भारत में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के मामले में छात्राएं पीछे नहीं हैं, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएट तक यह तादाद घट कर एक तिहाई रह जाती है. इतनी बड़ी तादाद में डॉक्टरी पढ़ने के बावजूद देश में महिला डॉक्टरों की भारी कमी है.
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बीते साल भारत में एमबीबीएस में दाखिला लेने वाले छात्रों में महिलाओं की तादाद 50 फीसदी से ज्यादा थी. भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी बाई जोशी ने वर्ष 1886 में मेडिकल की डिग्री हासिल की थी. अब कोई 130 साल बाद मेडिकल कॉलेजों में दाखिलों के मामले में महिलाओं ने पुरुषों को पछाड़ दिया है. बीते पांच वर्षों के दौरान भारत में पुरुषों के मुकाबले लगभग साढ़े चार हजार ज्यादा महिलाओं ने मेडिकल की डिग्री हासिल की है और यह तादाद हर साल लगातार बढ़ रही है.
दस हजार पर सिर्फ एक
भारत में स्वास्थ्य के लिए मानव संसाधन शीर्षक एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में महिला डॉक्टरों की भारी कमी है. उनकी तादाद महज 17 फीसदी है. उसमें भी ग्रामीण इलाकों में यह तादाद महज छह फीसदी है. ग्रामीण इलाकों में दस हजार की आबादी पर महज एक महिला डॉक्टर है. उनके मुकाबले हर 10 हजार की आबादी पर पुरुष डॉक्टरों की तादाद 7.5 फीसदी तक है. समाज विज्ञानी डॉ. अमित भद्र ने इंडियन एंथ्रोपोलॉजिस्ट नामक पत्रिका में स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाएं शीर्षक एक अध्ययन में कहा है कि पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट के स्तर पर पुरुषों व महिलाओं की तादाद में अंतर तेजी से बढ़ता है. इस स्तर पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादाद महज एक-तिहाई रह जाती है.
इसके उलट पाकिस्तान व बांग्लादेश में मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली महिलाओं की तादाद भारत से बेहतर क्रमश: 70 व 60 फीसदी है. पाकिस्तान में मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वालों में 70 फीसदी महिलाएं हैं. लेकिन वहां महज 23 फीसदी महिलाएं ही प्रैक्टिस करती हैं. यानी डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने वाली ज्यादातर महिलाएं प्रैक्टिस नहीं करतीं. बांग्लादेश में वर्ष 2013 में 2,383 पुरुषों ने मेडिकल की डिग्री हासिल की थी जबकि ऐसी महिलाओं की तादाद 3,164 थी. इससे साफ है कि वहां भी ज्यादातर महिलाएं मेडिकल की पढ़ाई के लिए आगे आ रही हैं.
कैसे रखें गर्भावस्था में ख्याल
होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है कि गर्भावस्था के दौरान कुछ जरूरी बातों का ख्याल रखा जाए. इनसे मां और बच्चे दोनों को फायदा होता है.
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गर्भावस्था के दौरान मां कैसा महसूस कर रही है यह बहुत जरूरी है, इससे होने वाले बच्चे की सेहत पर भी असर पड़ता है. मां के लिए उसका बच्चा दुनिया की सबसे बड़ी खुशियों में से एक होता है. जरूरी है कि वह इस खुशी के एहसास को मरने न दे.
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मां औप बच्चे के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी घर के दूसरे सदस्यों पर भी होती है. शरीर में हार्मोन परिवर्तन के कारण मां का मूड पल भर में बदल सकता है. ऐसे में बाकियों को सहयोग बनाकर चलना जरूरी है, खासकर पति को.
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सुबह नहाते समय हल्के गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. इसके बाद जैतून के तेल से मालिश मां के लिए फायदेमंद है, यह सलाह है जर्मन दाई हाएके सोयार्त्सा की.
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मां के शरीर में हो रहे हार्मोन परिवर्तन के कारण त्वचा संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. हफ्ते में एक दिन चेहरे पर मास्क का इस्तेमाल अच्छा है. एक चम्मच दही में कच्चा एवोकाडो मिलाकर लगाएं और दस मिनट बाद धो दें.
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गर्भावस्था के दौरान कसरत जरूरी है. आसन लगाकर पेट के निचले हिस्से से सांस खींचकर छोड़ना तनाव दूर करता है. इस दौरान दिमाग में एक ही ख्याल हो, "यह सांस मेरे बच्चे को छू कर गुजर रही है."
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सुबह बहुत कुछ खा सकना आसान नहीं, अक्सर सुबह के वक्त मां को उल्टी की शिकायत रहती है. हर्बल चाय या फिर हल्का फुल्का बिस्कुट या टोस्ट खाना बेहतर है. नाश्ते में इस बात पर ध्यान दें कि वह फाइबर वाला खाना हो. फल खाना और भी अच्छा है.
अक्सर गर्भावस्था के दौरान बाल रूखे और बेजान हो जाते हैं. बालों के लिए इस दौरान हल्के केमिकल वाले शैंपू का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. हफ्ते में एक दिन एक चम्मच जैतून के तेल में दही और अंडे का पीला भाग मिलाकर लगाने से बालों की नमी लौट आती है. गर्भावस्था में हेयर कलर का इस्तेमाल ना करें.
