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क्यों है जर्मन लोगों को आजादी से प्यार

गाबी रॉयशर६ जनवरी २०१६

कला की आजादी जर्मनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इतनी महत्वपूर्ण कि इसकी सुरक्षा के लिए एक कानून है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां कला को सीमाहीन आजादी है. उसकी भी सीमाएं हैं, कानूनी और नैतिक.

तस्वीर: Reuters/Gaillard

10 मई 1933 को पूरे जर्मनी में छात्रों की भीड़ ने नामी लेखकों, दार्शनिकों और वैज्ञानिकों की किताबें जलाई थीं. ये अभियान हिटलर के सत्ता पर काबिज होने के बाद अजर्मन दिमाग के खिलाफ कार्रवाई के नारे के तहत चलाया गया था. यहूदी और विरोधी लेखकों की किताबें इस दिन सरे आम फूंक दी गईं. हिटलर का सहयोगी जोसेफ गोएबेल्स राइष प्रोपेगैंडा मंत्री था और जर्मन संस्कृति और सांस्कृतिक जीवन की निगरानी करता था. नाजी सरकार ने पतित कला का नाम देकर 16,000 से ज्यादा कलाकृतियां जब्त कर लीं.

कला की आजादी

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नए जर्मनी ने संकल्प लिया कि ऐसा कुछ फिर नहीं होना चाहिए. 1949 में बने संविधान में आर्टिकल पांच में अभिव्यक्ति और कला की स्वतंत्रता को शामिल किया गया. इसमें कला के सृजन और उसके प्रसार को संवैधानिक सुरक्षा है. कला की व्याख्या भी व्यापक है. कला वह है जिसे कलाकार कला कहता है, भले ही दूसरों की राय उसके बारे में कुछ और क्यों न हो. जर्मन संविधान कला की सिर्फ रक्षा ही नहीं करता उसे बढ़ावा देने की भी बात करता है. इसलिए जर्मनी में थिएटर, सिनेमा, ऑर्केस्ट्रा और फिल्म जैसी कला की विभिन्न विधाओं को सरकारी अनुदान दिया जाता है. आलोचकों का कहना है कि इससे सरकारी हस्तक्षेप भी हो सकता है लेकिन कला अकादमी के प्रमुख रहे क्लाउस श्टैक का कहना है कि वित्तीय निर्भरता के बावजूद सरकार ने हमेशा संस्था की स्वतंत्रता का आदर किया है.

बर्लिन में बेबेल प्लात्स पर 1933 में किताबें जलाई गई थीतस्वीर: picture-alliance/dpa

एक साल पहले फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो पर हमले के बाद कला की आजादी की सुरक्षा और उसकी सीमाओं पर बहस तेज हो गई है. पेशे से कलाकार और वकील क्लाउस श्टैक का कहना है कि जहां तक कानूनी सीमाओं का सवाल है, जर्मनी में अदालती फैसलों पर भरोसा किया जा सकता है. वे 90 के दशक में अपने पोस्टरों के जरिए रसायन उद्यमों, राजनीतिक पार्टियों और हथियार बनाने वाली कंपनियों से उलझते रहे हैं. उन पर 40 बार उनके व्यंग्यात्मक पोस्टरों के कारण मुकदमा हुआ है और उन्हें सालों तक केस लड़ना पड़ा है. सभी मामलों में उनकी जीत हुई है. वे कहते हैं, "मेरा अनुभव रहा है कि अदालतों ने आम तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा की है."

किशोरों की सुरक्षा

जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूल्यवान अधिकार है. लेकिन उसकी कानूनी सीमाएं भी हैं जो दूसरे यूरोपीय देशों से अलग हैं. जर्मनी में लोगों के व्यक्तित्व के अधिकार का हनन और लोगों के बीच घृणा फैलाने के अलावा हिंसा और नाजीवाद को महिमामंडित करना अपराध है. ऐतिहासिक अनुभवों के कारण जर्मनी में नाजीकाल के संकेतों के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध है, जबकि अमेरिका में यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है.

क्लाउस श्टैक: अभिव्यक्ति की आजादी का संघर्षतस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Pedersen

आजादी की सीमा का पता खासकर किशोरों की सुरक्षा के मामले में साफ दिखता है. किशोरों को नुकसान पहुंचाने वाले मीडिया की जांच करने वाले संस्थान की प्रमुख एल्के मोनसेन एंगबरडिंग संगीत, फिल्म, वीडियो गेम और वीडियो क्लिप के टेक्स्ट, तस्वीरों और संदेशों की गहराई से जांच करती हैं. यदि उनकी सेंसर संस्था किसी पीस को किशोरों को नुकसान पहुंचाने वाला तय करती है, तो उसे खुलेआम उपलब्ध नहीं कराया जा सकता. एबरडिंग बताती हैं, "ऐसा उग्र दक्षिणपंथी ग्रुपों के नस्लवाद, यहूदीविरोध और समलैंगिकता विरोधी म्यूजिक के साथ होता है." हत्या दिखाने वाले आईएस के वीडियो को भी वे बाजार से हटाने की कोशिश करती हैं.

टकराव का साहस

अमेरिका में इस बीच साहित्य में भी सहिष्णुता की परिभाषा बदल रही है. किशोरों की सुरक्षा के अलावा अब वयस्कों की सुरक्षा के लिए भी कुछ सामग्रियों के बारे में चेतावनी दी जा रही है. खासकर तब जब वे दिमाग को नुकसान पहुंचाने वाले हों. बर्लिन की भाषाशास्त्री सुजाने शारनोव्स्की कला स्वतंत्रता की सीमाओं पर अध्ययन करती हैं. वे कहती हैं, "गोएथे की वैर्थर में आत्महत्या मुद्दा है. चेतावनी दी जाती है कि जिन लोगों को आत्महत्या करने का खतरा है, वे इसे न पढ़ें. ये हमारे लिए एकदम अजीब सा लगता है."

कार्निवाल में इस झांकी को आतंकी हमले के डर से छोड़ा गयातस्वीर: picture-alliance/dpa

भाषा हमारी संवेदना और सूझबूझ का आधार होती है. लेकिन शारनोव्स्की का मानना है कि लोग इसे बहुत आसान बना देते हैं, बौद्धिक बहस से बचने के लिए आसान रास्ता इख्तियार करते हैं. खासकर शार्ली एब्दो के हमलों के बाद वे लोगों और रचनाकारों के दिमाग में कैंची महसूस कर रही हैं. वे कला के क्षेत्र में आजादी के कम होने की शिकायत करती हैं. लेकिन क्लाउस श्टैक अपने दिमाग में 80 के दशक की तरह आज भी कोई कैंची नहीं देखते. वे कहते हैं कि अपने काम में न तो दक्षिणपंथियों से डरते हैं और न ही मुस्लिम कट्टरपंथियों से, "जिस क्षण आप कलाकार के रूप में अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं हैं, आपको अपना पेशा छोड़ देना चाहिए. आजाद समाज आजाद शब्द की खुराक पर ही जीता है."

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