जापान अंतरिक्ष में स्थित एक क्षुद्र ग्रह की भूमि के कुछ टुकड़े हमारी धरती पर लाने का अभियान शुरू करने वाला है. जापानी अंतरिक्ष यान चार साल में उस क्षुद्र ग्रह पर पहुंचने वाला है.
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प्रोजेक्ट का नाम हायाबूसा-2 होगा, जिसके तहत 1993जेयू3 नाम के क्षुद्र ग्रह के लिए एक विशेष अंतरिक्ष यान छोड़ा जाएगा. यह 2018 में वहां पहुंचेगा. उसके बाद यह एक शक्तिशाली तोप से वहां गोला दागेगा. इसके बाद वहां की चट्टानों और सतह के जो टुकड़े बनेंगे, उन्हें समेट कर इस धरती पर लाया जाएगा.
अगर सब कुछ ठीक ठाक चला, तो वहां से बटोरी गई चीजों को 2020 तक ले आया जाएगा, उसी साल टोक्यो में ओलंपिक होना है. जापान एरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) के प्रोजेक्ट लीडर हितोशी कुनीनाका ने बताया कि वे और उनकी टीम इस प्रोजेक्ट में पूरा जोर लगा देना चाहते हैं, "मुझे इस बात की खुशी है कि नए क्षुद्र ग्रह के लिए अभियान लगभग तैयार है."
इससे पहले जाक्सा ने हायाबूसा नाम का प्रोजेक्ट चलाया था. यह करीब सात साल तक अंतरिक्ष में रहने के बाद 2010 में धरती पर कुछ धूल कणों के साथ लौट आया था. ये सात साल दुश्वारी भरे थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछली बार जिस क्षुद्र ग्रह पर अभियान चलाया गया था, वह आलू के आकार का था और उसमें बहुत ज्यादा प्राकृतिक संसाधन नहीं थे. लेकिन उम्मीद है कि 1993जेयू3 में कहीं ज्यादा खनिज हो सकते हैं. यह गोलाकार है और इसका व्यास करीब एक किलोमीटर है.
विश्लेषकों का कहना है कि वहां से आने वाले द्रव्य सृष्टि की उत्पत्ति के रहस्य से पर्दा उठा सकते हैं कि किस तरह 4.6 अरब साल पहले सौरमंडल का जन्म हुआ. जाक्सा के रिसर्चरों का कहना है कि पहले हासाबूसा अभियान से उन्हें काफी मदद मिलेगी. हालांकि पिछली बार सिर्फ कुछ धूल कण ही बटोरे जा सके थे.
पहले हायाबूसा अभियान में कुछ समय ऐसा भी था, जब यान का संपर्क धरती से कट गया था. फिर भी उसे एक बड़ी कामयाबी बताया जाता है. जाक्सा को जापान में बहुत सम्मान के साथ देखा जाता है और इसके आधार पर कुछ जापानी फिल्में भी बनाई जा चुकी हैं.
कुनीनाका का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस बार अभियान अपेक्षाकृत सरल और बेहतर होगा, "मुझे आशा है कि चीजें सुचारू रूप से चलेंगी. नए क्षुद्र ग्रह की जांच के सिलसिले में हमारे सामने कई तरह की दिक्कतें आईं. अंतरिक्ष आसान जगह तो नहीं है."
समझा जाता है कि क्षुद्र ग्रहों में ऐसे तत्व हैं, जिनका स्वरूप सौरमंडल के पुराने काल से नहीं बदला है, जबकि लगातार दबाव और तापमान की वजह से उल्कापिंडों और धरती पर जमा द्रव्यों का आकार और रूप बदलता रहता है. 1993जेयू3 को इसलिए चुना गया क्योंकि वहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.
एजेए/ओएसजे (एएफपी)
ब्लैक होल की दुनिया
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASA
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Kraus
विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASA
सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et al
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXC
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weiss
सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçada
अनसुलझे रहस्य
ब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.