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क्यों खाली पड़े हैं भारत के इंजीनियरिंग कॉलेज

११ दिसम्बर २०१७

भारत में इंजीनियरिंग कॉलेजों की पढ़ाई अब छात्रों को लुभाने में असफल नजर आ रही है. एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में तकरीबन आधे से अधिक सीट खाली पड़ी हुई हैं.

Indian Institutes of Technology in Kota
तस्वीर: AP

इंडियन एक्सप्रेस ने देश में तकनीकी शिक्षा की उच्च संस्था ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के डाटा का हवाला देते हुए कहा है कि देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की आधी से भी अधिक सीटें खाली पड़ी हुई हैं. इमसें कहा गया है कि भारत में तकरीबन 3,291 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिसमें साल 2016-17 के दौरान 15.5 लाख बीई/बीटेक सीटें खाली पड़ी रहीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2015-16 में देश भर से तकरीबन 8 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट निकले. यह आंकड़ा उस साल साइंस से 12वीं पास करने वालों का लगभग एक चौथाई है. वहीं कॉलेजों में 50 फीसदी से अधिक सीटें खाली पड़ी रहीं. मसला सिर्फ सीटें खाली रहने तक का नहीं है, आंकड़ें बताते हैं कि पिछले पांच साल में कैंपस प्लेसमेंट 50 फीसदी के करीब या इससे कम रहा है. 

विशेषज्ञ इसे गंभीर समस्या मानते हैं. उनके मुताबिक समस्या का समाधान निकालने के लिए इसकी तह में जाना होगा. विशेषज्ञ देश में कॉलेज चलाने के लिए आसानी से दी जाने वाली अनुमति पर भी सवाल उठाते हैं. इनका कहना है कॉलेजों के निम्न मानक पढ़ाई को प्रभावित करते हैं. ऐसे में कॉलेज जिन लोगों को तैयार करेंगे उन्हें उद्योग जगत में काम के कम अवसर मिलेंगे. साल 2011 में नैस्कॉम ने अपने एक सर्वे में कहा था कि देश में हर साल निकलने वाले कुल इंजीनियर्स में से 17.5 फीसदी ही ऐसे लोग हैं जो रोजगार योग्य हैं.

आईआईटी कानपुर के निदेशक संजय धांडे कहते हैं, "पहले ये वकीलों, बीए या अन्य कोर्स में होता था लेकिन लोग अब इंजीनियरिंग ग्रेजुएट को भी वैसे ही देखते हैं. अब देश में तमाम इंजीनियर्स हैं जिनके पास काम नहीं है, ऐसे में वे ऐसा कोई भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं जो उनकी शिक्षा से थोड़ा बहुत भी जुड़ा हुआ हो." विशेषज्ञ इंजीनियरिंग के इस गिरते स्तर के लिए पाठ्यक्रम को भी दोषी मानते हैं जो उद्योग जगत के साथ कदम से कदम मिलाने में असफल रहा है.

आईआईटी बॉम्बे के पूर्व चैयरमेन और परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोडर कहते हैं कि अगर समय रहते इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत में जारी प्रोजेक्ट मसलन मेक इन इंडिया आदि पर सवाल खड़े हो सकते हैं. 

अपूर्वा अग्रवाल

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