क्रिसमस पर बच्चों को खासतौर पर सैंटा क्लॉज का इंतजार रहता है. कुछ जगह तो बच्चे इन दिनों घर के बाहर जुराबें भी सुखाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सैंटा क्लॉज आखिर कौन था और वह कहां से आता है.
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क्रिसमस का नाम सुनते ही बच्चों के मन में सफेद लंबी दाढ़ी, लाल रंग के कपड़े और सिर पर टोपी पहने बूढ़े बाबा 'सैंटा क्लॉज' की तस्वीर उभरने लगती है. ईसाई समुदाय के बच्चे सैंटा को एक देवदूत मानते रहे हैं. लोग कहते हैं कि सैंटा उनके लिए उपहार लेकर सीधा स्वर्ग से धरती पर आता है. टॉफियां, चॉकलेट, फल, खिलौने व अन्य उपहार बांटकर वापस स्वर्ग में चला जाता है. बच्चे सैंटा को 'क्रिसमस फादर' भी कहते हैं. बच्चों के दिमाग में यह सवाल भी उठता है कि सैंटा आखिर है कौन और यह हर साल 25 दिसंबर को उपहार देने कहां से आता है?
कौन है सैंटा
सैंटा क्लॉज चौथी शताब्दी में मायरा के निकट एक शहर (जो अब तुर्की के नाम से जाना जाता है) में जन्मे संत निकोलस का ही रूप है. संत निकोलस के पिता एक बहुत बड़े व्यापारी थे, जिन्होंने निकोलस को हमेशा दूसरों के प्रति दयाभाव और जरूरतमंदों की सहायता करने के लिए प्रेरित किया. निकोलस पर इन सब बातों का इतना असर हुआ कि वह हर समय जरूरतमंदों की सहायता करने को तैयार रहता.
बच्चों से उन्हें खास लगाव रहा. अपनी दौलत में से बच्चों के लिए वह खूब सारे खिलौने खरीदते और खिड़कियों से उनके घरों में फेंक देते. संत निकोलस की याद में कुछ जगहों पर हर साल 6 दिसंबर को 'संत निकोलस दिवस' भी मनाया जाता है. हालांकि एक धारणा यह भी है कि संत निकोलस की लोकप्रियता से नाराज लोगों ने 6 दिसंबर के दिन ही उनकी हत्या करवा दी. इन बातों के बाद भी बच्चे 25 दिसंबर को ही सैंटा का इंतजार करते हैं.
कई और कहानियां
सैंटा क्लॉज के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि एक बार निकोलस को मायरा के एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जानकारी मिली, जो बहुत धनवान था लेकिन कुछ समय पहले व्यापार में भारी घाटा हो जाने से वह कंगाल हो चुका था. उस व्यक्ति की चार बेटियां थी लेकिन शादी करने के लिए उसके पास कुछ न बचा था. जब उस व्यक्ति से अपने परिवार की हालत देखी नहीं गई तो उसने फैसला किया कि वह अपनी एक लड़की को बेच देगा और उससे मिले पैसे से अपने परिवार का पालन-पोषण करेगा और बाकी बेटियों का विवाह करेगा. अगले दिन अपनी एक बेटी को बेचने का विचार करके वह रात को सो गया लेकिन उसी रात संत निकोलस उसके घर पहुंचे और चुपके से खिड़की में से सोने से सिक्कों से भरा एक बैग घर में डालकर चले गए.
सैंटा का डरावना साथी क्रांपुस
यूरोप की आल्प्स पहाड़ियों से निकली लोककथाओं में आधी बकरी और आधे दैत्य जैसे एक चरित्र क्रांपुस का जिक्र है. देखिए सैंटा का ये भयानक साथी हाल के सालों में लोकप्रिय क्यों होने लगा है.
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क्रिसमस का दानव
क्रांपुस एक काल्पनिक चरित्र है. इसे दक्षिण जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, इटली और चेक गणराज्य जैसे आल्प्स पहाड़ियों वाले क्षेत्र में जाना जाता है. दैत्य जैसा दिखने वाला क्रांपुस क्रिसमस सीजन में प्रकट होता है और शैतानी करने वाले बच्चों को सजा देता है. जानवरों की तरह फर से ढका क्रांपुस गाय के गले जैसी घंटी अपनी कमर में बांधता है.
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क्रूरता का प्रतीक
सेंट निकोलास का यह डरावना साथी नटखट बच्चों की तलाश में रहता है और हाथ आ जाने पर उन्हें पकड़ कर अपनी पीठ पर रखी टोकरी में डाल देता है. इसके बाद वो ऐसे बच्चों को पाताल लोक में ले जाता है. इतने भयानक अंजाम के बारे में जानने के बावजूद लोग क्रिसमस सीजन के दौरान क्रांपुस के साथ समारोह में हिस्सा जरूर लेते हैं.
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इस लड़की ने जरूर बदमाशी की है
ऑस्ट्रिया के एक समारोह में पहुंचे क्रांपुस ने लोगों की भीड़ से इस लड़की को धर दबोचा. आल्प्स पहाड़ियों में बसे गांवों में होने वाले ऐसे समारोहों में जब लोग दौड़ते-भागते हैं तो कई बार दर्श और क्रांपुस आपस में उलझ भी जाते हैं. लेकिन यह सब मजे मजे में केवल समारोह में मस्ती के लिए होता है.
