क्या हो रहा है 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन' की जमीनों का?
१३ जनवरी २०१७
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एसईजेड यानी 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन' के अंतर्गत ली गई जमीनों के बारे में देश के सात राज्यों से सवाल किया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि उद्योग बसाने के लिए खरीदी गई जमीन बेकार क्यों पड़ी है.
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सुप्रीम कोर्ट ने 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन' के फायदे पर उठते सवालों और लोगों की जमीन हड़पे जाने के विवादों के बीच भारत के सात राज्यों से पूछा है कि उन्होंने एसईजेड वाली जमीनें खाली क्यों छोड़ी हुई हैं. सेज का प्रोजेक्ट भारत में शुरू से ही विवादों में घिरा रहा है. चीन की मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री की सफलता को देख, उसी की तर्ज पर भारत में भी साल 2005 में एसईजेड कानून बनाया गया. निर्माण के क्षेत्र में आगे बढ़ने के अलावा ऐसे स्पेशल जोन स्थापित करने का दूसरा प्रमुख मकसद देश की तेजी से बढ़ती आबादी के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना था. एसईजेड एक्ट 2005 के तहत ऐसे सैकड़ों प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिली. लेकिन एक दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद आज उनके नतीजों पर उंगलियां उठ रही हैं.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सात राज्यों को नोटिस भेजा है और उन्हें जवाब देने के लिए एक महीने का समय दिया है. कोर्ट ने यह कदम एक एडवोकेसी ग्रुप की याचिका पर कार्रवाई करते हुए उठाया. याचिकाकर्ता समूह ने लिखा है कि पिछले पांच सालों के दौरान एसईजेड के नाम पर खरीदी गई 80 फीसदी जमीन खाली पड़ी है. उन्होंने इनमें से अधिकतर को खेती योग्य भूमि बताया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अगुआई वाली बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "हमने याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर सात राज्यों को नोटिस भेजा है."
हाल के सालों में टैक्स रियायतें देकर कंपनियों को 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन' में लाए जाने का चलन दुनिया भर में चला है. लेकिन वर्ल्ड बैंक का कहना है कि ऐसे क्षेत्रों की स्थापना के कारण निर्यात से आय बढ़ाने या आर्थिक विकास को और आगे ले जाने के मामले में मिली जुली सफलता ही मिली है.
सिंगूर में क्या क्या हुआ
सिंगूर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसानों को जमीन वापस होगी. ममता बनर्जी की राजनीतिक जीत में यह मुद्दा एक अहम पड़ाव रहा है. कब क्या हुआ सिंगूर में.
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नैनो का ऐलान
2008 में भारत की कार निर्माता कंपनी टाटा ने लखटकिया कार नैनो बाजार में उतारने का ऐलान किया. ये खबर दुनिया भर में सुर्खी बनी. नैनो को बनाने के लिए कंपनी ने पश्चिम बंगाल के सिगूंर में फैक्ट्री लगाने की योजना बनाई.
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1000 एकड़
इसके लिए पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने खेती की एक हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया और उसे टाटा को सौंप दिया गया.
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जोर जबर्दस्ती
लेकिन जल्द ही आरोप लगने लगे कि सरकार ने जबरदस्ती किसानों की जमीन ली है जबकि सरकार का कहना था कि राज्य की बदहाल अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है.
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नैनो की ना
ये मामला उपजाऊ जमीन लेकर उसे प्राइवेट कंपनी को दिए जाने का था. इसलिए जल्द ही इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है और ये एक बड़ा मुद्दा बन गया. आखिरकार टाटा को अपनी फैक्ट्री गुजरात के साणंद ले जानी पड़ी.
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ममता की एंट्री
सिंगूर लोगों को उनकी जमीन वापस दिलाने के वादे ने ममता बनर्जी को नई राजनीतिक ताकत दी. 2011 के राज्य विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने वो कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर पाया. उन्होंने पश्चिम बंगाल में 1977 से राज कर रहे वाममोर्चा को सत्ता से बाहर कर दिया.
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जीत पर जीत
इसी साल हुए राज्य विधानसभा चुनाव में फिर शानदार जीत दर्ज की. अब ममता बनर्जी कह रही है लेकिन लोगों को जमीन लौटाने का काम शुरू कर उन्होंने अपना वादा निभाया है. लेकिन साथ ही उन्होंने टाटा और बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनी को भी राज्य में आने का न्यौता दिया है.
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भारत में पिछले पांच सालों में ही करीब पांच हजार हेक्टेयर (12,355 एकड़) भूमि को एसईजेड के लिए अभिगृहीत किया गया है. इसमें से केवल 362 हेक्टेयर का ही उसके तय प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया गया. ये आंकड़े एसईजेड फार्मर्स प्रोटेक्शन वेलफेयर एसोसिएशन ने कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में दिए हैं. इस समूह को अदालत में पेश कर रहे उनके वकील कॉलिन गोन्साल्वेस कहते हैं, "कई किसान अपनी जमीन के छिन जाने के कारण बेहाल हो गए." वे आगे बताते हैं कि ना केवल उन्होंने अपनी जमीन खोयी, बल्कि उसके बदले में उन्हें कोई दूसरा काम भी नहीं मिला. कारण ये रहा कि जिस इंडस्ट्री के वहां लगाए जाने की योजना थी वो तो लगी ही नहीं.
