1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्यों चाहिए चीन को विमानवाही पोत?

११ अगस्त २०११

चीन ने 300 मीटर लंबा और 3000 नौसैनिकों की क्षमता वाला पहला विमानवाहक पोत समुद्र में उतारा है. भारत और जापान जैसे चीन के पड़ोसी उसके शस्त्रीकरण अभियान से नाखुश हैं जबकि अमेरिका ने पूछा कि उसे विमानवाहक क्यों चाहिए.

वारयाग पोततस्वीर: AP

चीन ने कभी सोवियत संघ में बनाए गए, यूक्रेन से खरीदे गए और अब खुद के तैयार किए गए हथियारों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणओं से सज्जित विमानवाही युद्धपोत को समुद्र में पहली यात्रा के लिए उतारा है. 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद वारजाग नामक इस युद्धपोत पर काम रोक दिया गया था. अब उत्तरी चीन के दालियान में इसके निर्माण को पूरा कर लिया गया है. चीनी मीडिया के अनुसार इस पर 30 लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टरों को रखने की जगह है.

सांकेतिक महत्व ज्यादा

शंघाई विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्री नी लेक्सियोंग का कहना है कि इसका व्यवहारिक से ज्यादा सांकेतिक महत्व है. वह कहते हैं, "हम नौवहन शक्ति है और हमें उसी के हिसाब अपग्रेड भी करना चाहिए, चाहे यह विमानवाही या अन्य युद्धपोत हों, जैसा अमेरिका या ब्रिटेन ने किया है."

चीन हथियारों का विकास करने में लगा हुआ हैतस्वीर: AP

ताइवान के प्रो. लिन चोंग-पिन के अनुसार नए युद्धपोत के विकास के साथ चीन के तीन लक्ष्य जुड़े हैं, चीनी मालवाही जहाजों के लिए समुद्री मार्गों की सुरक्षा, नौसेना का विस्तार और राष्ट्रीय चेतना को मजबूत बनाना. दुनिया भर में हथियारों पर नजर रखने वाली संस्था सिपरी के बैर्न्ट बर्गर का कहना है, "चीन के अंदर युद्धपोत का इस्तेमाल हमले का शिकार न बनने की बढ़ती क्षमता और चीन की मजबूती की भावना के प्रदर्शन के लिए किया जाएगा."

रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का विमानवाही युद्धपोत बढ़ते क्षेत्रीय तनाव के बीच पड़ोसियों के लिए मनोवैज्ञानिक चोट होगा. चीनी सेना पर अमेरिकी विशेषज्ञ रिक फिशर का कहना है कि चीन पोत पर रिपोर्ट की अनुमति दे रहा है लेकिन अपनी युद्धपोत परियोजना और नौसैनिक महात्वाकांक्षाओं के बारे में कुछ नहीं बता रहा. ब्रसेल्स स्थित चीनी विशेषज्ञ जोनाथन होलस्लाग का कहना है कि चीन के नए युद्धपोत को चीन की बढ़ती सैन्य महात्वाकांक्षा का एक और संकेत समझा जाएगा. उनका कहना है कि इससे पड़ोसी देश अपनी क्षमता बढ़ाना शुरू कर सकते हैं.

तस्वीर: AP

भारत के पास है युद्धपोत

चीन की सरकार ने कहा है कि पोत पड़ोसियों के लिए खतरा नहीं है. चीन ने बार बार कहा है कि सोवियत काल में निर्मित युद्धपोत का इस्तेमाल सिर्फ प्रशिक्षण और शोध के लिए किया जाएगा. बुधवार को एक रिपोर्ट में समाचार एजेंसी शिनहुआ ने लिखा कि चीन सुरक्षा परिषद का अकेला सदस्य था जिसके पास विमानवाही युद्धपोत नहीं था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के पास ऐसा युद्धपोत है.

लेकिन चीनी रक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित एक वेबसाइट ने कहा है कि युद्धपोत क्षेत्रीय विवादों में काम आएगा. सरकार द्वारा संचालित पीएलए डेली के वरिष्ठ संवाददाता ने एक वेब लेख में कहा है कि इसका विवादों के समय इस्तेमाल होना चाहिए. चीन के सरकारी अखबारों और वेबसाइटों का कड़ा संपादन होता है. प्रेक्षकों का मानना है कि गुओ जियानयू की टिप्पणी भले ही सरकार में आम सहमति को न दिखाए, पर उसे ऊपर के लोगों का समर्थन प्राप्त जरूर प्राप्त है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

अमेरिका की चिंता

बुधवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने कहा था अमेरिकी प्रशासन इस तरह के उपकरण के लिए चीन की किसी भी प्रकार की सफाई का स्वागत करेगा. उन्होंने कहा, "यह हमारी व्यापक चिंता का हिस्सा है कि चीन दूसरे देशों की तरह पारदर्शी नहीं है. अपनी सैन्य खरीद और रक्षा बजट के मामले में वह अमेरिका जैसा पारदर्शी नहीं है."

दूसरे देशों ने भी अतीत में इस तरह की चिंता जताई है. चीन अपने रक्षा बजट पर खर्च बढ़ा रहा है और सेना का विस्तार कर रहा है जबकि चीन के पूर्वी और दक्षिणी सागर के देश अपने क्षेत्रीय दावों पर खुलेआम जोर देने लगे हैं.

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नए ढंग से सज्जित सिर्फ एक युद्धपोत के बदले चीन के रक्षा मंत्रालय ने और एक-दो नए युद्धपोत बनाने की परियोजना शुरू की है. चीन तेजी से अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा रहा है. जनवरी में उसे रडार को छकाने वाले युद्धक विमान विकसित करने की जानकारी दी थी. वह बैलिस्टिक मिसाइल बनाने पर भी काम कर रहा है जो हजारों किलोमीटर दूर स्थित युद्धपोतों पर भी हमला कर पाएगी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें