क्यों सैनिक अपनी और अपने सहयोगियों की जान ले रहे हैं?
११ दिसम्बर २०१९नौ दिसंबर को झारखंड के बोकारो में चुनावी ड्यूटी पर तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक कांस्टेबल ने अपने दो वरिष्ठ अधिकारियों को गोली से मार दिया और एक अन्य सहकर्मी को घायल कर दिया. ये झारखंड में सुरक्षाबलों के बीच भ्रातृहत्या का 24 घंटों में दूसरा मामला था. अधिकारियों ने कहा कि सीआरपीएफ की 226वीं बटालियन के इस कांस्टेबल ने शराब के नशे में गोलियां चलाईं और इस घटना में वह खुद भी जख्मी हो गया. कांस्टेबल ने किन हालात में गोलियां चलाईं इस बारे में अभी और कोई जानकारी नहीं मिली है.
ये इस तरह की पहली घटना नहीं है. इसके एक ही दिन पहले राजधानी रांची में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के एक कांस्टेबल ने अपनी कंपनी के कमांडर को और खुद को गोली मार दी थी. पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल के एक कांस्टेबल ने अपने पांच सहयोगियों को गोली से मार दिया था. उसके बाद उसे भी मार गिरा दिया गया.
ये सभी घटनाएं अचानक नहीं हुईं. भारत में सुरक्षाबलों में अक्सर आत्महत्या और भ्रातृहत्या के मामले देखने को मिलते हैं. ये समस्या अर्द्धसैनिक बलों में भी है और सेना में भी. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015 से लेकर 2018 के बीच की चार साल की अवधि में अर्द्धसैनिक बलों में आत्महत्या के 410 मामले, आत्महत्या की कोशिश के 116 मामले और सहयोगियों पर हमले के कई मामले सामने आए. मंत्रालय का कहना है कि ऐसी ज्यादातर घटनाओं के पीछे "निजी और घरेलू समस्याएं थीं, जैसे वैवाहिक कलह, व्यक्तिगत दुश्मनी, मानसिक बीमारी, डिप्रेशन आदि."
2016 से 2018 तक की तीन साल की अवधि में आत्महत्या के 259 मामले और भ्रातृहत्या के चार मामले, नौसेना में आत्महत्या के 19 मामले और वायुसेना में आत्महत्या के 56 मामले सामने आए. रक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए इन आंकड़ों के अनुसार, नौसेना और वायुसेना में भ्रातृहत्या की एक भी वारदात नहीं हुई.
क्या भारतीय सुरक्षाबलों के जवान हैं अत्यधिक तनावग्रस्त
रक्षा मामलों के जानकार सुशील शर्मा कहते हैं कि इन घटनाओं के पीछे कई कारण हैं. वो कहते हैं, "एक तो जहां बहुत ही तनावपूर्ण माहौल होता है, वहां लम्बे समय तक तैनाती रहती है, हर वक्त एक खतरा रहता है. फिर समय पर जब जरुरत हो तब छुट्टियां नहीं मिल पातीं. उस वजह से भी कुंठा होती है. कई बार अफसर की अनदेखी के कारण कुंठा अंदर ही अंदर जमा होती चली जाती है और फिर उसका विस्फोट एक ही बार गोलीबारी में होता है."
शर्मा बताते हैं कि पहले जवानों के घर से 10-15 दिनों पर चिट्ठियां आती थीं, जबकि अब सबके पास मोबाइल हैं. वे बताते हैं, "घर में कोई भी छोटी से बात हुई तो फोन करके बता दिया. अब वह बेचारा मोर्चे पर बैठा हुआ सिपाही परेशान हो जाता है. छुट्टी मांगता है पर मिलती नहीं. तीसरा कारण यह है कि पहले समाज में फौजी की बड़ी इज्जत होती थी. गांव से अगर कोई फौज में गया तो उस परिवार का पूरा गांव ध्यान रखता था. प्रशासन भी खास तवज्जो देता था. अब उस बात में काफी कमी आ गई है. तो कई तरह की घटनाएं हो जाती हैं और वो तनाव पैदा करती हैं. उनसे आत्महत्या और भ्रातृहत्या के मामले होते हैं."
