क्या 2019 का चुनाव मुसलमानों के लिए अग्निपरीक्षा है?
अशोक कुमार
५ अप्रैल २०१९
भारत के हर चुनाव में यह सवाल पूछा जाता है कि मुसलमान इस बार किसे वोट देंगे. लेकिन कई मुसलमान विश्लेषकों का कहना है कि 2019 में चुनाव में सवाल यह है कि हिंदू बहुल भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों की क्या जगह होगी.
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भारत के कुल 29 राज्यों में से सिर्फ जम्मू कश्मीर ही मुस्लिम बहुमत वाला राज्य है. बाकी सभी राज्यों में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक 1.3 अरब की जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 17.23 प्रतिशत है. लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है और चुनावों में उनके वोट हार जीत तय करने में अहम भूमिका अदा करते हैं. दलित और पिछड़े वर्गों के साथ मिल कर उनके वोटों ने कई पार्टियों को सत्ता तक पहुंचाया है.
लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में आधुनिक इतिहास पढ़ाने वाले प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं कि सत्ताधारी बीजेपी की तरफ से उग्र हिंदुत्व और ध्रुवीकरण की राजनीति के जरिए मुसलमानों को राजनीतिक रूप से महत्वहीन बनाने की कोशिश हो रही है.
वह कहते हैं, "2014 के आम चुनाव के बाद कुछ ऐसा माहौल बना जिससे लगा कि मुस्लिम वोट को अप्रासांगिक कर दिया गया है. मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को गोलबंद करने की कोशिश की गई. इसका असर यह हुआ जो पार्टियां खुद को सेक्युलर कहती थीं, उन्होंने भी मुसलमानों के मुद्दों पर बोलना बंद कर दिया."
दुनिया में भारत और नेपाल ही हिंदू बहुल देश हैं, लेकिन हिंदू पूरी दुनिया में फैले हैं. मुस्लिम देशों में भी उनकी अच्छी खासी तादाद है. डालते हैं एक नजर मुस्लिम देशों में स्थित मंदिरों पर.
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पाकिस्तान
पाकिस्तान के चकवाल जिले में स्थित कटासराज मंदिर का निर्माण सातवीं सदी में हुआ था. इस मंदिर परिसर में राम मंदिर, हनुमान मंदिर और शिव मंदिर खास तौर से देखे जा सकते हैं. पुरातात्विक विशेषज्ञ इसके रखरखाव में जुटे हैं.
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मलेशिया
मलेशिया में हिंदू तमिल समुदाय के बहुत से लोग रहते हैं और इसलिए यहां बहुत सारे मंदिर हैं. गोमबाक में बातु गुफाओं में कई मंदिर हैं. गुफा के प्रवेश स्थल पर हिंदू देवता मुरुगन की विशाल प्रतिमा है.
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इंडोनेशिया
आज इंडोनेशिया भले ही दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, फिर भी वहां की संस्कृति में हिंदू तौर तरीकों की झलक दिखती है. वहां बड़ी संख्या में हिंदू मंदिर हैं. फोटो में नौवीं सदी के प्रामबानान मंदिर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को देखा जा सकता है.
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बांग्लादेश
बांग्लादेश की 16 करोड़ से ज्यादा की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगभग दस फीसदी है. राजधानी ढाका के ढाकेश्वरी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में और भी कई मंदिर हैं.
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ओमान
फरवरी 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ओमान पहुंचे तो वह राजधानी मस्कट के शिव मंदिर में भी गए. इसके अलावा मस्कट में श्रीकृष्ण मंदिर और एक गुरुद्वारा भी है.
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यूएई
संयुक्त अरब अमीरात में अभी सिर्फ एक मंदिर है जो दुबई में है. इसका नाम शिव और कृष्ण मंदिर है. जल्द ही अबु धाबी में पहला मंदिर बनाया जाएगा जिसकी आधारशिला प्रधानमंत्री मोदी ने रखी.
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बहरीन
काम की तलाश में बहुत से लोग भारत से बहरीन जाते हैं, जिनमें बहुत से हिंदू भी शामिल हैं. उनकी धार्मिक आस्थाओं के मद्देनजर वहां शिव मंदिर और अयप्पा मंदिर बनाए गए हैं. (तस्वीर सांकेतिक है)
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अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की संख्या अब लगभग 1000 ही बची है. इनमें से ज्यादातर काबुल या अन्य दूसरे बड़े शहरों में रहते हैं. अफगानिस्तान में जारी उथल पुथल का शिकार हिंदू मंदिर भी बने. लेकिन काबुल में अब भी कई मंदिर बचे हुए हैं.