गोन्साल्वेस ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने उद्योग मंत्रालय को भी इस बाबत नोटिस भेजा है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्योग मंत्रालय के एक निदेशक टीवी रवि ने कहा, "जब हमें नोटिस मिलेगा, तब हम उसका जवाब दे देंगे." रवि ने बताया, "मंत्रालय अभी नीतियों में बदलाव करने पर कोई विचार नहीं कर रहा है. अगर निवेशक नहीं आते हैं, तो शायद हम इस पर पुनर्विचार करें." भूमि अधिकार कार्यकर्ताओं की मांग है कि अगर 'स्पेशल इकोनॉमिक जोन' में उद्योग धंधे ना चलें और विस्थापित लोगों को नौकरियां ना मिलें, तो फिर उनकी जमीनें वापस कर दी जानी चाहिए.
भारत सरकार के ऑडिटर्स की 2013 की एक रिपोर्ट दिखाती है कि एसईजेड वाली केवल 62 फीसदी जमीन ही उसके तय प्रयोजन के लिए इस्तेमाल हो रही है. और उनसे भी जितनी नौकरियां पैदा होने की उम्मीद थी, उसका केवल आठ फीसदी ही पैदा हुई हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि कई एसईजेड की जमीनों को 'डिनोटिफाई' कराके ऊंची कीमतों पर प्राइवेट डिवेलपर्स को बेच दिया गया है.
आरपी/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
जमीन निगलने वाले विशाल सिंक होल
मौसम में बदलाव, जमीन से बहुत छेड़छाड़ या इंसानी लापरवाही कई बार शहरों की हालत खस्ता कर देती है. एक नजर ऐसी गलतियों से बनने वाले सिंक होल्स पर.
एक व्यस्त चौराहे के बीच में सिंक होल बना. सिंक होल ने मुख्य सड़क की सभी लेनों को निगल लिया. पास में अंडरग्राउंड मेट्रो का काम चल रहा था, जिसके चलते ये विशाल गड्ढा बना.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Press
ओटावा, कनाडा
मॉल के के पास अचानक जमीन धंस गई और पानी बाहर निकल आया. पानी के एक मेन पाइपलाइन के फटने से सिंक होल बना. पानी के प्रेशर ने जमीन को काट दिया और बड़ा हिस्सा धंस गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/The Canadian Press/J. Tang
सैन एंटोनियो, अमेरिका
इस सिंक होल ने शहर के एक अधिकारी की जान ली और एक बुरी तरह जख्मी हुआ. गड्ढा इतना बड़ा था कि उसमें दो कारें समा गईं. जांच में पता चला कि पाइपलाइन में धमाके की वजह से गड्ढा बना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/San Antonio Fire Department
लाहौर, पाकिस्तान
शहर के बीचों बीच सड़क पर बने गड्ढे से ट्रक को निकालने की कोशिश करते लोग. दक्षिण एशिया का मानसून बदनाम है. मानसून में भारी बारिश के चलते जमीन धंस गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
शिकागो, अमेरिका
सड़क के बीच में बने इस सिंक होल में तीन कारें गिर गईं. कारों को निकालने की कोशिश करने वाली क्रेन भी सिंक होल ने निगल ली. अधिकारियों के मुताबिक पानी का पाइप फटने से ये नौबत आई.
तस्वीर: Getty Images/S. Olson
सैन डियेगो, अमेरिका
सैन डियागो में 2007 में बने इस सिंक होल ने एक इमारत को निगल लिया. पांच घर बुरी तरह प्रभावित हुए. भूवैज्ञानिकों के मुताबिक यह हादसा जमीन खिसकने से हुआ.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Keystone
ग्वाटेमाला सिटी
चक्रवाती तूफान अगाथा और कुछ ज्वामुखीय विस्फोटों के चलते कई पाइपलाइनें फट गईं. इसकी वजह से मई 2010 में ग्वाटेमाला की राजधानी में एक विशाल सिंक होल बना. तीन साल बाद भी शहर में ऐसा ही एक और सिंक होल बना, जिसने दर्जनों घरों को लील लिया.
तस्वीर: AP
श्मालकाल्डेन, जर्मनी
2010 में श्मालकाल्डेन कस्बे में 30 मीटर चौड़ा और 40 मीटर गहरा सिंक होल बन गया. सिंक होल के चलते 15 परिवारों और 25 लोगों को घर छोड़ना पड़ा. समय बीतने के साथ गड्ढा बड़ा होता गया.