्यवस्था की तरह काम करता है. 200 देशों के करीब 11 हजार बैंक इस नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं.
इस नेटवर्क के द्वारा हर सदस्य बैंक को एक खास अंतरराष्ट्रीय कोड मिलता है. इसे स्विफ्ट कोड या स्विफ्ट नंबर या बैंक आइडेंटिफायर कोड (बीआईसी) कहते हैं. अंतरराष्ट्रीय भुगतान की स्थिति में यही स्विफ्ट कोड बैंक विशेष की पहचान करता है. इसके माध्यम से बैंक भुगतान की प्रक्रिया को तेजी से पूरा कर पाते हैं. इस्तेमाल में आसानी, सुरक्षा और तेज रफ्तार के चलते यह एक देश से दूसरे देश में पैसा भेजने में सहूलियत देता है. इसीलिए सीमा पार लेन-देने के लिए यह दुनिया का सबसे भरोसेमंद मैसेजिंग सिस्टम माना जाता है.
किसका है स्विफ्ट नेटवर्क?
1973 में गठित किया गया यह नेटवर्क बेल्जियम में स्थित है. इसके काम-काज का प्रबंधन 25 सदस्यों वाली बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की एक टीम करती है. जी10 देशों (जर्मनी, फ्रांस, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, इटली, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और स्वीडन) के सेंट्रल बैंक और यूरोपियन सेंट्रल बैंक मिलकर स्विफ्ट की निगरानी करते हैं.
क्या किसी देश को स्विफ्ट से हटाया जा सकता है?
स्विफ्ट दुनियाभर के बैंकों की एक सहकारी व्यवस्था है. इनमें एक-दूसरे से दुश्मनी रखने वाले देश भी शामिल हैं. ऐसे में यह नेटवर्क खुद को राजनैतिक तौर पर तटस्थ कहता है. लेकिन नवंबर 2018 में इसने ईरान के कुछ बैंकों को हटा दिया था. तब स्विफ्ट ने बयान में कहा था, "ईरान के बैंकों को अपने नेटवर्क से निलंबित करने में हमें अफसोस हो रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था की स्थिरता को ध्यान में रखकर हम यह फैसला ले रहे हैं."
स्विफ्ट ने यह फैसला अमेरिका के दवाब में लिया था. अमेरिका ने स्विफ्ट से कहा था कि उसे ईरान पर लगाए गए अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों का पालन करना होगा. अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो उसे भी अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है.
यूरोपीय संघ के हित
रूस और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच बड़े स्तर पर कारोबार होता है. रूस ईयू का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है. अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए भी यूरोप रूस पर निर्भर है. यूरोप आने वाली प्राकृतिक गैस की आपूर्ति का करीब 35 फीसदी हिस्सा रूस से आता है. वहां यूरोप का बड़ा निवेश भी है. अगर रूस के साथ लेन-देन के नेटवर्क पर असर पड़ा, तो ईयू भी प्रभावित होगा.
दवाब की स्थिति में स्विफ्ट के पास क्या विकल्प होगा?
यूरोपीय संघ का एक कानून है, ब्लॉकिंग स्टैच्यूट. इसके तहत यूरोपीय संघ किसी अन्य देश द्वारा लागू किए गए किसी कानून को मान्यता नहीं देता. इसका मकसद है कानूनी तरीके से अंतरराष्ट्रीय व्यापार या व्यावसायिक गतिविधि में शामिल ईयू कंपनियों को किसी और देश में लागू कानून के प्रभाव से बचाना. यह कानून ईयू की कंपनियों को अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का पालन करने से भी रोकता है.
2018 में ईरान परमाणु समझौते से बाहर निकलने के बाद अमेरिका ने ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इसके बाद ईयू ने भी अपने ब्लॉकिंग स्टैच्यूट को अपडेट किया, ताकि ईरान के साथ कानूनी तरीके से कारोबार कर रही यूरोपीय संघ की कंपनियों पर इन आर्थिक प्रतिबंधों का कम-से-कम असर हो.
चीन का फायदा
अगर अमेरिका रूस को स्विफ्ट से हटाने की कोशिश करता है, तो मुमकिन है यूरोपीय संघ इसका विरोध करे. जानकारों का कहना है कि अगर रूस को स्विफ्ट से निकाला जाता है, तो वह दूसरे तरीके खोजेगा. ऐसे में चीन के 'क्रॉस बॉर्डर इंटर बैंक पेमेंट्स सिस्टम' (सीआईपीएस) को प्रोत्साहन मिल सकता है. सीआईपीएस चीन का बनाया स्विफ्ट जैसा नेटवर्क है.
चीन ने 2015 में इसका गठन किया था. इसे बनाने के पीछे उसका मुख्य लक्ष्य है चीन की मुद्रा युआन के अंतरराष्ट्रीय इस्तेमाल को प्रोत्साहन देना. यह अपने विस्तार में स्विफ्ट से काफी पीछे है, लेकिन तेजी से बढ़ रहा है. जुलाई 2021 तक लगभग 100 देशों के हजार से भी अधिक बैंक इसके साथ जुड़ चुके थे. 2020 में इसके द्वारा होने वाले वित्तीय लेनदेन में 30 फीसदी तक की बढ़त दर्ज की गई थी.
रूस ने भी विकसित किया था एक विकल्प
क्रीमिया प्रकरण के बाद जब रूस को स्विफ्ट से निकालने की बातें हुईं, तो उसने भी वित्तीय लेन-देन का अपना एक नेटवर्क विकसित किया. इसका नाम है, सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनैंशल मेसेजेस (एसपीएफएस). 400 से अधिक बैंक इसके सदस्य हैं. इनमें पूर्व सोवियत संघ के देशों के बैंक भी शामिल हैं. रेडियो फ्री यूरोप के मुताबिक, 2020 के आखिर तक रूस के समूचे घरेलू वित्तीय लेनदेन का 20 फीसदी हिस्सा एसपीएफएस के माध्यम से हो रहा था.
रूस बड़ी अर्थव्यवस्था है. रूसी बैंकों को स्विफ्ट से निकालने का असर भी बड़ा होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा होने पर शुरुआती दौर में रूस को काफी नुकसान होगा. लेकिन जल्द ही वह वैकल्पिक तरीके भी खोज सकता है.