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लेबनान
लेबनान के जाइतून में भी हिंदू मंदिर मौजूद है. वैसे लेबनान में रहने वाले भारतीयों की संख्या ज्यादा नहीं है. 2006 के इस्राएल-हिज्बोल्लाह युद्ध के बाद वहां भारतीयों की संख्या में कमी आई.
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'हिंदू आतकंवाद' और राजनीति
2014 में भारतीय जनता पार्टी 'सबका साथ सबका विकास' नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी. बीजेपी को अपने पक्के समर्थकों के अलावा बड़ी मात्रा में ऐसे लोगों का भी वोट मिला जो लगातार दस साल तक चली यूपीए सरकार से मायूस हो चुके थे और बदलाव चाहते थे, नौकरियां चाहते थे, महंगाई पर नियंत्रण चाहते थे और एक बेहतर जिंदगी चाहते थे.
उम्मीद थी कि देश और विदेश में भारत की छवि को चमकाने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी. लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, चुनावी फिजा में धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण की सियासत घुल रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों एक चुनावी भाषण में कहा कि कोई हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता. उनका निशाना विपक्षी कांग्रेस की तरफ था, जिसके शासन काल में भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में हुए धमाके के सिलसिले में हिंदू आतंकवाद शब्द प्रयोग किया गया. 18 फरवरी 2007 को हुए इस हमले में 68 लोग मारे गए थे और मरने वालों में ज्यादातर पाकिस्तानी थे.
उस वक्त जांच एजेंसियों ने इसे आंतकवादी हमला माना और इस मामले में खुद को संत बताने वाले असीमानंद समेत आठ लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. इनमें से एक आरोपी की मौत हो चुकी है जबकि तीन को भगोड़ा घोषित किया गया. असीमानंद समेत जिन चार लोगों के खिलाफ मुकदमा चल रहा है उन्हें भी अदालत ने सबूतों के आभाव में बरी कर दिया.
सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया बढ़ते कट्टरपंथ और शरिया के मुताबिक सजा देने के लिए चर्चा में रहा है. लेकिन इस देश में आज भी लोग बच्चों के नाम हिंदू देवताओं या पौराणिक चरित्रों के नाम रखते हैं.
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कृसना (Krisna)
इंडोनेशिया में हिंदू नामों की वर्तनी कुछ अलग हैं, लेकिन उनका मूल एक ही है. जिसे हम कृष्ण के तौर पर जानते हैं, उसे इंडोनेशिया में कृसना कहा जाता है.
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रामा (Rama)
इंडोनेशिया में इस्लाम के प्रसार से पहले हिंदू और बौद्ध धर्म प्रचलित थे. अब भी हिंदू नाम और संस्कृति दिखती है. इसीलिए आज भी रामा या कहें राम वहां एक प्रचलित नाम है.
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सीता (Sita)
सीता भी इंडोनेशिया में रखे जाने वाले पसंदीदा नामों में से एक है. राम की पत्नी और राजा जनक की बेटी सीता रामायण के सबसे अहम किरादारों में से एक है.
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विसनु (Wisnu)
विसनु यानी विष्णु. इस नाम वाले लोग भी आपको इंडोनेशिया में खूब मिलेंगे. अरकी डिकानिया विसनु नाम के एक नामी अमेरिकी-इंडोनेशियाई बास्केट बॉल खिलाड़ी हैं.
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लक्ष्मी (Lakshmi)
लक्ष्मी नाम जितना प्रचलचित भारत में है, उतना ही इंडोनेशिया में भी है. हिंदू धर्म में लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी के तौर पर पूजा जाता है.
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सरस्वती (Saraswati)
ज्ञान की देवी मानी जाने वाली सरस्वती का नाम भी इंडोनेशिया में बहुत जाना माना है. 2013 में इंडोनेशिया की सरकार ने 16 फीट ऊंची सरस्वती की एक प्रतिमा अमेरिका को भेंट की थी.
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सेतियावान (Setiawan)
सत्यवान नाम आपको भारत में आजकल शायद ही सुनने को मिलता है. लेकिन सत्यवान-सावित्री की पौराणिक कथा से निकले इस नाम को आज भी इंडोनेशिया में शौक से रखा जाता है.
