पिछले 40 सालों में दुनिया भर में पैदा होने वाले जुड़वां बच्चों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ये आंकड़े महिलाओं में बढ़ रही स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की तरफ इशारा करते हैं.
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अमेरिकी पत्रिका पॉप्युलेशन एंड डेवलपमेंट रिव्यू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों का दावा है कि ना केवल दुनिया भर में जुड़वां बच्चों की पैदाइश दोगुनी हुई है बल्कि अमेरिका में 1975 में जहां प्रति 1000 बच्चों के जन्म पर 9.5 मामले जुड़वां होते थे वहीं 2011 में यह संख्या 16.9 हो गई है. उन्होंने ब्रिटेन में भी कुछ ऐसा ही ट्रेंड पाया. यहां इस दौरान उनकी संख्या 9.9 से बढ़कर 16.1 प्रति 1000 जन्म हो गई है. जर्मनी में प्रति हजार बच्चों के जन्म में जुड़वां बच्चों के जन्म की संख्या 9.2 से 17.2, फ्रांस में 9.3 से 17.4. डेनमार्क में 9.6 से 21.2 और दक्षिण कोरिया में 5.0 से बढ़कर 14.6 हो गई है.
वैज्ञानिक चिकित्सीय मदद से गर्भधारण की बढ़ती प्रवृति को इसका कारण बताते हैं. 1970 से इस दिशा में विस्तार हुआ और इसके साथ ही ओवेरियन स्टिमुलेशन और आईवीएफ चलन में आया. इन दोनों ही तरीकों में बहुभ्रूण विकास की घटना आम है. रिसर्चरों के मुताबिक जुड़वां बच्चों के जन्म की बढ़ती संख्या पिछले चार दशकों में विकसित देशों में सबसे ज्यादा बढ़ी है. फ्रांस के इनेड डेमोग्राफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट और इस रिसर्च के सहलेखक गिलेस पाइसन ने कहा, "हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि ऐसा आगे भी जारी रहेगा. लेकिन डाटा को निश्चित ही जनस्वास्थ्य संकट के रूप में देखा जा रहा है."
कामकाजी मांओं की मुश्किलें
कामकाजी महिलाओं के जीवन में मातृत्व एक निर्णायक मोड़ होता है. कई बार मां की जिम्मेदारियों के चलते पेशवर जिम्मेदारियां पूरी कर पाना असंभव हो जाता है और नौकरी छोड़ने का ही विकल्प रह जाता है. ऐसे कीजिए इस चुनौती को पार.
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जानकारी
गर्भधारण के साथ ही महिलाओं के लिए करियर संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है. वजन बढ़ना, सूजन, उल्टियां और ना जाने कितनी स्वास्थ्य समस्याएं लगी रहती हैं. ऐसे में अपनी संस्था, कंपनी या नौकरी देने वाले को अपनी कठिनाईयों के बारे में जानकारी देनी चाहिए.
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जिम्मेदारी
कंपनी और अपने बॉस को जानकारी देना इसलिए भी जरूरी है ताकि वह समय रहते आपके लिए छुट्टियों की योजना बना सके और यह भी सोच सके कि उस दौरान काम कैसे चलाना है. ध्यान रखें कि जिस तरह कंपनी की आपके प्रति कुछ जिम्मेदारी है, आप की भी उसके हित के प्रति जवाबदेही है.
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रेस में बने रहें
दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों के प्रमुखों में कुछ ही महिलाएं हैं और विश्व के 197 राष्ट्रप्रमुखों में केवल 22 महिलाएं. किसी भी क्षेत्र में टॉप स्तर पर इतनी कम महिलाओं के होने का कारण महिलाओं का इस रेस से बहुत जल्दी बाहर होना है, जो कि सबसे अधिक मां बनने के कारण होता है.
कामकाजी महिलाओं के जीवन में कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवरोध आते हैं. गहरे बसे लैंगिक भेदभाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक. ऐसे में घबरा कर रेस छोड़ देने के बजाए इन रोड़ों को बहादुरी से हटाते हुए आगे बढ़ने का रवैया रखें. अमेरिकी रिसर्च दिखाते हैं कि पुरुषों को उनकी क्षमता जबकि महिलाओं को उनकी पूर्व उपलब्धियों के आधार पर प्रमोशन मिलते हैं.
