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क्रीमिया कांड की पहली बरसी

१३ मार्च २०१५

दुविधा भरी विदेश नीति क्या कर सकती है, क्रीमिया प्रायद्वीप इसका जीता जागता उदाहरण है. साल भर पहले आज ही के दिन रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को तोड़कर अपने देश में मिला लिया.

तस्वीर: Reuters

यूक्रेन की राजधानी कीव में दिसंबर 2013 में शुरू हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों का सबसे बड़ा झटका 812 किलोमीटर दूर क्रीमिया प्रायद्वीप में महसूस हुआ. दुनिया के बाकी देश जब 2014 को बेहतर बनाने की योजनाएं बना रहे थे, तब कीव और मॉस्को में एक दूसरे को सबक सिखाने की रणनीति तैयार हो रही थी.

दोधारी तलवार का खेल

विवाद का केंद्र तत्कालीन यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच थे. मॉस्को के करीबी माने जाने वाले यानुकोविच ने 2010 में चुनाव जीतने के बाद एलान किया कि वह यूक्रेन को न तो नाटो सैन्य गठबंधन का हिस्सा बनाएंगे और न ही रूस के सीएसटीओ का. यानुकोविच ने यह वादा भी किया कि "यूक्रेन का यूरोपीय संघ के साथ समेकन हमारा रणनीतिक लक्ष्य है. एक संतुलित नीति के तहत हम पूर्वी सीमा पर रूस और दूसरी तरफ यूरोपीय संघ के साथ चलेंगे और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेंगे."

पुतिन के साथ यानुकोविच (बाएं)तस्वीर: picture-alliance/dpa

वो यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद लेते रहे और लगातार ऐसा जताते रहे कि वो समझौते की बात पर कायम हैं. लेकिन नवंबर 2013 में लिथुआनिया में जब समझौते पर दस्तखत करने की बारी आई तो यानुकोविच मुकर गए. उन्होंने यूरोपीय संघ से मिलने वाली वित्तीय मदद को नाकाफी बताया और 20 अरब यूरो की मांग कर डाली. इटली, पुर्तगाल, ग्रीस और आयरलैंड के आर्थिक संकट से जूझ रहे यूरोपीय संघ को ऐसा लगा जैसे यानुकोविच समझौते के नाम पर ब्लैकमेल कर रहे हैं. यूक्रेन के विपक्ष ने अपने राष्ट्रपति की आलोचना की.

कीव में प्रदर्शन

राष्ट्रपति के फैसले के विरोध में विपक्ष और आम लोग सड़कों पर उतर आए. कड़ाके की ठंड के बावजूद हजारों लोग दिन रात प्रदर्शन करने लगे. यूक्रेन के आम लोगों की राय थी कि यूरोपीय संघ से हाथ मिलाने से उनके पास रोजगार के बेहतर अवसर होंगे. यूरोपीय संघ के 28 देशों में उनकी और उनके माल की आवाजाही आसान हो जाएगी. यह वहीं उम्मीदें थीं, जिन्हें तीन साल तक यानुकोविच हवा देते रहे.

हड्डियां जमा देने वाली ठंड में प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति से समझौते की गुहार कर रहे थे. वहीं यानुकोविच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ समझौते कर रहे थे. दोनों नेता मुस्कुराते हुए फोटो भी खिंचवा रहे थे. कीव के प्रदर्शनों का जवाब देने के लिए रूस से सटे पूर्वी यूक्रेन के क्रीमिया इलाके में यानुकोविच के समर्थन में रैलियां निकलने लगी. इन रैलियों में पूर्वी यूक्रेन के रूसी भाषी थे. विदेश नीति से शुरू हुआ संकट देश को दो हिस्सों में बांटने लगा. रूस समर्थकों ने क्रीमिया के सरकारी भवनों पर कब्जा कर लिया. वहीं 18 से 20 फरवरी के बीच कीव में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलीं, 76 लोग मारे गए. इसके बाद उग्र प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति आवास की तरफ बढ़ने लगे. हजारों युवाओं, महिलाओं और आम लोगों को अपनी तरफ बढ़ता देख यानुकोविच भाग गए.

शीत युद्ध में बदलता विवादतस्वीर: picture-alliance/chromorange

शीत युद्ध की आहट

इसके बाद क्रीमिया और पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थक हथियारबंद विद्रोही सामने आने लगे. यूक्रेन के नेताओं का आरोप है कि विद्रोहियों को मॉस्को ने हथियार भी दिए और निर्देश भी. विद्रोहियों ने कुछ हवाई अड्डों पर कब्जा कर लिया और यूक्रेनी सेना को खदेड़ दिया. 16 मार्च को क्रीमिया में जनमत संग्रह कराने का एलान हुआ. यूक्रेन की संवैधानिक अदालत ने इसे गैरकानूनी करार दिया. लेकिन इसके बावजूद जनमत संग्रह हुआ और 95 फीसदी लोगों ने रूस में शामिल होने की इच्छा जताई.

इस तरह 16 मार्च 2014 को यूरोप का नक्शा एक बार फिर बदला. यूक्रेन छोटा और रूस बड़ा हो गया. 2008 में सर्बिया से अलग होकर कोसोवो नाम का राष्ट्र अस्तित्व में आया. उस विवाद के बाद यह पहला मौका है जब यूरोप में सीमाएं बदलीं. लेकिन संकट क्रीमिया के कटने के बाद भी जारी है. 15 फरवरी 2015 को यूक्रेन और रूस समर्थक विद्रोहियों के बीच हुए संघर्ष विराम ने हिंसा कुछ देर के लिए कालीन के नीचे छुपा दिया है. यूक्रेन का संकट अब अमेरिका और रूस के बीच पनपते नए शीत युद्ध के रूप में देखा जा रहा है. अगर यह भड़का तो इसकी मार सबसे ज्यादा यूरोपीय संघ के देशों पर पड़ेगी.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी (डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)


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