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सावित्री (Savitri)
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री यमराज से अपने पति सत्यावान की जिंदगी को वापस ले आयी थी. सावित्री भी इंडोनेशिया में एक प्रचलित नाम है.
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देवा/देवी (Devi/Deva)
इंडोनेशिया में आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे जिनके नाम देवा या देवी होते हैं. स्वाभाविक रूप से देवा पुरुष तो देवी एक महिला नाम है.
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युदिसथीरा (Yudisthira)
महाभारत और रामायण इंडोनेशिया में अब भी प्रचलित संस्कृति का हिस्सा है. महाभारत में धर्मराज कहे जाने वाले युधिष्ठिर का नाम भी इसीलिए आपको इंडोनेशिया में खूब मिलता है.
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अर्जुना (Arjuna)
अर्जुना भी इंडोनेशिया में एक लोकप्रिय नाम है. महाभारत में श्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ साथ अर्जुन उस गीता उपदेश प्रकरण का भी हिस्सा रहे हैं जो हिंदू दर्शन के बड़े आधारों में से एक है.
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भीमा (bima/Bhima)
भीम पांडवों में दूसरे नंबर पर आते थे और बहुत बलशाही थे. उन्हीं के नाम पर इंडोनेशिया में बीमा या भीमा नाम रखा जाता है. बीमा इंडोनेशिया में एक शहर का नाम भी है.
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पार्वती (Parwati)
पौराणिक कथाओं के अनुसार पार्वती शिव की पत्नी हैं. यह नाम भी इंडोनेशिया में प्रचलित उन नामों से एक है, जिनका मूल हिंदू धर्म से जुड़ा है.
इंद्र (Indra)
इंद्र भी इंडोनेशिया में एक प्रचलित नाम है. देवराज कहे जाने वाले इंद्र को वर्षा का देवता कहा जाता है. उनके दरबार की अप्सराओं और उनके गुस्से को लेकर कई कहानियां हैं.
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गनेसा (Ganesa)
गनेसा नाम हिंदू देवता गणेश के नाम का इंडोनेशियाई संस्करण है. इंडोनेशिया के बांडुंग शहर में मशहूर तकनीकी शिक्षण संस्थान आईटीबी में गनेशा कैंपस बहुत मशहूर है. वहां गणेश की बहुत ही प्रतिमाएं भी हैं.
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गरुणा (Garuna)
गरुणा इंडोनेशिया की सरकारी एयरलाइन कंपनी है जिनका नाम गरुण से प्रेरित है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार गरुण पक्षी भगवान विष्णु की सवारी है.
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सूर्या (Surya/Suria)
सूर्य नाम अब भारत में नई पीढ़ी के बीच पहले जितना प्रचलित नहीं है, लेकिन इंडोनेशिया में अब भी आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे जिनका नाम सूर्या है.
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सब मुद्दे पीछे, हिंदुत्व आगे
ऐसे में मोदी ने कांग्रेस पर "हिंदू आतंकवाद" के जरिए हिंदुओं को बदनाम करने का आरोप लगाया है. इसके पीछे फिर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की सियासत नजर आती है. यही नहीं, उन्होंने दक्षिण भारत में वायनाड सीट से चुनाव लड़ने के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फैसले को भी निशाना बनाया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने लिए ऐसी सीट चुनी जहां मतों के हिसाब से हिंदू अल्पसंख्यक हैं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी किसी हिंदू बहुल सीट से चुनाव लड़ने से डरते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ किरमानी कहते हैं कि बीजेपी की हर बार यही कोशिश होती है कि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करे और हिंदुत्व का मुद्दा उठा कर चुनावी फसल काटे. वह कहते हैं, "बीजेपी की तरफ से जनता को यह बताया जाना चाहिए कि उसने पिछले पांच साल में क्या किया. कितने लोगों को रोजगार दिया. उन किसानों के लिए क्या किया जो आत्महत्या करने को मजबूर हैं. बड़े बड़े उद्योगपति कैसे करोड़ों अरबों रुपये का घपला कर विदेशों में भाग गए. लेकिन ये सारे मुद्दे एक तरफ चले गए क्योंकि बीजेपी फिर से राष्ट्रवाद का मुद्दा ले आई है. वह साबित करने में लगी है कि देश में वही अकेली हिंदुओं की रक्षक है. अकेली वही राष्ट्रवादी पार्टी है."
