19वीं सदी में युवाओं में एक बीमारी पायी गयी. उन्हें जबरदस्त प्यास और तेज भूख लगती थी. लेकिन पेट भर भोजन करने के बाद भी वे कुपोषण से मारे जाते थे. इस बीमारी को डायबिटीज का नाम मिला.
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डायबिटीज के रोगियों को हर बार खाने से पहले इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है. इंसुलिन ही फिलहाल इस घातक बीमारी का इलाज है. डायबिटीज के लक्षणों के बारे में तो सैकड़ों साल से जानकारी है. लेकिन इंसुलिन के रूप में इसके खिलाफ कारगर इलाज आठ दशक पहले ही मुमकिन हुआ.
इंसुलिन की खोज
19वीं शताब्दी के आखिर में कुत्तों पर टेस्ट किए गए और पता चला कि डायबिटीज के रोगियों के पित्त में एक पदार्थ की कमी होती है. पित्त को निकालकर इलाज करने की कोशिश भी हुई. लेकिन पैंक्रियाज को निकालते समय पाचक रस सभी तत्वों को नष्ट कर देते.
1920 के दशक में कनाडा के दो डॉक्टरों फ्रेडरिक बैटिंग और चार्ल्स बेस्ट ने क्रांतिकारी खोज की. उन्होंने इंसुलिन खोजा. ऐसा तत्व जो भोजन से मिलने वाली शुगर को, रक्त के जरिए हमारी कोशिकाओं तक पहुंचाता है. इंसुलिन की मदद से कोशिकाएं शुगर सोखती हैं. शरीर में शुगर के जलने से जीवन के लिए जरूरी ऊर्जा मिलती है. अगर इंसुलिन की कमी हो तो पर्याप्त भोजन के बावजूद कोशिकाएं भूखी रह जाती हैं और शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचने लगता है.
मीठी शुगर के कुछ कड़वे सच
दुनिया भर में चीनी की खपत और साथ ही सेहत पर इसका बुरा असर भी बढ़ता जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो यह एक "वैश्विक महामारी" का रूप ले सकता है. देखें स्वाद में मीठी चीनी आपको कैसे बीमार बना रही है.
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मोटापे का कारण
चीनी शरीर के भीतर पहुंच कर फैट में बदल जाती है. स्टार्च के मुकाबले चीनी का रूपांतरण दो से पांच गुना तेज गति से होता है. इस तरह जब हम चीनी खाते हैं तो एक तरह से वह शरीर की फैट वाली कोशिकाओं के लिए सप्लाई बन जाता है.
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मूड पर असर
कम मात्रा में खाया जाए तो शुगर शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन के स्राव को प्रभावित करती है. सेरोटोनिन मूड अच्छा बनाने में भूमिका निभाता है. लेकिन ज्यादा शुगर ली जाए तो इससे घबराहट और अवसाद भी हो सकता है.
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बुढ़ापे को जल्द दावत
शुगर हमारी त्वचा पर भी असर डालती है. ग्लाइसेशन की प्रक्रिया में शुगर के अणु और त्वचा के कोजेलन फाइबर से प्रतिक्रिया कर उसके प्राकृतिक लचीलेपन को नष्ट करते हैं. शुगर की अधिकता से माइक्रो-सर्कुलेशन प्रभावित होता है और नई त्वचा कोशिकाओं का बनना धीमा हो जाता है. इसका नतीजा झुर्रियों के रूप में दिखता है.
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पेट और आंत पर बोझ
आंत में पाए जाने वाले माइक्रोफ्लोरा खाने को पचाने और पूरे पाचन तंत्र को हानिकारक बैक्टीरिया से बचाने का काम करते हैं. ज्यादा शुगर खाई जाए तो माइक्रोफ्लोरा की क्रिया पर बुरा असर पड़ता है. दूसरी ओर, फंगस और परजीवी शुगर पाकर और खुश हो जाते हैं. इससे कब्ज, डायरिया या गैस की समस्या हो जाती है.
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मीठे की भी लत
वैज्ञानिकों ने पाया है कि मोटे लोगों में शुगर खाने पर मस्तिष्क में डोपामीन हार्मोन का स्राव होता है. आम तौर पर एल्कोहल या कोई नशीला पदार्थ लेने पर यह हार्मोन निकलता है. ऐसे में अगर आप शुगर लेना बिल्कुल बंद कर दें तो आपमें शुगर विड्रॉल के लक्षण दिख सकते हैं, जैसे सिरदर्द या चिढ़चिढ़ापन.
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गुस्सा जगाने वाला
हद से ज्यादा मीठा खाने वाले ज्यादा गुस्सैल पाए गए हैं. एडीएचडी से प्रभावित बच्चों में भी शुगर का सीधा असर दिखता है. इससे वे कहीं भी ध्यान नहीं लगा पाते और अति सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए स्कूल के समय बच्चों को कम चीनी वाली खुराक देना एक अच्छा उपाय है.
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रोगों से लड़ने में कमी
अत्यधिक चीनी बीमारियों से लड़ने की शरीर की शक्ति को भी घटाती है. प्रयोगों में पाया गया कि शुगर खाने के तुरंत बाद शरीर का इम्यून पावर 40 फीसदी तक कम हो जाता है. इसके अलावा यह शरीर में जमा विटामिन सी के भंडार को भी निचोड़ लेती हैं, जो असल में सफेद रक्त कणिकाओं के लिए बेहद जरूरी है.