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सपोर्ट नेटवर्क
एक ओर बाहर के रोड़ हैं तो दूसरी ओर कई महिलाएं अपने मन की बेड़ियों में कैद होती हैं. समाज की उनसे अपेक्षाओं का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वे अपनी उम्मीदें और महात्वाकांक्षाएं कम कर लेती हैं. आंतरिक प्रेरणा के अलावा अपने आस पास ऐसे प्रेरणादायी लोगों का एक सपोर्ट नेटवर्क बनाएं जो मातृत्व, परिवार और करियर की तिहरी जिम्मेदारी को निभाने में आपका संबल बनें.
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पार्टनर की भूमिका
कामकाजी मांओं के साथ साथ उनके पति या पार्टनर को भी घर के कामकाज में बराबर का योगदान देना चाहिए. परिवार को समझना चाहिए कि महिला के लंबे समय तक वर्कफोर्स में बने रहने से पूरा परिवार लाभान्वित होता है. अपनी पूरी क्षमता और समर्पण भाव के साथ किया गया काम हर महिला की सफलता सुनिश्चित कर सकता है. जरूरत है बस रेस पूरी करने की.
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ना सिर्फ यह मां के लिए खतरनाक है, बल्कि जुड़वां बच्चे अकेले पैदा हुए बच्चों के मुकाबले ज्यादा नाजुक भी होते हैं. अक्सर जुड़वां बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं. कई मामलों में उनका वजन कम होता है और ज्यादा जीवित रहने की संभावनाएं भी कम होती हैं. आईवीएफ और अन्य कृत्रिम गर्भधारण के तरीके अक्सर उस स्थिति में अपनाये जाते हैं जब पहली बार मां बन रही युवतियां ज्यादा उम्र में मां बन रही होती हैं. गर्भधारण को लंबे समय तक टालने के कई कारण हो सकते हैं. कुछ महिलाएं खुद के आर्थिक रूप से सबल होने का इंतजार करती हैं, कुछ करियर में व्यस्त होती हैं तो कुछ के अन्य निजी कारण होते हैं.
अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक अमेरिका में पहली बार मां बनने वाली महिलाओं की औसत आयु 1980 में 22.7 थी जो कि बढ़कर 26 हो गई है. 1970 में 10000 में से 17 महिलाएं ऐसी थीं जो 35 से 39 वर्ष की उम्र के बीच पहली बार मां बन रही थीं. 2012 तक उनकी संख्या बढ़कर 110 हो गई.
एसएफ/एमजे (एएफपी)
नवजात शिशुओं के लिए 12 टिप्स
जीवन का पहला साल बच्चे के विकास के लिए बेहद अहम होता है. बच्चे अपने आस पास की चीजों को समझना और पहले शब्द बोलना सीखते हैं. इस दौरान माता पिता कई सवालों से गुजरते हैं. यदि आप भी उनमें से हैं, तो इन टिप्स का फायदा उठाएं.
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मालिश करें
भारत में बच्चों की मालिश का चलन नया नहीं है. लेकिन माता पिता अक्सर इस परेशानी से गुजरते हैं कि बच्चे की मालिश कब और कैसे की जाए. शिशु को दूध पिलाने के बाद या उससे पहले मालिश ना करें. घी या बादाम तेल को हल्के हाथ से बच्चे के पूरे शरीर पर मलें. नहलाने से पहले मालिश करना अच्छा होता है.
ध्यान से नहलाएं
नवजात शिशुओं की त्वचा बेहद नाजुक होती है. बहुत ज्यादा देर तक पानी में रहने से वह सूख सकती है. ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गर्म ना हो. शुरुआती तीन हफ्ते में गीले कपड़े से बदन पोंछना काफी है. अगर आप बेबी शैंपू का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हाथ से बच्चे की आंखों को ढक लें. नहाने के बाद बच्चे बेहतर नींद सो पाते हैं.
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आराम से सुलाएं
ब्रिटेन की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉन केली बताती हैं कि माता पिता बच्चों को सुलाने से पहले उन्हें कपड़ों की कई परतें पहना देते हैं, "खास कर रात को, वे उन्हें बेबी बैग में भी डाल देते हैं और उसके ऊपर से कंबल भी ओढ़ा देते हैं." केली बताती हैं कि इस सब की कोई जरूरत नहीं. बहुत ज्यादा गर्मी बच्चे के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.