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पागान पुराण से निकली
यह परंपरा कम से कम 16वीं सदी से चली आ रही है. दक्षिण जर्मनी की प्राचीन पागान परंपरा में देवी माने जाने वाली पेर्षटा के मानने वाले इकट्ठा होते थे. क्रांपुस दौड़ अमेरिका तक में आयोजित होती है और सैन फ्रांसिस्को और पोर्टलैंड जैसे शहरों में देखी जा सकती है.
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सींगों वाले दैत्य से आधुनिक भूतों तक
एक पारंपरिक क्रांपुस को सींग और फरों वाला बताया जाता है. उसके चेहरे पर हाथ से कढ़े हुए लकड़ी के मुखौटे होते हैं. लेकिन ऑस्ट्रिया में तो इसके खूंखार दैत्य का स्वरूप भी दिया जाता है. नॉयश्टिफ्ट नामकी जगह पर ऐसा क्रांपुस दिखा जो आसानी से किसी आधुनिक हॉलीवुड हॉरर फिल्म का चरित्र हो सकता है.
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क्रांपुस रन
तिरोल इलाके में बसे कई गांवों में क्रांपुस एसोसिएशन बने हैं. पिछले करीब एक दशक से ऐसे हर एक एसोसिएशन में लगभग 100 सदस्य हैं. यह क्रांपुस की परंपरा में आधुनिकता का मेल कराते हैं. इनकी क्रांपुस परेड सेंट निकोलास पर निर्भर नहीं बल्कि पूरे नवंबर और दिसंबर के शुरुआती हफ्तों में लगातार होती है.
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छाल के नीचे कौन
चेक गणराज्य के कुछ हिस्सो में क्रांपुस की खूब धूम होती है. पूरी साज सज्जा के साथ इसमें हिस्सा लेने वाला एक व्यक्ति परेड के बाद थोड़ा सुस्ताते हुए. घुटनों पर लगाई जाने वाली नी-कैप से पता चलता है कि ये परेड में गिरने पड़ने और छोटी मोटी चोटों के लिए तैयार होते हैं.
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बवेरिया में गढ़े जाते हैं चेहरे
लकड़ी पर नक्काशी करने वाले ये कारीगर जर्मनी के बवेरिया प्रांत में स्थित अपनी कार्यशाला में क्रांपुस के नए मुखौटे बनाने का काम करते हुए. मुखौटों को डरावना बनाने की कोई सीमा नहीं है. कभी जानवरों के असली सींग लगाए जाते हैं तो कभी आग उगलने वाली आंखें बनाने के लिए उनमें एलईडी लाईटें लगाई जाती हैं.
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बच्चों ही नहीं बुरी आत्माओं को भी डर
क्रांपुस इतना बुरा भी नहीं होता जो केवल बच्चों को ही सताए. शैतानी करने वाले बच्चों को डराकर उन्हें अच्छा बच्चा बनने के रास्ते पर लाने के अलावा, वे जाड़ों में आने वाली बुरी आत्माओं को भी दूर भगाते हैं. यह समुदाय के लिए उनका सबसे बड़ा कर्तव्य है. (नाडीने बेर्गहाउसेन/आरपी)
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सुबह जब उस व्यक्ति की आंख खुली और उसने सोने के सिक्कों से भरा बैग खिड़की के पास पड़ा देखा तो वह हैरान रह गया. उसे आसपास कोई दिखाई नहीं दिया तो उसने ईश्वर का धन्यवाद करते हुए बैग अपने पास रख लिया और एक-एक कर धूमधाम से अपनी चारों बेटियों की शादी की. बाद में उसे पता चला कि यह बैग संत निकोलस ही उसकी बेटियों की शादी के लिए उसके घर छोड़ गए थे.
जुराबों का राज
क्रिसमस के दिन कुछ देशों में ईसाई परिवारों के बच्चे रात में घरों के बाहर अपनी जुराबें सुखाते भी देखे जा सकते हैं. मान्यता है कि सैंटा क्लॉज रात में आकर उनकी जुराबों में उनके मनपसंद उपहार भर जाएंगे. इसके पीछे भी एक कहानी है. कहानी के मुताबिक एक बार सैंटा क्लॉज ने देखा कि कुछ गरीब परिवारों के बच्चे आग पर सेंककर अपनी जुराबें सुखा रहे हैं. जब बच्चे सो गए तो सैंटा क्लॉज ने उनकी जुराबों में सोने की मोहरें भर दी और चुपचाप वहां से चले गए.
निकोलस के हृदय में दया भाव और जरूरतमंदों की सहायता करने की उनकी इच्छा को देखते हुए मायरा के बिशप की मृत्यु के बाद निकोलस को मायरा का नया बिशप नियुक्त किया गया था. लोग यह मानने लगे थे कि ईश्वर ने निकोलस को उन सभी का मार्गदर्शन करने के लिए ही भेजा है.
