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क्या होगा #MeToo का अंजाम

६ अक्टूबर २०१८

बीते एक साल में #मीटू अभियान ने अमेरिका को हिला कर रख दिया. दर्जनों लोगों को पद छोड़ना पड़ा है और सुप्रीम कोर्ट के एक जज की नियुक्ति अटकी हुई है. समाज पूरी तरह बंटा हुआ है, लेकिन लंबे समय में इसका क्या फायदा होगा?

Brett Kavanaugh Protest Emily Ratajkowski und Amy Schemer
तस्वीर: picture alliance/AP Images

पिछले साल अक्टूबर में हॉलीवुड के दिग्गज निर्माता हार्वे वाइनस्टीन पर दशकों तक यौन प्रताड़ना करने के आरोप लगे और इसके साथ ही इस तरह के आरोपों की बाढ़ आ गई. ऐसे आरोपों की जद में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी हैं जो चुनाव जीतने के बाद भी महिलाओं के साथ किए दुर्व्यवहार के आरोप झेल रहे हैं. अमेरिका के लिए मीटू उन तमाम दूसरे मुद्दों जैसा ही साबित हुआ जिन्हें लेकर वह बंटा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए ब्रेट केवेनॉ को चुने जाने के बाद तो यह खाई नई गहराइयों तक पहुंच गई है.

ब्रेट केवेनॉ पर तीन महिलाओं ने 1980 के दशक में अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगाया है. पिछले दिनों मिसिसीपी में जब डॉनल्ड ट्रंप ने आरोप लगाने वाली क्रिस्टीन ब्लासे फोर्ड की खिल्ली उड़ाई तो वहां मौजूद उनके समर्थकों की भीड़ ने उस पर खूब तालियां बजाईं. डेमोक्रैट और उदार रिपब्लिकन नेताओं ने इसकी कड़ी आलोचना की है. इससे पहले भी ट्रंप ने कहा था, "यह अमेरिका के युवा पुरुषों के लिए बहुत डरावना वक्त है जहां आपको इस बात के लिए दोषी ठहराया जा सकता जिसके लिए आप दोषी नहीं हो सकते."

मैरीलैंड के वॉशिंगटन कॉलेज में राजनीति शास्त्र की प्रोफेसर मेलिसा डेकमैन कहती हैं, "बहुत सारे रिपब्लिकन यह महसूस कर रहे हैं कि अगर केवेनॉ के नाम की पुष्टि नहीं हुई तो यह उदारवादी आंदोलन उनकी राजनीति और चिंताओँ पर भारी पड़ेगा."

रिसर्च बताती है कि मर्द और औरत की अलग सोच भी इस ध्रुवीकरण की एक वजह है लेकिन पार्टी कौन सी है इससे भी बहुत कुछ तय होता है. महिलाएं पुरुषों के मुकाबले यौन दुर्व्यवहार से ज्यादा चिंतित हैं. इसी तरह डेमोक्रैट इस मामले पर रिपब्लिकन की तुलना में ज्यादा सजग नजर आ रहे हैं. मीटू की वजह से डेमोक्रैट पार्टी के सांसद अल फ्रैंकेन और जॉन कोन्यर्स को पद छोड़ना पड़ा है. एक उदाहरण बिल क्लिंटन का भी है जिन्होंने बीते 20 सालों में यौन दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और महाभियोग का सामना किया जो एक सहमति के साथ चला अफेयर था और जिसे बहुत से लोग सत्ता का दुरुपयोग मानते हैं. 

तस्वीर: Reuters/M. Mara

पिछले साल अलबामा के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ने एक ऐसे उम्मीदवार को समर्थन दिया जिस पर किशोरियों का उत्पीड़न करने के आरोप थे. रुढ़िवादी न्यायपालिका में ऐसा लग रहा है कि केवेनॉ का समर्थन करने वाले ज्यादा हैं और इसके सामने यह बात बहुत ज्यादा अहमियत नहीं रखती कि उन्होंने किशोर के रूप में क्या किया या नहीं किया.

मीटू की वजह से बहुत सारी महिलाएं अगले महीने होने वाले मध्यावधि चुनाव के लिए बड़ी संख्या में डेमोक्रैट पार्टी की उम्मीदवार के रूप में सामने आ रही हैं. डेमोक्रैट पार्टी को उम्मीद है कि इन चुनावों से ट्रंप का बहुमत छिन जाएगा और सत्ता में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाएगी. हालांकि क्रांति के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना होगा. चुनाव का सबसे बेहतर नतीजा कांग्रेस में महिलाओं की हिस्सेदारी को 24 फीसदी तक कर देगा जो फिलहाल 19.3 फीसदी है. कई विकासशील देशों की तुलना में यह तादाद काफी कम है. हालांकि कई लोगों का मानना है कि यह एक लंबी लड़ाई है कोई कम दूरी की रेस नहीं जिसमें तुरंत विजय हासिल हो जाएगी. रटगर्स यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अमेरिकन वूमेन एंड पॉलिटिक्स की एसोसिएट डायरेक्टर जाँ सिंज्डाक कहती हैं, "उम्मीद है कि हमें कुछ बढ़त मिलेगी लेकिन हम बराबरी पर नहीं पहुंच जाएंगे."

तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Munoz Alvarez

उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के खिलाफ महिलाएं अपना गुस्सा निकाल रही हैं. कई सालों तक चुप रह कर सहने के बाद अब यह उम्मीद टूट गई थी कि उन्हें सुना जाएगा. अब उन्हें ना सिर्फ सुना जा रहा है बल्कि उन पर भरोसा किया जा रहा है और उन्हें समर्थन मिल रहा है. यह इस बात का संकेत है कि लोगों का रुख बदल रहा है. कभी दुनिया के सबसे मशहूर अमेरिकी रहे बिल कॉस्बी को 2004 में एक महिला का यौन उत्पीड़न करने के लिए दोषी ठहराया गया और उन्हें कम से कम तीन साल के जेल की सजा भी हुई. मीटू जब अखबारों के पहले पन्ने तक भी नहीं पहुंचा था तभी मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी के खिलाफ बलात्कार के मामले की फाइल खोलने से से लेकर पूर्व जिमनास्ट डॉक्टर लैरी नासेर को उम्रकैद की सजा तक हो गई.

बहरहाल अब भी यह साफ नहीं है कि आगे क्या होगा. यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सभी यौन दुराचारों को एक ही तरह से निपटाया जाना चाहिए. एक धड़ा इस बात को लेकर मुखर हो रहा है कि यह अभियान कम से कम कुछ मामलों में आरोपों को सबूतों से पुष्ट किए बगैर दोषी करार देने में बहुत आगे चला गया है. कई महिलाएं मानती हैं कि मीटू अभियान का असर कितना और कितने लंबे समय तक होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि पुरुष इसे कितना महत्व देते हैं. 

एनआर/एके (एएफपी)

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