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बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के दबाव का जवाब कांग्रेस ने नरम हिंदुत्व से देने की कोशिश की है. कई मंदिरों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति को इसी कोशिश का हिस्सा माना जाता है. पिछले साल एक मंदिर में पूजा अर्चना करने गए राहुल गांधी ने खुद को दत्तात्रेय ब्राह्मण बताते हुए कहा कि वह उनका परिवार कश्मीरी पंडित है. लेकिन कांग्रेस की लगातार यह कोशिश भी रही है कि उसकी धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान ना हो. इसीलिए वह मुसलमानों और उनकी पसंदीदा दूसरी पार्टियों के लिए ज्यादा स्वीकार्य है.
दूसरी तरफ, मुस्लिम मतों को हमेशा बीजेपी विरोधी वोट समझा जाता है. माना जाता है कि वे उस उम्मीदवार या पार्टी को चुनते है जो बीजेपी को हराने की स्थिति में हो. किरमानी कहते हैं कि टेक्टिकल वोटिंग मुसलमानों की मजबूरी है. वह कहते हैं, "मुसलमानों पर आरोप लगता है कि वे वोट बैंक की तरह काम करते हैं. किसी एक पार्टी को चुन लेते हैं और उसी को वोट देते हैं. लेकिन उनके पास कोई और चारा नहीं है, क्योंकि बीजेपी उन्हें लगातार एक तरफ धकेलने की कोशिश करती है."
मुसलमान 'खुद जिम्मेदार'
वहीं भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि मुसलमान वोट बैंक की तरह इस्तेमाल हो कर खुद अपनी अहमियत खो रहे हैं. पार्टी प्रवक्ता सैयद जफर इस्लाम इस बात को भी खारिज करते हैं कि बीजेपी हिंदू वोटों को गोलबंद करके मुसलमानों के वोटों की अहमियत को खत्म कर देना चाहती है. वह कहते हैं, "मैं खुद मुस्लिम समुदाय से आता हूं लेकिन दुर्भाग्य से भारत में मुस्लिम समाज के लोगों ने अपने वोटों की हैसियत को खुद खत्म कर दिया है. वे कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की जागीर बन कर रह गए हैं, जो उनके हितों के लिए कोई काम नहीं करती हैं."
बीजेपी प्रवक्ता का कहना है कि मुसलमान भारतीय जनता पार्टी को जितना अछूत मानेंगे और कांग्रेस जैसी पार्टियों का वोट बैंक बनेंगे, उनका उतना ही नुकसान होगा. 'सबका साथ सबका विकास' का नारा दोहराते हुए वह कहते हैं कि मुसलमानों को बीजेपी के बारे में अपनी सोच बदलनी चाहिए.
सैयद जफर इस्लाम मुसलमानों से अपनी सोच बदलने को कहते हैंतस्वीर: DW/A. Kumar
लेकिन बीजेपी और उसके नेता नरेंद्र मोदी के बारे में अपनी सोच बदलना मुसलमानों के लिए इतना आसान नहीं है. उनकी नजर में बीजेपी हमेशा वही पार्टी रहेगी जिसने 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराया जिसके बाद देश भर में हिंदू मुस्लिम दंगे हुए. वे गुजरात के 2002 के दंगों को नहीं भूल सकते जब नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए मुसलमानों को निशाना बनाया गया था. वे पिछले कुछ सालों में लिंचिंग की घटनाओं को नहीं भूल सकते जिसमें गोमांस रखने की अफवाह और गायों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हुए मुसलमानों की हत्याएं की गईं.
ऐसे में, चुनावों में बीजेपी की तरफ से उग्र हिंदुत्व वाली राजनीति मुसलमानों को चिंता में डालने की वजह देती है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं, "2019 के चुनाव में बहुसंख्यक हिंदू आबादी को तय करना है कि वह कैसा भारत चाहते हैं. क्या उन्हें ऐसा भारत चाहिए जिसमें अल्पसंख्यकों के पास कोई अधिकार ना हो, उनकी कोई आवाज ना हो, उन्हें सताया जाए या फिर वे ऐसा भारत चाहते हैं जो धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र हो, जिसमें धार्मिक पहचान की बजाए हर नागरिक को बराबर माना जाए." प्रोफेसर सज्जाद कहते हैं कि इस आम चुनाव में मुसलमान वोटरों के बीच डर, चिंता और दुविधा है.
बुरका, हिजाब या नकाब. ये शब्द तो आपने कई बार सुने होंगे. लेकिन क्या आप शायला, अल अमीरा या फिर चिमार और चादर के बारे में भी जानते हैं. चलिए जानते हैं कि इन सब में क्या फर्क है.