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शरीर और दिमाग के स्वस्थ होने के साथ दोनों के बीच संतुलन बहुत जरूरी है. गर्भावस्था के दौरान पैदल चलना भी फायदेमंद है. स्वीमिंग के दौरान पानी से कमर को काफी राहत मिलती है.
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मां के लिए दांतों को साफ रखना भी जरूरी है, दिन में दो बार ब्रश करें लेकिन नर्म ब्रश से. शुरुआती छह महीनों में दांतों का खास ख्याल रखें और डेंटिस्ट से भी नियमित रूप से मिलते रहें.
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विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चे के लिए हरी सब्जियां और आयोडीन युक्त भोजन फायदेमंद है. बच्चे को खूब आयरन और कैल्शियम की भी जरूरत होती है. ध्यान रहे कि खानपान में इन चीजों की कमी नहीं होनी चाहिए. नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना भी जरूरी है.
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दिन में करीब दो लीटर पानी पीना स्वस्थ जीवनशैली का हिस्सा है. ज्यादा पानी पीने से मां का शरीर चुस्त महसूस करता है.
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पेशाऔरघरेलूजिम्मेदारी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के मनोचिकित्सा विज्ञान के डॉ. राकेश चड्ढा और डॉ. ममता सूद ने इसी मुद्दे पर अपने एक ताजा अध्ययन में कहा है कि डॉक्टरी के पेशे में अब भी पुरुषों की प्रधानता है. इसकी मुख्य वजह कामकाजी घंटों का ज्यादा और अनियमित होना है. इसी वजह से महिलाएं अपने पेशे और घरेलू व सामाजिक जिम्मेदारी के बीच तालमेल नहीं बिठा पातीं. मेडिकल पेशे में आने वाली ज्यादातर महिलाएं स्त्री-रोग या बाल रोग विशेषज्ञ बनने को तरजीह देती हैं. हालांकि अब इसमें बदलाव आ रहा है और महिलाएं सर्जन भी बन रही हैं.
डॉ. चड्ढा कहते हैं, "बावजूद इसके सामाजिक व घरेलू जिम्मेदारियों के दबाव में एमबीबीएस करने वाली महिलाएं उच्च-अध्ययन या प्रैक्टिस करने से पीछे हट जाती हैं." उनका कहना है कि आम तौर पर महिलाओं के विभागाध्यक्ष होने की स्थिति में उस विभाग में महिला डॉक्टरों की तादाद बढ़ जाती है. इस पेशे में आने वाली महिलाएं विभागाध्यक्ष को अपना रोल मॉडल मानती हैं और उनकी देखा-देखी ज्यादा महिलाएं संबंधित विभाग में आने का प्रयास करती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि मेडिकल की पढ़ाई में छात्राओं की बढ़ती तादाद सराहनीय है. लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उनमें से ज्यादातर महिलाएं प्रैक्टिस करें. इसकी वजह यह भी है कि महिलाओं को अपने पेशे के प्रति ज्यादा समर्पित और मरीजों के प्रति व्यवहार कुशल माना जाता है.
दांतों के 'डॉक्टर' या गरीबों के मसीहा
भारत में सड़क किनारे बस्ता लिए बैठे इलाज करने वालों का चलन आम है. हालांकि शहरों में हाइजीन पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन इलाज महंगे होते हैं. इसलिए फिलहाल भारत में इन डेंटिस्टों पर निर्भर करने वालों की कमी नहीं.
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अल्लाह बख्श ने 14 साल पहले अपने भाई, भतीजे और बेटे के साथ मिलकर बंगलूरू में बस अड्डे के पास यह डेंटल क्लीनिक खोला था. यहां हर रोज करीब 20 मरीजों का इलाज होता है.
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अल्लाह बख्श अपने काम को मिशन मानते हैं ताकि हर कोई अपने दांतों की देखभाल कर सके. वे कहते हैं, "गरीब आदमी को भी हक है कि उसके दांत भी खूबसूरत लगें."
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मुंह में लगाई जाने वाली नकली बत्तीसी ज्यादातर भारत और चीन में बनती है. इनकी कीमत भी कम होती है, करीब 750 रुपये. यह तीन से चार साल तक चलती है.
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दांत फुटकर में एक या दो भी लगाए जाते हैं. उनकी कीमत कम होती है. दिल्ली जैसे बड़े शहरों में लोग सफाई का ख्याल करते हुए ढंग के क्लीनिक में जाना पसंद करते हैं.
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अल्लाह बख्श के बेटे इमरान पाशा ने यह नई बत्तीसी बनाई है. उसने भी अपने पिता की ही तरह दांतों के इलाज की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली है.
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भारत में हर साल करीब 30,000 डेंटिस्ट बनते हैं. लेकिन देश की आबादी देखते हुए यह संख्या बहुत कम है. गरीबों के लिए अल्लाह बख्श जैसे सड़कछाप डेंटिस्टों का बड़ा महत्व है.
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नए दांत लगाने के बाद उसका टेस्ट भी जरूरी होता है. टेस्ट करने के लिए किसी सख्त चीज को दांत से काटने को कहा जाता है.