व्लादिमीर पुतिन चौथी बार रूस के राष्ट्रपति बनना चाहते हैं. उनकी नीतियां क्या होंगी, ये अभी पता नहीं है. लेकिन वह रूस को युद्ध के लिए तैयार रखना चाहते हैं. लेकिन युद्ध किससे?
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नवंबर की शुरूआत में रूसी मीडिया के एक बड़े हिस्से ने युद्ध संबंधी खबरें छापीं. इनमें मॉस्को का स्वतंत्र अखबार नोवाया गजेटा भी था. अखबार की खबर के मुताबिक, "रूस को युद्ध के लिए तैयार रहने के अप्रत्याशित निर्देश मिले हैं." दो खबरों ने इसे और बल दिया. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सैन्य अभ्यास जापाड 2017 के दौरान सरकारी कंपनियों ने युद्ध के दौरान फटाफट प्रोडक्शन करने को कहा. इसके कुछ ही दिन बाद खबर आई कि साइबेरिया के आर्मी स्कूल को भी युद्ध के लिए तैयार रहने के निर्देश मिले हैं. ये निर्देश सही साबित हुए. रूसी सेना ने इसकी पुष्टि की और कहा कि यह रूटीन निर्देश हैं.
रूस में आज युद्ध की चर्चा आम हो चुकी है. सरकार बार बार यह दिखा रही है कि रूस को पश्चिम से खतरा है. कई लोग सैन्य संघर्ष की तैयारियों के हालिया निर्देशों से हैरान हैं. नोवाया गजेटा अखबार इन खबरों को व्लादिमीर पुतिन के चुनावी अभियान का हिस्सा मान रहा है. रूस में मार्च 2018 में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. पुतिन चौथी बार मैदान में हैं. दिसंबर की शुरूआत में उन्होंने आधिकारिक रूप से अपना दावा भी पेश किया.
कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों को लगता है कि युद्ध जैसे माहौल के बीच देश एक मजबूत राष्ट्रपति चाहेगा. और गेंद सीधे पुतिन के पाले में गिरेगी. ब्रिटिश इतिहासकार मार्क गालेओटी कहते हैं, "लगता नहीं कि रूस युद्ध की तैयारी कर रहा है, बल्कि सच्चाई यह है कि पुतिन अपने दावे के खातिर एक बड़ी तस्वीर बना रहे हैं. इसमें ऐसा दिखाया जा रहा है कि रूस दुश्मन देशों से घिरा है और रूस को बचाने के लिए सभी मुमकिन संसाधनों का इस्तेमाल होना चाहिए."
मॉस्को के मिलिट्री एक्सपर्ट अलेक्जेंडर गोल्ट्स कहते हैं, "युद्ध की तैयारी सोवियत काल जैसी ही है, सेना को हिलाया जा रहा है." गोल्ट्स को लगता है कि युद्ध की स्थिति में स्कूलों और अन्य नागरिक इमारतों को हॉस्पिटल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, इसीलिए ऐसी जगहों तक भी निर्देश पहुंचे हैं. लेकिन युद्ध किससे लड़ा जाएगा? रूस लंबे समय से पश्चिम को अपना दुश्मन समझता रहा है. गोल्ट्स कहते हैं, "रूस की बड़ी सेना पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में तैनात की जा रही हैं."
रूसी सेना की रीढ़ बनते आर्मी स्कूल
बच्चों को जंगल में अकेले छोड़ दिया जाता है. उन्हें खुद जिंदा रहना सीखना होगा. आखिर में उन्हें हवाई जहाज से कूद मारनी होगी. देखिए कैसे सैनिक तैयार करते हैं रूस के आर्मी स्कूल.
तस्वीर: Reuters/E. Korniyenko
आर्मी स्कूल की होड़
रूस में जो माता पिता तेजी से अपने बच्चे को सफल होते देखना चाहते हैं, वे आम तौर पर बच्चों को आर्मी स्कूल भेजते हैं. देश भर से 200 से ज्यादा बच्चे आर्मी स्कूल तक पहुंचते हैं. आम पढ़ाई के साथ साथ बच्चों को यहां मिलिट्री ट्रेनिंग दी जाती है. सफल बच्चों के लिए रूस की सेना का दरवाजा सीधे खुलता है.