सुशील शर्मा बताते हैं कि इन मामलों से निपटने के लिए सुरक्षा बल बाकायदा अपने अफसरों को प्रशिक्षण देते हैं. वो कहते हैं, "कई जगह सिपाहियों को छोटे छोटे समूहों में बांट दिया जाता है और हर समूह की जिम्मेदारी एक मुख्य सिपाही को दी जाती है. उसे प्रशिक्षण दिया जाता है, वो सबकी जानकारी रखता है. जो अच्छे अफसर होते हैं वो ध्यान रखते हैं कि किसकी क्या समस्या है. अगर ऐसा नहीं होता तो ये घटनाएं आए दिन और ज्यादा होतीं."
भारतीय सेना से हाल ही में सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा इनमें से कुछ बातों की पुष्टि करते हैं. वो कहते हैं कि सेना में इस समस्या को लेकर बड़ी चिंता थी पर इसका करीब से अध्ययन करने के बाद सेना ने पाया कि ये उतनी बड़ी समस्या है नहीं जितना इसे बताया जाता है.
जनरल हूडा कहते हैं कि सेना ने दो तरह के अध्ययन करवाए. पहला, भारतीय सेना में अमेरिकी सेना के मुकाबले हर 1,000 सैनिकों पर कितनी आत्महत्याएं होती हैं और दूसरा, भारतीय सेना में प्रति 1,000 सैनिकों में आम लोगों के प्रति 1,000 व्यक्तियों के मुकाबले कितनी आत्महत्याएं होती हैं. जनरल हूडा के अनुसार दोनों ही मामलों में आंकड़े एक जैसे ही आए.
उनका मानना है कि इससे यह जाहिर होता है कि एक भारतीय सैनिक पर उतना ही मानसिक दबाव है जितना विश्व की और बड़ी सेनाओं के जवानों पर. और तो और सैनिकों के मानसिक तनाव का स्तर एक औसत व्यक्ति के स्तर से ज्यादा अलग नहीं है. चूंकि सेना का काम ही कुछ ऐसा है कि उसमे तनाव निहित है, इसलिए कभी कभी तनाव का स्तर बढ़ जाता है.
निजी समस्याएं पड़ती हैं पेशेवर दबाव पर भारी
जनरल हूडा ने बताया कि अध्ययन में दिखा कि आत्महत्या के लिए कार्यस्थिति उतनी जिम्मेदार नहीं थी जितने घर की निजी समस्याएं थीं. जनरल हूडा कहते हैं, "हमें लगा कि अक्सर होता कुछ ऐसा है कि सिपाही को घर से एक फोन आया, वह पहले से ही मुश्किल हालात में तैनात है, उसके पास हथियार है और वो व्यग्रता के एक छोटे से दौरे की वजह से ट्रिगर दबा देता है. हमने फिर ये सुनिश्चित करने की कोशिश की थी कि सिपाहियों के पास मोबाइल और बन्दूक दोनों एक साथ कभी ना हो."
जनरल हूडा का कहना है भारतीय सेना ने काउंसलर प्रणाली की भी शुरुआत की ताकि हर सिपाही को अपने मन के अंदर दबी बातों और भावनाओं को बाहर निकालने का एक मंच मिल सके, लेकिन सेना का काम ही कुछ ऐसा है कि दुर्गम तैनातियों पर नियमित रूप से काउंसलिंग हो नहीं पाती. वो कहते हैं कि सेना में एक तथाकथित "बडी" व्यवस्था भी है, जिसके तहत हर सिपाही का एक "बडी" यानी दोस्त होता है जो उससे नियमित रूप से बातचीत करता है, उसके हाल चाल की खबर रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि अगर उसकी कोई समस्या है तो उसका निवारण हो.
जनरल हूडा का मानना है कि सेना में आत्महत्या और भ्रातृहत्या को अलग अलग देखना चाहिए. उनके अनुसार, "भ्रातृहत्या नेतृत्व में विश्वास न होने की वजह से होती है. सामान्यतः पलटन के नेता या कंपनी के कमांडर पर गोली चलाए जाने की खबर सामने आती है. सहकर्मियों को मारने के मामले कम हैं."
__________________________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore