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समाज

क्या है मराठा समुदाय की मांग?

क्रिस्टीने लेनन
२५ जुलाई २०१८

महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभावशाली स्थान रखने वाला मराठा समुदाय अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहा है. अतीत में मूक मोर्चा निकाल कर सरकार के कानों में अपनी बात पहुंचा चुका मराठा समुदाय अब आर पार के मूड में है.

Indien | Demonstrationen in Mumbai
तस्वीर: IANS

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आग भड़क उठी है. अब तक शांतिपूर्ण तरीके से अपने लिए आरक्षण की मांग करने वाला मराठा समुदाय सरकार के रवैये से नाराज है. मराठा आरक्षण का मामला कोर्ट में होने की वजह से सरकार के हाथ बंधे हुए हैं. वह आंदोलनकारियों को आरक्षण पर केवल आश्वासन दे सकती है पर मांग नहीं मान सकती. आंदोलनकारी अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं.

मराठा असंतोष की वजह 

ताकतवर मराठा समुदाय द्वारा आरक्षण की मांग चौकाने वाली है. महाराष्ट्र के बाहर लोगों को यह मांग बेतुकी और राजनीति से प्रेरित लग सकती है लेकिन इसके पीछे मराठा समुदाय का असमान विकास है. समुदाय का एक छोटा तबका ही सत्ता और समाज में ऊंची पैठ रखता है. इस आंदोलन में शामिल युवा राजू चव्हाण कहते हैं कि समाज का बड़ा तबका शैक्षिक और आर्थिक रूप से अब तक पिछड़ा है. अधिकतर प्रदर्शनकारी असंतुलित विकास से प्रभावित हैं.

मराठा आरक्षण को सही ठहराने वाले रवि पाटिल कहते हैं कि कुछ नेताओं के मंत्री और मुख्यमंत्री बन जाने से समुदाय समृद्ध नहीं हो जाता. समुदाय के अधिकतर लोग अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च भी वहन नहीं कर पाते. पढ़ाई के लिए खेत गिरवी रखना या कर्ज लेना आम है. कृषि व्यवसाय से जुड़े कई मराठा किसान खेती में नुकसान, फसलों के दाम में कमी और ब्याज के बढ़ते बोझ के चलते मौत को गले लगा चुके हैं. कृषि क्षेत्र में संकट ने मराठा असंतोष की पृष्ठभूमि तैयार की है.

तस्वीर: IANS

मराठा आंदोलन खड़ा करने की शुरुआत करीब एक दशक पहले ही हो चुकी थी. आरक्षण की मांग भी लगभग 10 सालों से चली आ रही है. पिछली कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने आरक्षण देने का फैसला लेते हुए विधेयक को विधानसभा में पास कर दिया था लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग आयोग से मराठा समाज की आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर रिपोर्ट मांगी है, जिसके बाद ही मराठा आरक्षण पर कोई फैसला संभव है.

यही मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस की मुश्किल भी है. मराठों के विरोध के चलते इस बार देवेंद्र फड़णवीस शासकीय पूजा के लिए पंढरपुर नहीं पहुंचे. परंपरा के अनुसार राज्य के मुख्यमंत्री हर साल अपनी पत्नी के साथ पंढरपुर जाते हैं और पहली पूजा में शामिल होते हैं. मराठों में इसका भी गुस्सा है.

आंदोलन उग्र होने की वजह

इस सप्ताह अचानक तेज और उग्र हुए आंदोलन के पीछे राज्य सरकार का वह बयान है जिसमें उसने कहा था कि वह जल्द ही 72 हजार सरकारी नौकरियों की घोषणा कर सकती है. मराठा समुदाय चाहता है कि इस भर्ती अभियान के पहले उनको आरक्षण मिल जाना चाहिए ताकि उनके समुदाय को किसी प्रकार का नुकसान ना हो.

तस्वीर: IANS

इसे लेकर प्रदर्शन शुरू ही हुए थे कि औरंगाबाद जिले के कायगांव निवासी प्रदर्शनकारी काका साहब शिंदे ने गोदावरी नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली. शिंदे की मौत के बाद महाराष्ट्र के कई हिस्सों में नए सिरे से प्रदर्शन शुरू हो गए. मंगलवार को औरंगाबाद में किसान जगन्नाथ सोनावने ने आरक्षण की मांग को लेकर जहर खा लिया. आरक्षण के चलते होने वाली यह दूसरी मौत है. एक पुलिसकर्मी की मौत भी हुई है लेकिन उसका कारण साफ नहीं है.

इन मौतों के बाद राज्य की कई जगहों से हिंसा और आगजनी की खबरे आई हैं. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहन एवं बस समेत कई वाहनों को नुकसान पहुंचाया. मराठा समुदाय से आने वाले राज्य सरकार में मंत्री चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि सरकार कानून के मुताबिक आरक्षण देने का प्रयास कर रही है. उन्होंने आंदोलनकारियों से संयम बनाए रखने का अनुरोध किया है.

तस्वीर: IANS

सरकार की मुश्किल

मराठा आंदोलन की वजह से राज्य की बीजेपी सरकार मुश्किल में है. दरअसल राज्य में मराठों की आबादी लगभग 30 फीसदी है. इतनी बड़ी आबादी को नाराज कर सत्ता में बने रह पाना या अगले साल होने वाले चुनाव में वापिस सत्ता पाना बीजेपी सरकार के लिए संभव नहीं है.

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित पचास फीसदी की सीमारेखा के पार जाकर मराठों को आरक्षण देना भी संभव नहीं है. ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसदी कोटे में ही मराठों को शामिल करने का जोखिम सरकार नहीं उठा सकती क्योंकि ऐसा करने पर एक अलग ओबीसी आंदोलन शुरू हो जाएगा. ओबीसी वर्ग आरक्षण में किसी तरह के बदलाव के खिलाफ है.

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