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क्यों लेना पड़ता है डायबिटीज में इंसुलिन

२१ अक्टूबर २०१५

19वीं सदी में युवाओं में एक बीमारी पायी गयी. उन्हें जबरदस्त प्यास और तेज भूख लगती थी. लेकिन पेट भर भोजन करने के बाद भी वे कुपोषण से मारे जाते थे. इस बीमारी को डायबिटीज का नाम मिला.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jahnke

डायबिटीज के रोगियों को हर बार खाने से पहले इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है. इंसुलिन ही फिलहाल इस घातक बीमारी का इलाज है. डायबिटीज के लक्षणों के बारे में तो सैकड़ों साल से जानकारी है. लेकिन इंसुलिन के रूप में इसके खिलाफ कारगर इलाज आठ दशक पहले ही मुमकिन हुआ.

इंसुलिन की खोज

19वीं शताब्दी के आखिर में कुत्तों पर टेस्ट किए गए और पता चला कि डायबिटीज के रोगियों के पित्त में एक पदार्थ की कमी होती है. पित्त को निकालकर इलाज करने की कोशिश भी हुई. लेकिन पैंक्रियाज को निकालते समय पाचक रस सभी तत्वों को नष्ट कर देते.

1920 के दशक में कनाडा के दो डॉक्टरों फ्रेडरिक बैटिंग और चार्ल्स बेस्ट ने क्रांतिकारी खोज की. उन्होंने इंसुलिन खोजा. ऐसा तत्व जो भोजन से मिलने वाली शुगर को, रक्त के जरिए हमारी कोशिकाओं तक पहुंचाता है. इंसुलिन की मदद से कोशिकाएं शुगर सोखती हैं. शरीर में शुगर के जलने से जीवन के लिए जरूरी ऊर्जा मिलती है. अगर इंसुलिन की कमी हो तो पर्याप्त भोजन के बावजूद कोशिकाएं भूखी रह जाती हैं और शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचने लगता है.

कैसे बनता है इंसुलिन

शुरुआती दौर में इंसुलिन मरे हुए जानवरों के पित्त से निकाला गया. कनाडा के डॉक्टरों ने पहले जानवरों पर और फिर इंसानों पर सफलता से इसका टेस्ट किया. मरे पशुओं से इंसुलिन निकालना एक महंगा और मुश्किल तरीका था. फिर 1980 के दशक में पहली बार इंसुलिन उत्पादन का सस्ता तरीका सामने आया. नियंत्रित तरीके से बैक्टीरिया में इंसानी इंसुलिन के जीन डाले गए. तब से ही इंसुलिन जैनेटिक इंजीनियरिंग के सहारे सबसे ज्यादा बनाई जाने वाली दवा है. यही वजह है कि मधुमेह के रोगी आज एक सामान्य जीवन जी सकते हैं.

लेकिन दुनिया भर में डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. खाने पीने की बुरी आदतें और कसरत की कमी इसके मुख्य कारण हैं. डायबिटीज आधुनिक सभ्यता की तीसरी सबसे आम बीमारी है. दुनिया भर में 35 करोड़ लोग इसके शिकार हैं. संतुलित आहार और नियमित कसरत से ही डायबिटीज को दूर रखा जा सकता है.

ओएसजे/आईबी

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