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फादरलैंड की खातिर
2001 में रूस सरकार ने नई पीढ़ी के लिए देशभक्ति से भरा सिलेबस तैयार किया. यह सिलेबस मिलिट्री स्कूल और पैरामिलिट्री कैंपों में चलता है. आर्मी ड्रिल के दौरान देशभक्ति साबित करना बच्चों के लिए मददगार होता है.
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जनरल की याद में
जेरमोलोव कैडेट स्कूल 2002 में शुरू हुआ. स्कूल रूसी सेना के जनरल अलेक्सी पेत्रोविच जेरमोलोव की स्मृति में बनाया गया. 19वीं सदी में जेरमोलोव ने नेपोलियन के खिलाफ युद्ध लड़ा. जेरमोलोव को युद्ध का हीरो माना जाता है. इस कैडेट स्कूल के बच्चों के पास रूसी सेना में जाने का सबसे बढ़िया मौका होता है.
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अनुशासन और अभ्यास
रूसी सेना का अगला नायक बनने के लिए बच्चे यहां कड़ी मेहनत करते हैं. बचपन से ही उन्हें बॉक्सिंग और एशियन मार्शल आर्ट सिखायी जाती है. कई दिनों के कैंप के दौरान बच्चों को अपनी फिटनेस भी साबित करनी पड़ती है. लोग इन स्कूलों को कुलीन "रसियन नाइट्स" क्लब भी कहते हैं.
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शूट करने लायक
कड़े शारीरिक अभ्यास के अलावा बच्चों को हथियार चलाना भी सिखाया जाता है. बच्चे खाली समय में खेलकूद के तौर पर भी हथियार चला सकते हैं. कैंपिंग के दौरान रूसी सेना के अधिकारी बच्चों से मिलते हैं और हथियारों के बारे में उन्हें नयी बातें सिखाते हैं.
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लड़कियों का भी स्वागत
जेरमोलोव कैडेट स्कूल में लड़कियां भी जाती हैं. लड़कों की तरह वे भी हर तरह की मिलिट्री ट्रेनिंग करती हैं. इस दौरान उन्हें अस्थायी बंकर बनाना और जंगल में अकेले जिंदा रहना भी सिखाया जाता है.
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स्काईडाइविंग
फिट, इंटेलिजेंट और साहसी युवाओं को स्काईडाइविंग टेस्ट भी पास करना होता है. सेना के मुताबिक विमान या हेलिकॉप्टर से छलांग मारना मौजूदा दौर में सैनिकों के लिए जरूरी है. (रिपोर्ट: यूलिया वर्जिन/ओएसजे)
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रूस फिलहाल तीन आर्मी डिवीजन तैयार कर रहा है. क्रेमलिन नाटो की सेना से सुरक्षा चाहता है, इसके लिए पश्चिमी रूस में एक टैंक डिवीजन भी खड़ी कर दी गई है. 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करने के बाद रूस ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण शुरू किया. पश्चिम के कड़े प्रतिरोध के बावजूद रूस ने क्रीमिया वापस नहीं किया. फिर रूसी सेना सीरिया पहुंची. अब रूस के टेलिविजन में आए दिन सीरिया में रूसी सेना के जौहर की गाथाएं सुनाई जाती हैं. सेना के दशकों पुराने कम्युनिकेशन सिस्टम को भी दुरुस्त किया जा रहा है. ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि सेंट पीटर्सबर्ग में खाने पीने का सामान स्टोर किया जा रहा है.
कुछ ही महीने पहले रूस में कई शॉपिंग मॉलों, स्कूलों और सिनेमा घरों को अचानक खाली करा दिया गया. क्या यह भी युद्ध रणनीति का हिस्सा है? अधिकारियों से जब यह सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि बम की धमकी के चलते इन जगहों को खाली कराया गया. इन सब चीजों की खबरें आए दिन मीडिया में आ रही हैं और जनता को लगने लगा है कि युद्ध कभी भी छिड़ सकता है.
इतिहासकार गालेओटी कहते हैं, "जब मैं मॉस्को के सिक्योरिटी और मिलिट्री सेक्टर के लोगों से बात करता हूं तो वे कहते हैं कि रूस को पश्चिम से खतरा है. वह सतत सत्ता परिवर्तन के जरिये रूस को महाशक्ति बनने से रोक रहा है." इन सब बातों की ओर इशारा करते हुए नोवाया गजेटा ने एक संपादकीय लिखा, जिसमें अखबार ने कहा, "अगर आप सबसे पहले दीवार पर पिस्तौल टांग देते हैं तो फिर कोई उसे चलाएगा भी. वरना आप दीवार पर उसे नहीं टांगते."