बतौर बिशप
बिशप के रूप में निकोलस की जिम्मेदारियां और बढ़ गईं. एक बिशप के रूप में अब उन्हें शहर के हर व्यक्ति की जरूरतों का ध्यान रखना होता था. वह इस बात का खासतौर पर ख्याल रखते कि शहर में हर व्यक्ति को भरपेट भोजन मिले, रहने के लिए अच्छी जगह तथा सभी की बेटियों की शादी धूमधाम से हो सके. इन्हीं कारणों के चलते निकोलस एक संत के रूप में बहुत प्रसिद्ध हो गए और न केवल आम आदमी बल्कि चोर-लुटेरे और डाकू भी उन्हें पसंद करने लगे. उनकी प्रसिद्धि उत्तरी यूरोप तक फैल गई और लोग उन्हें सम्मान देने के लिए 'क्लॉज' कहना शुरू कर दिया. चूंकि कैथोलिक चर्च ने उन्हें 'संत' का ओहदा दिया था, इसलिए उन्हें 'सैंटा क्लॉज' कहा जाने लगा. जो आज 'सैंटा क्लॉज' के नाम से मशहूर है.
समुद्र में खतरों से खेलने वाले नाविकों और बच्चों से तो निकोलस को विशेष लगाव था. यही वजह है कि संत निकोलस (सैंटा क्लॉज) को 'बच्चों और नाविकों का संत' भी कहा जाता है. निकोलस की मृत्यु के बाद उनकी याद में एशिया का सबसे प्राचीन चर्च बनवाया गया, जो आज भी 'सेंट निकोलस चर्च' के नाम से विख्यात है. यह चर्च ईसाई तथा मुसलमानों दोनों का सामूहिक धार्मिक स्थल है.
छाई क्रिसमस की धूम
अफ्रीका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक प्यार का त्योहार क्रिसमस मनाया जाता है, केवल इसके तरीके अलग हैं. सेंट निकोलस या सैंटा क्लॉज - एक बात इन सबको एकजुट करती है वो ये कि क्रिसमस सभी के लिए खुशी का अवसर है.
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इंपोर्टेड
लाल कोट और सफेद दाढ़ी के साथ सैंटा क्लॉज - पश्चिम अफ्रीका में आइवरी कोस्ट में भी ऐसा ही सैंटा होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि यहां सैंटा अश्वेत है. एक आदर्श क्रिसमस की तस्वीर के लिए कृत्रिम बर्फ से सजावट हुई है लेकिन धूप का चश्मा पहने सैंटा और छोटे लड़के को देखकर सही माहौल का अंदाजा होता है.
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मासूमियत का रंग सफेद
पूर्वी जर्मनी के सॉर्ब अल्पसंख्यक समुदाय की यह सजावट देखने में थोड़ी अजीब लग सकती है. ऐसा उपहार स्लाविक मूल के इस समुदाय की उस लड़की को दिया जाता है जिसकी जल्दी शादी होने वाली हो या जिसकी अगले साल शादी होनी चाहिए.
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मर्दों का काम
जर्मनी में सैक्सनी प्रांत के फिशरबाख इलाके में पिता और पुत्र ही क्रिसमस पेड़ लेकर आते हैं. कुछ लोग क्रिसमस की पूर्व संध्या पर पेड़ लाते हैं तो कुछ दिसंबर की शुरुआत में ही. लेकिन जरूरी है कि उसे रंगीन गेंदों, चमकीली चीजों और मोमबत्तियों के साथ सजाया जाए.
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न्यूयॉर्क की चमक
ब्रुकलिन, न्यूयॉर्क की क्रिसमस सजावट में सैंटा क्लॉज के नौ में से तीन रेनडियर तो दिखते ही हैं. यहां की सजावट कहीं ज्यादा रंगीन और तड़क भड़क वाली होती है.
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एक दो तीन
कई ब्रिटिश लोगों के लिए लंदन के स्मिथफील्ड मार्केट में मांस की नीलामी एक मेले जैसी है. 24 दिसंबर की सुबह यहां रोज के सॉसेज नहीं बल्कि विशेष रूप से टर्की खरीदने दूर दूर से लोग आते हैं. परंपरागत रूप से क्रिसमस भोज में टर्की पकाया जाता है.
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हवा में गिलास
परंपरागत रूप से सज्जित यह महिलाएं "कोलियाडी" मना रही हैं. बेलारूस के पोगोस्ट में जूलियन कैलेंडर के अनुसार 24 दिसंबर नहीं बल्कि 6 जनवरी की शाम को क्रिसमस समारोह शुरु होता है. कोलियाडी के गीत गाए जाते हैं, लोग हंसते गाते हैं और वोदका पीते हैं.
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"सब मेरा"
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया के टारोंगा चिड़ियाघर में जानवरों के लिए भी भोज होता है. इनके लिए भी मोजों या दूसरे तरह की पारंपरिक पैकिंग में उपहार रखे जाते हैं. जैसे कि सौभाग्य से इस चिंपैंजी के लिए उपहार में कुछ अच्छी खाने की चीजें. मेरी क्रिसमस!