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क्यों पिट गई दुनिया की सबसे सस्ती कार?

११ सितम्बर २०१८

भारत में कार सिर्फ सवारी का साधन नहीं, बल्कि रुतबे का भी प्रतीक है. क्या यही वजह रही कि ग्राहकों ने छोटी और सस्ती कार को नकार दिया?

Tata Nano Werk in Indien
तस्वीर: AP

10 साल की यात्रा के बाद टाटा नैनो हांफ चुकी है. कंपनी ने अपनी ड्रीम कार नैनो को प्रोडक्शन लाइन से उतारने का फैसला किया है. टाटा ग्रुप के पूर्व चैयरमैन रतन टाटा का सपना कही जाने वाली नैनो बहुत असरदार साबित नहीं हुई. दोपहिया पर घूमने वाले भारतीय परिवारों को रतन टाटा लखटकिया कार में बैठना चाहते थे.

2008 में नैनो के लॉन्च ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. पश्चिम बंगाल के सिंगूर में तमाम मुश्किलें झेलने के बाद नैनो प्रोजेक्ट गुजरात गया और पहली कार वहीं से निकली. लॉन्च के वक्त नैनो की काफी तारीफ हुई. ईंधन की बचत, कम प्रदूषण और कई मानकों के चलते नैनो को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले.

बाजार में आने के दो तीन साल बाद तक नैनो सफल रही. टाटा मोटर्स ने कुल तीन लाख नैनो बेचीं. इनमें से 70 फीसदी शुरुआती बरसों में बिकीं. लेकिन शुरुआती सफलता के बाद नैनो मुश्किलें बढ़ती गईं. एक लाख की कार, महंगी हो गई. दाम सवा लाख से लेकर पौने दो लाख रुपये तक पहुंच गया और बिक्री गिरती गई.

जुलाई 2018 में टाटा मोटर्स ने बताया कि उन्होंने महीने में सिर्फ एक नैनो बनाई है. जून में कंपनी ने पूरे भारत में सिर्फ तीन नैनो बेचीं. 2018 में एक नैनो विदेश नहीं भेजी गई. अब कंपनी का कहना है कि नैनो सिर्फ डिमांड का आर्डर मिलने पर ही बनाई जाएगी.

जून 2018 में बिकी सिर्फ तीन नैनोतस्वीर: AP

कहां पिछड़ी नैनो

दक्षिण भारत के एक कारोबारी प्रणव प्रभु 2008 में नैनो खरीदने वाले शुरुआती ग्राहकों में थे. वह आज भी नैनो चलाते हैं. 50,000 किलोमीटर ज्यादा चल चुकी नैनो के बारे में वह कहते हैं, "वह चलाने में आरामदायक थी. लंबी रूट पर उसका 100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार पकड़ना हैरान करने वाला था."

नैनो के कई और ग्राहक भी प्रणव प्रभु जैसी ही बात कहते हैं. छोटे आकार के बावजूद नैनो में अंदर काफी जगह थी. भीड़ भाड़ वाले शहरों के लिए नैनो एकदम मुफीद थी.

लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि नैनो बड़े पैमाने पर लोगों को रिझा नहीं सकी? कार उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक नैनो अपनी सस्ती कार की इमेज के चक्कर में मारी गई. वीजी रामाकृष्णन भारतीय ऑटो उद्योग में एक्सपर्ट हैं. उनके मुताबिक दोपहिया छोड़कर लोग नैनो लेंगे, टाटा की ऐसी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. रामाकृष्णन का मानना है कि भारत में कार विलासिता व प्रतिष्ठा का भी प्रतीक है और लोगों ने सस्ती नैनो को अपने रुतबे के लिए ठीक नहीं माना.

रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट थी नैनोतस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

ऑटो इंडस्ट्री के समीक्षक महेश बेंद्रे ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि सही ग्राहकों को टारगेट नहीं किया गया. कार सिर्फ शहरी बाजार तक सीमित रही." बेंद्रे के मुताबिक छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों पर ध्यान दिया जाता तो नैनो इससे बेहतर प्रदर्शन कर पाती.

ऑटोमोटिव इंडस्ट्री से जुड़ी एक फर्म में पार्टनर और सलाहकार श्रीधर वी कहते हैं, "स्मॉल कार कैटेगरी में ह्युंडे इयोन, रेनॉ की क्विड, निशान की डाटसन जैसी कारें ज्यादा समसामयिक और बेहतर फीचर्स वाली लगती हैं."

ऐसी भी अफवाहें हैं कि नैनो नए इलेक्ट्रिक अवतार में वापस लौटेगी. लेकिन हो सकता है कि तब उसे नया नाम भी मिले. ज्यादातर ब्रांड एनालिस्ट्स के मुताबिक नैनो ब्रांड अब बेदम हो चुका है.

वासुदेवन श्रीधरन/ओएसजे

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