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क्यों तेजी से नौकरियां छोड़ रहे हैं लोग

अविनाश द्विवेदी
२७ अगस्त २०२१

दुनिया के कुल वर्कफोर्स में से 41 फीसदी लोग इस साल नौकरी से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं. इस आंकड़े के मुताबिक आमतौर पर जितने लोग हर साल नौकरियां बदलना चाहते हैं, इस साल उससे दोगुने लोग इस बारे में सोच रहे हैं.

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तस्वीर: Fotolia/ Picture-Factory

दिल्ली में रहने वाले अनुराग ने सिर्फ पांच महीने पहले अपनी कंटेंट डेवलपर की नौकरी से ऊबकर नई नौकरी शुरू की थी. लेकिन अब वे अच्छी 'वर्किंग कंडीशन' की चाह में फिर से नई नौकरी खोज रहे हैं. अनुराग अकेले नहीं हैं, वे दुनिया के उन करोड़ों कर्मचारियों में से एक हैं, जो तेजी से नई नौकरी ढूंढ़ रहे हैं और इनके लिए अप्लाई कर रहे हैं.

माइक्रोसॉफ्ट 2021 वर्क ट्रेंड इंडेक्स के मुताबिक दुनिया के कुल वर्कफोर्स में से 41 फीसदी लोग इस साल नौकरी से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं. इस आंकड़े के मुताबिक आमतौर पर जितने लोग हर साल नौकरियां बदलना चाहते हैं, इस साल उससे दोगुने लोग इस बारे में सोच रहे हैं.

तेजी से हो रही भर्तियां

अच्छे अवसर मौजूद होने के चलते 'व्हाइट कॉलर जॉब' (ऑफिस में बैठकर काम) करने वाले लोगों को नई नौकरियां मिलना आसान हुआ है. जानकार मानते हैं कि फिलहाल यह कई दशकों में वर्कफोर्स की सबसे बड़ी अदला-बदली है. कोरोना से जन्मी अनिश्चितता के बीच कई स्किल्ड कर्मचारियों ने करियर और जीवन के बारे में अच्छी तरह सोचकर ऐसा फैसला किया है. जिन्होंने कोरोना वायरस महामारी के दौरान दबाव में अपना समय गुजारा, वे अब अपने लिए नए अवसरों की तलाश में हैं और वैक्सीनेशन में हुई बढ़ोतरी से खुलते कारोबार और गतिविधियों के चलते इन्हें अच्छे अवसर आसानी से मिल रहे हैं.

कोरोना के दौर में बढ़ता दबावतस्वीर: Robin Utrecht/picture alliance

इंदौर में एक रिक्रूटमेंट एजेंसी में एचआर एक्सपर्ट समृद्धि दुबे इस बात पर मुहर लगाती हैं, "पिछले साल जब लॉकडाउन लगा तो कई लोगों का रिक्रूटमेंट रोकना पड़ा. कई लोग जिन्हें ऑफर लेटर दिया जा चुका था, उन्हें भी कंपनियों ने हायर नहीं किया. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर का रिक्रूटमेंट पर कोई असर नहीं पड़ा. बल्कि इस बार लॉकडाउन के बावजूद कंपनियों की ओर से वर्कफोर्स की डिमांड काफी बढ़ी और ज्यादा लोगों को नौकरी मिली. साल की दूसरी तिमाही में इसमें और तेजी आई है."

12-12 घंटे किया काम

अनुराग कहते हैं, "कंपनियां फिलहाल ज्यादा पैसे देने को तैयार हैं, यह मायने रखता है. मैं कंपनी में काम के ज्यादा अच्छे माहौल की तलाश में भी हूं." साल 2020 में पहली बार लगे लॉकडाउन से अब तक लोग घरों में बंद रहकर बिना तय समय के सुबह से शाम तक ऑफिस का काम करके थक चुके हैं. यह भी तेजी से नौकरियां छोड़ने की एक बड़ी वजह है.

समृद्धि दुबे कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान कई कंपनियों में कर्मचारियों को 12-12 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ा, इसलिए जहां उन्हें काम का माहौल सही लग रहा है, वे उस कंपनी की ओर जा रहे हैं. वे बताती हैं कि कर्मचारियों पर इस तरह काम का दबाव डालने वाली कंपनियों में कई बड़ी भारतीय और विदेशी कंपनियां भी शामिल रही हैं.

इस्तीफे और भर्तियां जारी

कई एचआर ने बताया है कि अर्न्स्ट एंड यंग (EY), केपीएमजी, डेलॉयट, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और पीडब्ल्यूसी जैसी बड़ी कंपनियों में काफी भर्तियां हो रही हैं. इसके अलावा भारत में आईटी सेक्टर की ज्यादातर बड़ी कंपनियों में भी बड़ी संख्या में भर्तियां हो रही हैं. उनके मुताबिक कई कंपनियों में कर्मचारियों की बढ़ी मांग की वजह आर्थिक गतिविधियों का सामान्य होना जरूर है लेकिन एक वजह यहां से बड़ी संख्या में लोगों का जॉब छोड़कर जाना भी है.