(कैसा है सबसे ताकतवर नेता पुतिन का व्यक्तित्व)
व्लादिमीर पुतिन के अलग अलग चेहरे
फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 2016 के सबसे ताकतवर इंसान हैं. उनके बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप हैं. आइए, देखते पुतिन की शख्सियत के अलग-अलग पहलू.
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केजीबी से क्रेमलिन तक
पुतिन 1975 में सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी में शामिल हुए थे. 1980 के दशक में उन्हें जर्मनी के ड्रेसडेन में एजेंट के तौर पर नियुक्त किया गया. यह विदेश में उनकी पहली तैनाती थी. बर्लिन की दीवार गिरने के बाद वह वापस रूस चले गए. बाद में वे येल्त्सिन की सरकार में शामिल हो गए. बोरिस येल्त्सिन ने घोषणा की कि पुतिन उनके उत्तराधिकारी होंगे और उन्हें रूस का प्रधानमंत्री बनाया गया.
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पहली बार राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्ति के समय पुतिन आम लोगों के लिए एक अनजान चेहरा थे. लेकिन अगस्त 1999 में सब बदल गया जब चेचन्या के कुछ हथियारबंद लोगों ने रूस के दागेस्तान इलाके पर हमला किया. राष्ट्रपति येल्त्सिन ने पुतिन को काम सौंपा कि चेचन्या को वापस केंद्रीय सरकार के नियंत्रण में लाया जाए. नए साल की पूर्व संध्या पर येल्त्सिन ने अचानक इस्तीफे का ऐलान किया और पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया.
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दमदार व्यक्तित्व
मीडिया में पुतिन की अकसर ऐसी तस्वीरें छपती रहती हैं जो उन्हें एक दमदार व्यक्तित्व का धनी दिखाती हैं. उनकी यह तस्वीर सोची में एक नुमाइशी हॉकी मैच की है जिसमें पुतिन की टीम 18-6 से जीती. राष्ट्रपति ने आठ गोल किए.
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बोलने पर बंदिशें
रूस में एक विपक्षी रैली में एक व्यक्ति ने मुंह पर पुतिन के नाम की टेप लगा रखी है. 2013 में क्रेमलिन ने घोषणा की कि सरकारी समाचार एजेंसी रियो नोवोस्ती को नए सिरे से व्यवस्थित किया जाएगा. उसका नेतृत्व एक क्रेमलिन समर्थक अधिकारी को सौंपा गया जो अपने पश्चिम विरोधी ख्यालों के लिए मशहूर था. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर नाम की संस्था प्रेस आजादी के मामले में रूस को 178 देशों में 148वें पायदान पर रखती है.
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पुतिन की छवि
पुतिन को कदम उठाने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है. केजीबी का पूर्व सदस्य होना भी इसमें मददगार होता है. इस छवि को बनाए रखने के लिए अकसर कई फोटो भी जारी होते हैं. इन तस्वीरों में कभी उन्हें बिना कमीज घोड़े पर बैठा दिखाया जाता है तो कभी जूडो में अपने प्रतिद्वंद्वी को पकटते हुए. रूस में पुतिन को देश में स्थिरता लाने का श्रेय दिया जाता है जबकि कई लोग उन पर निरंकुश होने का आरोप लगाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Nikoskyi
सवालों में लोकतंत्र
जब राष्ट्रपति पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी ने 2007 के चुनावों में भारी जीत दर्ज की तो आलोचकों ने धांधली के आरोप लगाए. प्रदर्शन हुए, दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया गया और पुतिन पर लोकतंत्र को दबाने के आरोप लगे. इस पोस्टर में लिखा है, “आपका शुक्रिया, नहीं.”
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खतरों के खिलाड़ी
काले सागर में एक पनडुब्बी की खिड़की से झांकते हुए पुतिन. क्रीमिया के सेवास्तोपोल में ली गई यह तस्वीर यूक्रेन से अलग कर रूस में मिलाए गए इस हिस्से पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन का पूरी तरह नियंत्रण होने का भी प्रतीक है.