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रोने से घबराएं नहीं
बच्चे रोते हैं और इसमें परेशान होने वाली कोई बात नहीं है. जच्चा बच्चा सेहत पर किताब लिख चुकी अमेरिका की जेनिफर वॉकर कहती हैं, "बच्चे रोने के लिए प्रोग्राम्ड होते हैं. उनके रोने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं, बल्कि यह उनका आपसे बात करने का तरीका है." मुंह में पैसिफायर लगा हो, तो बच्चे कम रोते हैं.
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दांतों की देखभाल
न्यूयॉर्क स्थित डेंटिस्ट सॉल प्रेसनर कहती हैं कि कई बार मां बाप बहुत देर में बच्चों के हाथ में ब्रश थमाते हैं. दूध के दांत बहुत नाजुक होते हैं और इन्हें बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. प्रेसनर का कहना है कि जब दांत आने लगें, तो बच्चे को ठीक सोने से पहले दूध पिलाना बंद कर दें. अगर ब्रश कराना शुरू नहीं किया है, तो दूध पिलाने के बाद गीले कपड़े से दांत साफ करें.
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कुदरत के साथ
बच्चों को जितना हो सके कुदरत के साथ जोड़ें. आज के हाई टेक जमाने में माता पिता बच्चों को मोबाइल, टेबलेट और टीवी के साथ ही बढ़ा करने लगे हैं. अमेरिका की अकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स का कहना है कि कम से कम दो साल की उम्र तक बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहिए.
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रंगों के बीच
बच्चों के आसपास रंग होना अच्छा है. आठ से नौ महीने के होने पर बच्चे अलग अलग तरह के रंग, सुगंध, शोर और स्पर्श को पहचानने लगते हैं. यही उन्हें सिखाने का सही समय भी है.
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खेल खेल में
बच्चे खेल खेल में नई चीजें सीखते हैं. सिर्फ वस्तुओं को पहचानना ही नहीं, बल्कि खुशी और गुस्से जैसे भावों को भी समझने लगते हैं. बच्चों से बात करते हुए मुस्कुराएं और उनकी आंखों से संपर्क बना कर रखें. याद रखें कि बच्चे बोल नहीं सकते, इसलिए आंखों के जरिए संवाद करते हैं.
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मम्मी के साथ पढ़ाई
बच्चे के साथ बातें करें. जब वह कोई आवाजें निकाले, तो उन्हें दोहराएं और उसके साथ कुछ शब्द जोड़ दें. इस तरह बच्चे का जल्द ही भाषा के साथ जुड़ाव बन सकेगा. किताबों से पढ़ कर कहानियां सुनाने के लिए बच्चे के स्कूल पहुंचने का इंतजार ना करें. छोटे बच्चे इन कहानियों के जरिए नई आवाजें और शब्द सीखते हैं.
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पापा के साथ ब्रश
बच्चों को नई नई चीजें सिखाने का सबसे अच्छा तरीका है उनके साथ वही चीज करना. बच्चे देख कर वही चीज दोहराते हैं. इसी तरह से आप उन्हें कसरत करना भी सिखा सकते हैं. शुरुआत में ध्यान लगने में वक्त लग सकता है लेकिन बाद में बच्चे नई चीजें करने में आनंद लेने लगते हैं.
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पहले कदम
जब तक बच्चे चलना नहीं सीख लेते उन्हें जूतों की जरूरत नहीं होती. इन दिनों फैशन के चलते माता पिता नवजात शिशुओं के लिए भी जूते खरीदने लगे हैं. शिशुओं के लिए मोजे ही काफी हैं. ये उनके लिए आरामदेह भी होते हैं.
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पहला जन्मदिन
बच्चे वयस्कों की तरह पार्टी नहीं कर सकते. वे जल्दी थक जाते हैं और भीड़ से ऊब भी जाते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए अपने बच्चे की पहली बर्थडे पार्टी को एक से दो घंटे तक ही सीमित रखें ताकि पार्टी बच्चे की मुस्कराहट का कारण बने, आंसुओं का नहीं.