नौकरी बदलने का बढ़ता ट्रेंडतस्वीर: Jens Kalaene/dpa/picture alliance

समृद्धि कहती हैं कि स्टार्टअप में परिस्थितियां ज्यादा खराब हैं. उनके मुताबिक इनमें कर्मचारियों को दिनभर काम करना पड़ता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्टअप खर्च बचाने के लिए एक ही कर्मचारी को कई जिम्मेदारियां दे देते हैं. ऐसे में 18 महीने से रुके हुए इस्तीफे अब एक साथ सामने आ रहे हैं. समृद्धि बताती हैं कि कई लोग ज्यादा काम से इतने परेशान थे कि उन्होंने अपनी वर्तमान सैलरी पर नौकरियां बदल लीं. यहां तक कि कुछ लोगों ने दबाव से ऊबकर बिना कोई नौकरी ढूंढ़े ही इस्तीफा दे दिया. हालांकि उनके मुताबिक ऐसे लोग अब धीरे-धीरे नौकरियों मे वापस भी आने लगे हैं.

फ्लैक्सिबल वर्किंग लुभा रही

जानकार कहते हैं कि कोरोना के बाद हो रही तेज आर्थिक रिकवरी ने दुनियाभर के कर्मचारियों के नौकरियों के प्रति आत्मविश्वास को और बढ़ाने का काम किया है. इसका असर लोगों की कमाई पर भी दिख रहा है. यूरोप में जहां वेतन में 3-5 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, वहीं भारत में इस साल लोगों के वेतन में 7.7 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है.

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कर्मचारियों को ज्यादा वेतन देना हमेशा उन्हें अपनी ओर खींचने का बेहतरीन तरीका रहा है लेकिन अभी कंपनियां वर्क फ्रॉम होम या 'फ्लैक्सिबल वर्किंग' (जब, जहां, जैसे चाहें काम करें) का अवसर देकर भी उन्हें लुभा रही हैं. कंपनी जॉब्स डॉट कॉम के मुताबिक ज्यादातर कर्मचारी भी ऐसी नौकरियां ढूंढ रहे हैं, जिनमें उन्हें कहीं से भी काम करने की आजादी मिल सके.

आएगा बुलावा तो जाना पड़ेगा

हालांकि जानकार मानते हैं कि इन बदलावों के बावजूद अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कर्मचारियों और कंपनियों के बीच का संबंध हमेशा के लिए बदलने वाला है. वे कहते हैं, अभी जो परिस्थितियां चल रही हैं, वह जल्द ही बदलेंगी और कई कंपनियां सुरक्षा या अन्य वजहों से अपने कर्मचारियों को फिर से ऑफिस बुलाना शुरू कर देंगी.
बैंकिंग, फाइनेंस, एचआर और कई ऐसे सेक्टर पहले ही मौजूद हैं, जिनमें कंपनियां नहीं चाहतीं कि उनके कर्मचारी अपने पर्सनल लैपटॉप या कंप्यूटर के जरिए काम करें. ऐसा करने से

वर्क फ्रॉम होम ने बढ़ाई संभावनाएंतस्वीर: DW/I. Jabeen

उन्हें डेटा चोरी का डर रहता है. ऐसे में जल्द ही और ज्यादा कर्मचारियों के ऑफिस वापस लौटने की उम्मीद है. एक सर्वे के अनुसार जर्मनी में 77 प्रतिशत सांसदों और उद्योग जगत के मैनेजर डेटा की चोरी को लोगों के लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं. दो साल पहले ये संख्या 70 प्रतिशत थी.

हेल्थ सेक्टर कर्मचारियों की लंबी पारी

एचआर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि सामान्य कर्मचारी न सिर्फ ऑफिस आने बल्कि दूसरे शहरों में नौकरी के लिए जाने को भी तैयार हो चुके हैं लेकिन बड़े पदों पर भर्ती होने वाले लोग अब भी आनाकानी कर रहे हैं और फ्लैक्सिबल वर्किंग चाह रहे हैं.

हालांकि महामारी के दौरान एक सेक्टर ऐसा भी रहा है, जहां लंबे समय तक सैलरी बढ़ने और नौकरियां आने का इशारा मिल चुका है. यह सेक्टर है हेल्थकेयर. जॉब डॉट कॉम के मुताबिक कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में बुजुर्ग लोगों की संख्या बढ़ने के साथ ही इसके आसार और अच्छे हो रहे हैं. जानकार मानते हैं कि कोरोना वायरस वह आखिरी स्वास्थ्य समस्या नहीं है, जो हेल्थ सेक्टर पर असर डालेगी.

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