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खतरे का संकेत

३० सितम्बर २०१३

सिर्फ 20 साल में ध्रुवों में इतनी बर्फ पिघल चुकी है जितनी दस हजार सालों में पिघली. बर्फ की परत पतली होने का मतलब है कि सागरों का पानी गर्म होता जा रहा है. भारतीय मूल के प्रोफेसर विक्टर स्मेटसेक इससे आगाह कर रहे हैं.

तस्वीर: M. Fernández/Alfred-Wegener-Institut

बर्फ की चादर से ढके ध्रुवों पर इंसान रह तो नहीं सकते, लेकिन इनसे दूर रह कर भी इन्हें खासा नुकसान पहुंचा रहा है. 66 साल के प्रोफेसर विक्टर स्मेटसेक को लगता है कि समुद्र के कारण आने वाली पीढ़ियों को काफी मुश्किल होगी. आंखों में एक गहरी चिंता के साथ वह कहते हैं कि हम खतरे के रास्ते पर पहुंच गए हैं. डॉयचे वेले के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "हमारा भविष्य अच्छा नहीं है. मुझे यह सोच कर घबराहट होती है कि बर्फ के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ता जा रहा है."

प्रोफेसर स्मेटसेक के मुताबिक मनुष्य ने जब बसना शुरू किया तो नदियों और समुद्र के किनारे ही शहर बसाए. ऐसे में पानी के स्तर के बढ़ने से हजारों शहर तबाह होने लगेंगे.

प्रोफेसर स्मेटसेक साल में कई महीने गोवा के समुद्री संस्थान में भी बिताते हैं.तस्वीर: AWI

जर्मनी के आल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट (एडब्ल्यूआई) में 27 साल काम करने के बाद प्रोफेसर स्मेटसेक रिटायर हो चुके हैं. लेकिन फिर भी वह करीब हर दिन इंस्टीट्यूट जाते हैं. लैब में ध्रुवों से लाई बर्फ के सैकड़ों नमूने हैं. वह कहते हैं, "हमारे यहां काफी डाटा पड़े हैं जो हमने काफी मुश्किल से जमा किए हैं. अब उन्हें खोलना है, लिखना है, पब्लिश करना है. इसकी वजह से मैं आया करता हूं."

प्रोफेसर विक्टर स्मेटसेक के पिता मूल रूप से जर्मनी के थे, लेकिन बाद में उन्होंने भारत की नागरिकता ले ली. 1946 में विक्टर स्मेटसेक का जन्म कोलकाता में हुआ. दुनिया भर के वैज्ञानिक जगत में इन्हें बहुत सम्मान के साथ देखा जाता है और समुद्री विज्ञान में उनकी रिसर्च मिसाल की तरह पेश की जाती है.

प्रोफेसर स्मेटसेक साल में कई महीने गोवा के समुद्री संस्थान में भी बिताते हैं.

दुनिया की करीब 44 फीसदी आबादी समुद्र किनारे रहती है. प्रोफेसर स्मेटसेक चेतावनी देते हैं कि कुदरत से बहुत खिलवाड़ हुआ, अगर अब नहीं संभले तो संभलने का मौका भी नहीं बचेगा.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ईशा भाटिया

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