क्रांति लाता लाइका कैमरा
८ मार्च २०१३यादों से इंसान को लाखों साल से बहुत मुहब्बत रही है. इन्हें सहेजने के लिए साहित्य रचा गया, मूर्तियां बनाईं, तस्वीरें उकेरी गईं. 18वीं शताब्दी तक किसी एक खास पल को सहेजने का काम चित्रकार करते रहे. फिर तकनीक के साथ समय बदला, कैमरा बना. अब तो डिजीटल होने के साथ यह कोने कोने में फैल चुका है. आए दिन नए नए मॉडल आ रहे हैं, लेकिन पुराने कैमरों को चाहने वाले अभी भी हैं.
हजारों की मरम्मत
यही कारण है कि कुछ लोग 50 साल पुराने कैमरे को भी सहेज कर रखते हैं. जर्मनी का लाइका कैमरा है भी कुछ ऐसा खास कि इसे 50 साल में एक बार ही सर्विसिंग की जरूरत पड़ती है. लाइका सिरीज के एम2 कैमरे का बस नाम ही काफी है. इस कैमरे की ऑयलिंग और सफाई कराने का खर्च है 600 यूरो यानि करीब 40 हजार रुपये. इतनी कीमत में लोग नया डीएसएलआर कैमरा खरीद लेते हैं, लेकिन लाइका के दीवाने किसी भी सूरत में अपने पसंदीदा कैमरे को अलविदा नहीं कहेंगे. लाइका कैमरा चुनिंदा लोगों के ही पास होता है, इसलिए इसे रखना बहुत खास बात मानी जाती है.
जर्मनी में लाइका कैमरों की मरम्मत करने वाले सीगबेर्ट मैर्स का मानना है कि इसकी वजह प्रोडक्ट की लाइफ भी है, "बहुत से लोग अपने कैमरे से प्यार करते हैं, शायद उन्होंने इसे खरीदने के लिए लंबे समय तक बचत की होगी." सीगबेर्ट का कहना है कि बहुत से कैमरों के साथ जिंदगी से जुड़ा एक अतीत भी होता है. किसी को वह पिता से मिला है, तो किसी को दादा से.
लाइका का मिथक
लाइका के कैमरों की मरम्मत आप किसी भी आम दुकान में जा कर नहीं करवा सकते. इसके लिए आपको कैमरे को लाइका के वर्कशॉप में ही भेजना होगा. दुबई, चीन और रूस के ग्राहकों के पुराने मॉडल भी जर्मनी लाए जाते हैं और यहां उन्हें फिर से दुरुस्त किया जाता है. कुछ कैमरे तो 99 साल पुराने भी हैं. सुंदर डिजाइन, लेकिन पुरानी तकनीक. एक वक्त ऐसा भी आया था जब कंपनी बाजार में उतरे नए कैमरों का सामना नहीं कर पाई और घाटे में जाने लगी. फिर 2005 में आंद्रेयास काउफमन ने इस परंपरागत कंपनी को दीवालिया होने से बचाया. काउफमन लाइका के बोर्ड प्रमुख हैं. वह बताते हैं, "मैं नहीं समझता कि हमें लाइका के मिथक को जिंदा करना पड़ा, वह तो मौजूद था. हमने बस उसे मजबूत किया."
काउफमन के आने से पहले कई सालों तक कैमरे सजावट के सामान की तरह अलमारियों में रखे रहे. जबकि लाइका उन कंपनियों में से है जो डिजिटल फोटोग्राफी को सबसे पहले बाजार में ले कर आई. लेकिन कम ग्राहकों के कारण कंपनी को लंबे समय तक डिजीटल फोटोग्राफी का कोई भविष्य नहीं दिखा. काउफमन बताते हैं, "लाइका में तकनीकी विकास को नजरअंदाज नहीं किया गया, पहला डिजीटल कैमरा 1996 में ही आया, डिजीटल उपभोक्ता कैमरा 1998 में. लेकिन लाइका में लोगों को यकीन नहीं था, और उस समय यह समझा भी जा सकता था कि डिजीटल विकास किस ओर जाएगा."
हाई डेफीनिशन फोटोग्राफी
कंपनी का डिजीटल मोड़ सफल रहा. अब 600 कर्मचारी जर्मनी में एक्स2 जैसे कैमरे बनाते हैं. 1,800 यूरो यानि करीब सवा लाख रुपये की कामत के साथ ये कैमरे बेहद महंगे जरूर हैं, लेकिन हॉबी फोटोग्राफरों में अत्यंत लोकप्रिय हैं. मांग कितनी है इस बात का अंदाजा इस से लगाया जा सकता है कि लाइका में इन कैमरों का उत्पादन जितनी भी तेजी से हो, फिर भी सप्लाई के लिए महीनों की लाइन रहती है.
हाई डिफीनिशन तस्वीरों के लिए इस्तेमाल होने वाले डिजीटल लाइका का टॉप मॉडल 20,000 यूरो का है. इस कैमरे के साथ लाइका ने पेशेवर फोटोग्राफी की तरफ महंगा कदम बढ़ाया है. काउफमन बताते हैं कि सिर्फ इसके विकास पर ही सवा तीन करोड़ यूरो का खर्च आया, "पूरा इलेक्ट्रॉनिक और सेंसर सिस्टम फिर से तैयार किया गया. लेंस, जो कि हमारी विशेषता है, वह भी दोबारा बनाया गया. ऐसी कंपनी के लिए जिसका वार्षिक टर्नओवर 15 करोड़ यूरो का था, यह बहुत हिम्मत का काम था." कंपनी ने हिम्मत दिखाई और पिछले साल टर्नओवर दोगुना होकर 30 करोड़ यूरो हो गया. अब लाइका पीछे मुड़ कर नहीं देखना चाहता. 2016 तक इसे बढ़ाकर 50 करोड़ करने का इरादा है.
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी / ईशा भाटिया
संपादन: आभा मोंढे