मुस्लिम पहनावा
सार्वजनिक जगहों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में सबसे ताजा नाम ऑस्ट्रिया का है. बुर्के के अलावा मुस्लिम महिलाओं के कई और कपड़े भी अकसर चर्चा का विषय रहते हैं.
शायला
शायला एक चोकोर स्कार्फ होता है जिससे सिर और बालों को ढंका जाता है. इसके दोनों सिरे कंधों पर लटके रहते हैं. आम तौर पर इसमें गला दिखता रहता है. खाड़ी देशों में शायला बहुत लोकप्रिय है.
हिजाब
हिजाब में बाल, कान, गला और छाती को कवर किया जाता है. इसमें कंधों का कुछ हिस्सा भी ढंका होता है, लेकिन चेहरा दिखता है. हिजाब अलग अलग रंग का हो सकता है. दुनिया भर में मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं.
अल अमीरा
अल अमीरा एक डबल स्कार्फ होता है. इसके एक हिस्सा से सिर को पूरी तरह कवर किया जाता है जबकि दूसरा हिस्सा उसके बाद पहनना होता है, जो सिर से लेकर कंधों को ढंकते हुए छाती के आधे हिस्से तक आता है. अरब देशों में यह काफी लोकप्रिय है.
चिमार
यह भी हेड स्कार्फ से जुडा हुआ एक दूसरा स्कार्फ होता है जो काफी लंबा होता है. इसमें चेहरा दिखता रहता है, लेकिन सिर, कंधें, छाती और आधी बाहों तक शरीर पूरी तरह ढंका हुआ होता है.
चादर
जैसा कि नाम से ही जाहिर है चादर एक बड़ा कपड़ा होता है जिसके जरिए चेहरे को छोड़ कर शरीर के पूरे हिस्से को ढंका जा सकता है. ईरान में यह खासा लोकप्रिय है. इसमें भी सिर पर अलग से स्कार्फ पहना जाता है.
नकाब
नकाब में पूरे चेहरे को ढंका जाता है. सिर्फ आंखें ही दिखती हैं. अकसर लंबे काले गाउन के साथ नकाब पहना जाता है. नकाब पहनने वाली महिलाएं ज्यादातर उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में दिखायी देती हैं.
बुरका
बुरके में मुस्लिम महिलाओं का पूरा शरीर ढंका होता है. आंखों के लिए बस एक जालीनुमा कपड़ा होता है. कई देशों ने सार्वजनिक जगहों पर बुरका पहनने पर प्रतिबंध लगाया है जिसका मुस्लिम समुदाय में विरोध होता रहा है.
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हिंदुओं की गोलबंदी कितनी कारगर
दिल्ली के एक थिंकटैंक सेंटर फॉर द स्टडीज ऑफ डेवेलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) में एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद भी इस चुनाव को मुसमलानों के लिए बेहद अहम मानते हैं. लेकिन वह इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि मुसलमान किसी खास पार्टी के वोट बैंक की तरह काम करते है या फिर हिंदुओं को गोलबंद करके मुसलमानों की चुनावी अहमियत तथाकथित रणनीति कारगर हो रही है. वह कहते हैं कि मुसलमान मतदाता किसे कहां वोट देगा, यह बात कई बार स्थानीय मुद्दों से तय होती है. हालिया विधानसभा चुनावों के आंकड़ों के आधार पर वह कहते हैं कि इस बीच बीजेपी को पसंद करने मुसलमानों की संख्या भी बढ़ रही है. हालांकि यह एक छोटा सा समूह है, लेकिन इसमें वृद्धि का संकेत हैं.
हिलाल अहमद कहते हैं कि 2014 के बाद से देश में अलग अलग चुनावों में 4,200 से ज्यादा सीटों पर चुनाव हुआ है और बीजेपी ने इनमें से सिर्फ 1,800 जीती हैं. बीजेपी को हालिया विधानसभा चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में उसे जीत तो मिली लेकिन मुकाबला कांटेदार रहा. कर्नाटक के सत्ता संघर्ष में भी वह कांग्रेस से पिछड़ गई. इससे साफ पता चलता है कि मतदाता वोट देते समय धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण के अलावा दूसरे मुद्दों पर भी ध्यान दे रहा है. हिलाल अहमद कहते हैं, "जो माहौल बना दिया गया है उसमें तो यही लगता है कि बीजेपी हिंदुत्व की जो राजनीति कर रही है, वही आखिरी सत्य है, लेकिन हालिया चुनाव और उनके नतीजे कुछ और कहानी बयान करते हैं."
