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समाज

खतरनाक संकेत है असम में बंगालियों की हत्या

प्रभाकर मणि तिवारी
२ नवम्बर २०१८

क्या असम में एक बार फिर उल्फा के उग्रवादी सक्रिय हो गए हैं? क्या वहां हुई हत्याओं के तार एनआरसी और नागरिकता विधेयक से जुड़े हैं? जानिए, इन सवालों के जवाब.

Indien National Register of Citizens | Protest in Siliguri
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta

असम के तिनसुकिया जिले में उल्फा के स्वाधीन गुट के संदिग्ध उग्रवादियों ने गुरुवार रात को गोली मार कर बांग्ला मूल के कम से कम पांच लोगों की हत्या कर दी. इनमें से तीन लोग एक ही परिवार के थे. इस घटना में एक व्यक्ति घायल हो गया है. हालांकि अब तक किसी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन समझा जाता है कि इसमें उल्फा के परेश बरूआ की अगुवाई वाले बातचीत विरोधी स्वाधीन गुट का हाथ है.

तिनसुकिया के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रकाश सोनोवाल बताते हैं, "जिले के खेरबाड़ी गांव में मोटरसाइकिल पर सवार उग्रवादियों ने एक होटल के सामने बैठे पांच-छह लोगों को पास ही स्थित ब्रह्मपुत्र के किनारे कतार में खड़ा कर दिया और उसके बाद उनको गोली मार दी." यह घटना देश के सबसे लंबे नदी पुल भूपेन हजारिका सेतु के पास हुई. मृतकों की पहचान सुबल दास, धनंजय नमुशुद्र, अनंत विश्वास, श्यामल विश्वास और अविनाश विश्वास के तौर पर की गई है.

असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने इस हमले की कड़ी निंदा की है करते हुए कहा है, "हमलावरों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा." मुख्यमंत्री ने आम लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है.

नब्बे के दशक में उग्रवाद के शीर्ष पर रहे पूर्वोत्तर राज्य असम में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा उग्रवादियों द्वारा बंगाली मूल के लोगों की हत्या एक खतरनाक संकेत है. इन हत्याओं ने जहां अतीत की कड़वी यादें ताजा कर दी हैं, वहीं इससे राज्य में जातीय संघर्ष और पलायन एक बार फिर तेज होने का खतरा भी बढ़ गया है.

नब्बे के दशक में भी उल्फा ने हिंदी भाषियों पर काफी हमले किए थे और तब राज्य के हजारों लोगों ने भाग कर पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती शहर सिलीगुड़ी में शरण ली थी. वैसे भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) और नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के मुद्दे पर असमिया व बंगाली तबके के लोगों में हाल के महीनों में खाई लगातार बढ़ी है.

ताजा घटना को इसी की कड़ी माना जा रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी यही सवाल उठाया है. उल्फा ने हालांकि इन हत्याओं में अपना हाथ होने से इंकार कर दिया है, लेकिन उसका दावा है कि यह घटना नागरिकता संशोधन विधेयक के जरिए एनआरसी को पटरी से उतारने के बीजेपी सरकार के प्रयासों के खिलाफ पनपते असंतोष का नतीजा हो सकती है. गुरुवार की इस घटना के विरोध में विभिन्न संगठनों ने शुक्रवार को असम बंद रखा है.

असम में एनआरसी के अंतिम मसौदे से लगभग 40 लाख नाम बाहर होने के बाद से ही इस मुद्दे पर विवाद चल रहा है. इनमें लाखों बंगालियों के नाम भी शामिल हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शुरू से ही आरोप लगाती रही हैं कि एनआरसी का मकसद असम में दशकों से रहने वाले बंगालियों और बिहारियों को खदेड़ना है. ममता ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए सवाल किया है कि कहीं यह एनआरसी को लेकर उपजे ताजा विवाद का नतीजा तो नहीं है. इसके विरोध में तृणमूल कांग्रेस ने शुक्रवार को पूरे बंगाल में विरोध प्रदर्शन किया और रैलियां निकालीं.

केंद्र की ओर से प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 के मुद्दे पर राज्य में विभिन्न संगठनों की नाराजगी लगातार बढ़ रही है. 45 संगठनों ने इस मुद्दे पर अक्तूबर के आखिरी सप्ताह में 12 घंटे असम बंद रखा था. कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे राजनीतिक दलों ने भी उस बंद का समर्थन किया था.

उक्त विधेयक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश से आने वाले ईसाई, बौद्ध और हिंदू लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. लेकिन राज्य के ताकतवर छात्र संगठन आसू समेत कई अन्य संगठनों की दलील है कि एनआरसी की कवायद को पटरी से उतारने के लिए ही भाजपा इस विधेयक को पारित करने पर जोर दे रही है. इससे एनआरसी की पूरी कवायद ही बेमतलब हो जाएगी. लेकिन बीजेपी नेताओं की दलील है कि हिंदू अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना ही इसका एकमात्र मकसद है और एनआरसी से इसका कोई लेना-देना नहीं है.

अब संसद के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान इस विधेयक को पारित करने की सरकार की कोशिशों के खिलाफ राज्य में तमाम संगठन लामबंद हो रहे हैं. इस मुद्दे पर स्थानीय बनाम बाहरी लोगों का मुद्दा भी तूल पकड़ रहा है. उग्रवादी संगठन उल्फा ने भी शुक्रवार को जारी अपने बयान में इसी बात का संकेत किया है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर एनआरसी और नागरिकता विधेयक ही इन हत्याओं की वजह है तो यह एक खतरनाक संकेत है. नब्बे के दशक में राज्य में उग्रवाद का भयावह दौर देखने वाले एक पर्यवेक्षक होमेन गोहांई कहते हैं, "यह बेहद खतरनाक संकेत है. सरकार ने अगर फौरन इस परिस्थिति को संभालने की दिशा में ठोस पहल नहीं की तो नब्बे के दशक का दौर लौट सकता है. इस हत्याकांड से बंगाली समुदाय के लोगों में पलायन बढ़ने का अंदेशा है."

ध्यान रहे कि 26 बंगाली संगठनों ने 17 नवंबर को उक्त विधेयक के समर्थन में असम की राजधानी गुवाहाटी में एक रैली बुलाई थी. लेकिन सांप्रदायिक सद्भाव भंग होने के अंदेशे से सरकार ने उसके आयोजन की अनुमति नहीं दी. पर्यवेक्षकों का कहना है कि एनआरसी और नागरिकता विधेयक ने असमिया बनाम बाहरी लोगों के बीच खाई बढ़ा दी है. अगर सरकार ने हालात पर काबू पाने का प्रयास नहीं किया तो असम एक बार फिर जातीय हिंसा की आंच में झुलस सकता है.

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