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इतिहास

क्या है 1988 का ऑपरेशन कैक्टस

ओंकार सिंह जनौटी
६ फ़रवरी २०१८

इमरजेंसी मैसेज के 9 घंटे बाद ही भारतीय सेना के कमांडो मालदीव पहुंचे. भारतीय सेना ने कुछ ही घंटों में सब कुछ अपने नियंत्रण में लिया और मालदीव के तख्तापलट को नाकाम कर दिया.

Indien Luftwaffe Kampfflugzeug Mirage 2000
तस्वीर: Indian Air Force

3 नवंबर 1988 का दिन. श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के हथियारबंद उग्रवादी मालदीव पहुंचे. स्पीडबोट्स के जरिये मालदीव पहुंचे उग्रवादी पर्यटकों के भेष में थे. श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के अब्दुल्लाह लथुफी ने उग्रवादियों के साथ मिलकर तख्ता पलट की योजना बनाई थी. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नसीर पर भी साजिश में शामिल होने का आरोप था. श्रीलंका में हुई प्लानिंग को अब मालदीव में अंजाम देना था.

तीन नबंवर को मालदीव पहुंचे हथियारबंद उग्रवादियों ने जल्द ही राजधानी माले की सरकारी इमारतों को अपने कब्जे में ले लिया. प्रमुख सरकारी भवन, एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलिविजन स्टेशन उग्रवादियों के नियंत्रण में चला गया. उग्रवादी तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम तक पहुंचना चाहते थे. लेकिन इसी बीच गय्यूम ने कई देशों समेत नई दिल्ली को इमरजेंसी संदेश भेजा. भारत भेजा गया संदेश सीधा तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी तक पहुंचा. और सबसे पहले वही हरकत में आए.

मामून अब्दुल गय्यूम (बाएं)तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images

3 नवंबर की रात को ही आगरा छावनी से भारतीय सेना की पैराशूट ब्रिगेड के करीब 300 जवान माले के लिए रवाना हुए. गय्यूम की दरख्वास्त के नौ घंटे के भीतर ही नॉन स्टॉप उड़ान भरते हुए भारतीय सेना हुलहुले एयरपोर्ट पर पहुंची. यह एयरपोर्ट माले की सेना के नियंत्रण में था.

हुलहुले से लगूनों को पार करते हुए भारतीय टुकड़ी राजधानी माले पहुंची. इस बीच कोच्चि से भारत ने और सेना भेजी. माले के ऊपर भारतीय वायुसेना के मिराज विमान उड़ान भरने लगे. भारतीय सेना की इस मौजूदगी ने उग्रवादियों के मनोबल पर चोट की. इसी दौरान भारतीय सेना ने सबसे पहले माले के एयरपोर्ट को अपने नियंत्रण में लिया और राष्ट्रपति गय्यूम को सिक्योर किया. इस बीच भारतीय नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा भी हरकत में आ चुके थे. उन्होंने माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों की सप्लाई लाइन काट दी.

तस्वीर: UNI/A. Kar

कुछ ही घंटों के भीतर भारतीय सेना माले से उग्रवादियों को खदेड़ने लगी. वापस श्रीलंका की ओर भागते लड़ाकों ने एक जहाज को अगवा कर लिया. अगवा जहाज को अमेरिकी नौसेना ने इंटरसेप्ट किया. इसकी जानकारी भारतीय नौसेना को दी गई और फिर आईएनएस गोदावरी हरकत में आया. गोदावरी से एक हेलिकॉप्टर ने उड़ान भरी और उसने अगवा जहाज पर भारत के मरीन कमांडो उतार दिये. कमांडो कार्रवाई में 19 लोग मारे गए. इनमें ज्यादातर उग्रवादी थे. इस दौरान दो बंधकों की भी जान गई.

आजादी के बाद विदेशी धरती पर भारत का यह पहला सैन्य अभियान था. अभियान को ऑपरेशन कैक्टस नाम दिया गया. इसकी अगुवाई पैराशूट ब्रिगेड के ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा कर रहे थे. दो दिन के भीतर पूरा अभियान खत्म हो गया. गय्यूम के तख्तापलट की कोशिश नाकाम हो गई. संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने भारतीय कार्रवाई की तारीफ की. लेकिन श्रीलंका ने इसका कड़ा विरोध किया.

माले में ऑपरेशन कैक्टस आज भी दुनिया के सबसे सफल कमांडो ऑपरेशनों में गिना जाता है. विदेशी धरती पर सिर्फ एक टूरिस्ट मैप के जरिये भारतीय सेना ने यह ऑपरेशन किया. ऑपरेशन के बाद ज्यादातर भारतीय जवान वापस लौट आए. किसी आशंका या संभावित हमले को टालने के लिए करीब 150 भारतीय सैनिक साल भर तक मालदीव में तैनात रहे.

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