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दिलचस्प बात यह है कि धर्म और ध्रुवीकरण की इस बहस में मुसलमानों के असल मुद्दे दब जाते हैं, जिनकी बात होनी चाहिए. आजादी के 70 साल बाद भी मुसलमान आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रहा है. शैक्षिक संस्थानों से लेकर सरकारी नौकरियों तक में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिखता. संसद और विधानसभाओं में भी उनकी पर्याप्त तादाद नजर नहीं आती.
आबादी के अनुपात में देखें तो लोकसभा के कुल 545 सांसदों में 77 मुसलमान सांसद होने चाहिए. लेकिन आज तक किसी लोकसभा में इतने मुस्लिम सांसद नहीं रहे. निवर्तमान लोकसभा में कुल 23 मुस्लिम सांसद थे जो कुल संख्या का सिर्फ 4.24 प्रतिशत है. प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात से पिछले तीस साल के दौरान कोई मुस्लिम सांसद लोकसभा नहीं पहुंचा है. इसके अलावा राजस्थान में आजादी के बाद से अब तक सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार ने लोकसभा का चुनाव जीता है.
सामाजिक और राजनीति नजरिए से भारत के मौजूदा हालात मुसलमानों के लिए ज्यादा खुशनुमा नजर नहीं आते. लेकिन हिलाल अहमद बेहतर भविष्य को लेकर आशावान हैं. वह कहते हैं, "मुस्लिम मतदाताओं की प्रासंगिकता इस बात से तय नहीं होती कि राजनीतिक दल उन्हें किस तरह से देख रहे हैं. उनकी प्रासंगिकता इस बात से तय होगी कि वे खुद अपने आप को कैसे देखते हैं. हमारे आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों का विश्वास भारतीय लोकतंत्र में बहुत ज्यादा है. इसी का नतीजा है कि वह चुनाव में पूरे उत्साह के साथ भाग लेते हैं."
2019 का आम चुनाव भी भारतीय मुसलमानों के लिए मौका है कि वे उन पार्टियों और उम्मीदवारों को चुने जो उन्हें बेहतर भविष्य दे पाएं.
दुनिया में किस धर्म के कितने लोग हैं?
दुनिया में दस में से आठ लोग किसी ना किसी धार्मिक समुदाय का हिस्सा हैं. एडहेरेंट्स.कॉम वेबसाइट और पियू रिसर्च के 2017 के अनुमानों से झलक मिलती हैं कि दुनिया के सात अरब से ज्यादा लोगों में कितने कौन से धर्म को मानते हैं.
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ईसाई
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 31.5 प्रतिशत और आबादी लगभग 2.2 अरब है.
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मुसलमान
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसे मानने वालों की आबादी 1.6 अरब मानी जाती है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 1.6 अरब है.
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धर्मनिरपेक्ष/नास्तिक
जो लोग किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते, उनकी आबादी 15.35 प्रतिशत है. संख्या के हिसाब यह आंकड़ा 1.1 अरब के आसपास है.
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हिंदू
लगभग एक अरब आबादी के साथ हिंदू दुनिया में तीसरा बड़ा धार्मिक समुदाय है. पूरी दुनिया में 13.95 प्रतिशत हिंदू हैं.
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चीनी पारंपरिक धर्म
चीन के पारंपरिक धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 39.4 करोड़ है और दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत है.
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बौद्ध धर्म
दुनिया भर में 37.6 करोड़ लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. यानी दुनिया में 5.25 प्रतिशत लोग भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का अनुकरण कर रहे हैं.
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जातीय धार्मिक समूह/अफ्रीकी पारंपरिक धर्म
इस समूह में अलग अलग जातीय धार्मिक समुदायों को रखा गया है. विश्व आबादी में 5.59 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है.
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सिख
अपनी रंग बिरंगी संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है
तस्वीर: NARINDER NANU/AFP/Getty Images
यहूदी
यहूदियों की संख्या दुनिया भर में 1.4 करोड़ के आसपास है. दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.20 प्रतिशत है.
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जैन धर्म
मुख्य रूप से भारत में प्रचलित जैन धर्म के मानने वालों की संख्या 42 लाख के आसपास है.
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शिंटो
यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या सिर्फ 40 लाख के आसपास है.