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कैंसर का कारण
कैंसर वाली कोशिकाएं अपनी संख्या बढ़ाने के लिए भी शुगर का इस्तेमाल करती हैं. हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च टीम इस पर शोध कर रही है कि शुगर के कारण ऐसा कैसे होता है. रिसर्चरों का मानना है कि परिष्कृत चीनी कैंसर वाले ट्यूमर बनाने का बड़ा कारण है.
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बुद्धू बनाने वाला
ज्यादा चीनी याददाश्त भी घटाती है. बर्लिन की चैरिटी यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में किए गए एक शोध में हाई ब्लड शुगर का दिमाग के छोटे हिप्पोकैम्पस पर असर जानने की कोशिश हुई. यह वही हिस्सा है जहां स्मृतियां लंबे समय तक सुरक्षित रहती हैं. इसमें हाई ब्लड शुगर वाले लोगों ने मेमोरी टेस्ट में कम ब्लड शुगर वालों के मुकाबले बहुत खराब प्रदर्शन किया.
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कैसे बनता है इंसुलिन
शुरुआती दौर में इंसुलिन मरे हुए जानवरों के पित्त से निकाला गया. कनाडा के डॉक्टरों ने पहले जानवरों पर और फिर इंसानों पर सफलता से इसका टेस्ट किया. मरे पशुओं से इंसुलिन निकालना एक महंगा और मुश्किल तरीका था. फिर 1980 के दशक में पहली बार इंसुलिन उत्पादन का सस्ता तरीका सामने आया. नियंत्रित तरीके से बैक्टीरिया में इंसानी इंसुलिन के जीन डाले गए. तब से ही इंसुलिन जैनेटिक इंजीनियरिंग के सहारे सबसे ज्यादा बनाई जाने वाली दवा है. यही वजह है कि मधुमेह के रोगी आज एक सामान्य जीवन जी सकते हैं.
लेकिन दुनिया भर में डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. खाने पीने की बुरी आदतें और कसरत की कमी इसके मुख्य कारण हैं. डायबिटीज आधुनिक सभ्यता की तीसरी सबसे आम बीमारी है. दुनिया भर में 35 करोड़ लोग इसके शिकार हैं. संतुलित आहार और नियमित कसरत से ही डायबिटीज को दूर रखा जा सकता है.
ओएसजे/आईबी
डॉक्टर को दिखाएं, अगर...
सेहत के कई सुराग मूत्र की जांच में मिलते हैं. मूत्र का रंग, गंध और उसकी प्रक्रिया इस बात के कई सुराग देती है कि शरीर में क्या हो रहा है.
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मीठी गंध
इसका आपके मीठा खाने से कोई लेना देना नहीं है. डायबिटीज विशेषज्ञ डॉक्टर हॉली फिलिप्स के मुताबिक, "मीठी सी गंध छोड़ने वाला मूत्र अक्सर डायबिटीज की पहचान में अहम होता है." रक्त में शुगर का लेवल ठीक न होने पर मूत्र से ऐसी गंध आ सकती है.
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पारदर्शी न होना
यह यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का संकेत हो सकता है. असामान्य रंग बैक्टीरिया और श्वेत रंग कोशिकाओं के चलते हो सकता है. हो सकता है कि आपको यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन न हो और आप स्वस्थ भी महसूस कर रहे हों, लेकिन मूत्र के रंग में बदलाव को नजरअंदाज न करें.
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लाल रंग
आम तौर पर बहुत ज्यादा तरबूज या लाल रंग के दूसरे फल खाने से ऐसा होता है. लेकिन रंग अगर बहुत ज्यादा लाल हो तो ध्यान दें, मूत्र में खून भी हो सकता है. यह यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, किडनी में पथरी या कैंसर का संकेत भी हो सकता है.
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बहुत ज्यादा दुर्गंध
मूत्र से आम तौर पर दुर्गंध आती है लेकिन अगर दुर्गंध बहुत ही तीखी हो और सड़े खाने जैसी हो तो मूत्राशय में संक्रमण का संकेत हो सकता है.
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मूत्र के साथ जलन
कई लोगों को लगता है कि ऐसा ज्यादा मिर्च खाने से होता है. आम तौर पर ऐसा शरीर में पानी की कमी से होता है. लेकिन अगर पर्याप्त पानी पीने के बाद भी पेशाब करने पर जलन बरकरार रहे तो यह संक्रमण का संकेत हो सकता है.
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पेशाब करने में बाधा
यह यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का आम संकेत है. इसका सबसे आम संकेत है हर वक्त पेशाब करते वक्त जलन होना, पेशाब रुक रुककर होना या बार बार पेशाब करने की इच्छा होना. 60 साल की उम्र के बाद पुरुषों में प्रोस्टेट बढ़ने से भी ऐसा होता है. ऐसे में डॉक्टर से जरूर मशविरा लें.
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बार बार पेशाब लगना
महिलाओं में यह गर्भ धारण के शुरुआती संकेत हैं. हॉर्मनों में बदलाव के चलते गुर्दों से खून का प्रवाह बढ़ जाता है. बहुत ज्यादा कैफीन या अल्कोहल की वजह से भी ऐसा होता है. अगर लंबे वक्त तक हर दिन कई बार पेशाब लगे तो डॉक्टर से संपर्क करें, यह डायबिटीज या ट्यूमर का संकेत भी हो सकता है.