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समाज

क्यों खास है चीन का एमबीए कोर्स

१७ दिसम्बर २०१८

दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में कारोबारियों की नई खेप देश में चल रहे बिजनेस प्रोग्राम तैयार कर रही है. ऐसे प्रोग्राम जिनकी थ्योरी तो वेस्टर्न होती है लेकिन सारी केस स्टडीज चाइनीज.

China Peking Business School der Renmin University
तस्वीर: Getty Images/AFP/Wang Zhao

चीन के बिजनेस स्कूल में ग्रेजुएशन कर रहे छात्रों के बीच अकसर चर्चा होती है कि कैसे किसी कंपनी को अपने कर्मचारियों की हड़ताल से निपटना चाहिए. छात्रों की इस चर्चा को प्रोफेसर ध्यान से सुनते हैं. चर्चा में जब छात्र हड़ताल खत्म करने के बेहतर तरीके सुझाते हैं तो शिक्षक उन्हें किताब में लिखी चीनी रणनीतियों के बारे में बताते हैं. किताबों में छपी रणनीतियों के तहत श्रमिकों की कार्रवाई रोकने के लिए कानून का सहारा लिया जाना चाहिए.

साल 1978 के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बाजार सुधारों को अपनाया, जिसके बाद देश में कई नई कंपनियां बनी. कंपनियों के बनने के बाद ही नई पीढ़ी के उद्यमियों को ट्रेनिंग देने की जरूरत महसूस होने लगी. चीन की राजधानी बीजिंग के एक बिजनेस स्कूल रेनमिन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना के डीन माओ जिए कहते हैं, "आज से 40 साल पहले तक देश में बिजनेस स्कूल में बारे में सोचा भी नहीं जाता था." उन्होंने बताया कि 40 साल पहले तक देश में बिजनेस रिसर्च इंस्टीट्यूट नहीं होते थे, लेकिन 1978 में जब कम्युनिस्ट पार्टी ने बाजार सुधार किए तो चीन में कई कंपनियां पहुंची और बाजार ने विदेशी निवेश भी आकर्षित किया.

जब नया पैसा चीन में पहुंचा तो देश में कंपनियों के प्रबंधन की जरूरत महूसस की जाने लगी और इसमें वहां के बिजनेस स्कूलों ने जमकर योगदान दिया. रेनमिन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना देश की पहली बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन यूनिवर्सिटी होने का दावा करती है. इस यूनिवर्सिटी में छात्र प्रबंधन के साथ-साथ संगठनात्मक कार्यों को भी सीखते हैं. यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बताते हैं कि सारी थ्योरी पश्चिम की होती है लेकिन इनकी केस स्टडी चाइनीज होती हैं. जिए ने बताया कि पढ़ाई के दौरान अलीबाबा जैसी चीनी कंपनियों के बारे में पढ़ाया जाता है. वहीं छात्र कहते हैं बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और परिवर्तन के बीच उनके लिए रचनात्मक रहना जरूरी हो जाता है. 

तस्वीर: Getty Images/AFP/Wang Zhao

क्या पढ़ते हैं

रेनमिन यूनिवर्सिटी से हर साल करीब दो हजार पोस्ट-ग्रेजुएट छात्र निकलते हैं. इसमें से करीब आधे एमबीए कोर्स करके निकलते हैं. हर साल करीब 100 छात्र विदेशों से चीन के इस संस्थान में पढ़ने आते हैं. जिए ने कहा, "विदेशी छात्र चीन के माहौल और यहां की पढ़ाई को समझने के लिए आते हैं." जिए इस बात को नहीं मानते कि चीन में उद्यमशीलता और कंपनियों से जुड़़ी पढ़ाई मार्क्सवाद के खिलाफ है. जिए ने कहा, "हम यही सोचते हैं कि उद्यमों को कैसे बढ़ाया जाए, मुनाफा कैसे कमाया जाए और इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो कम्युनिस्ट पार्टी के सिद्धांतों से टकराता हो."

चीन अपनी सरकारी कंपनियों की बदौलत ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है. इतना ही नहीं चीन तकरीबन 370 अरबपतियों का घर भी है लेकिन देश में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक खाई गहराती जा रही है. पूंजीवाद की बातों को अब चीन में चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद की तरह पेश किया जा रहा है. विश्लेषक कहते हैं कि अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी बस कहने को मार्क्सवाद की तरफ है, असल में तो सारी बातें अब आर्थिक पहलुओं पर टिक गईं हैं. हालांकि कुछ विश्लेषक ये भी कहते हैं कि चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ऐसा नहीं चाहते और उन्होंने इसे बदलने की कोशिश की है. पार्टी की बागडोर संभालने के बाद साल 2012 से ही पार्टी कैडर में कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो को पढ़ना अनिवार्य बनाया गया है.

इसी तरह के बदलावों के बीच एक बदलाव यह भी किया गया कि अब सभी शैक्षणिक संस्थाओं की एक पार्टी कमेटी है जो सभी अहम निर्णयों में शामिल होती है. चीन में एमबीए की पढ़ाई कितनी कारगर है ये तो यहां के छात्र ही बता सकते हैं, लेकिन चीन के ऐसे ही बिजनेस स्कूल से पढ़े अलीबाबा कंपनी के सहसंस्थापक जैक मा समेत कई उद्यमी छात्रों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है.

एए/आरपी (एएफपी)

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