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खतरे में एक धरोहर

२९ जून २०१२

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में ऐतिहासिक इमारत विक्टोरिया मेमोरियल को महानगर का धरोहर कहा जाता है. लेकिन इस धरोहर और महानगर की एक और पहचान भी है. वह हैं इस इमारत के सामने सजे धजे तांगे.

तस्वीर: DW

इन तांगों को विक्टोरिया या फिटन भी कहा जाता है. तांगे वालों का यह कारोबार भी उतना ही पुराना है जितनी विक्टोरिया मेमोरियल की इमारत. लेकिन ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार के ताजा फरमान से इस धरोहर पर खतरा मंडराने लगा है. पुलिस ने इन तांगा मालिकों को दोपहर दो से रात आठ बजे तक विक्टोरिया मेमोरियल के आसपास तांगा नहीं चलाने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कई पीढ़ियों से इस पेशे में रहे सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी भी खतरे में पड़ गई है.

तस्वीर: DW

मुख्यमंत्री की नाराजगी

दरअसल, पुलिस के इस फरमान की वजह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाराजगी है. वह इन तांगों को खींचने वाले घोड़ों की ओर से फैलाई जाने वाली गंदगी और बदबू से नाराज हैं. उनके कहने पर ही पुलिस ने इन तांगों या विक्टोरिया पर तमाम पाबंदियां लगा दी हैं. उनके मालिकों से विक्टोरिया मेमोरियल से सटे मैदान इलाके से दूर तांगा रखने को कहा गया है. सरकार के इस फैसले के बाद पहले से ही बदहाल चल रहे तांगा मालिक अब दूसरे धंधे पर विचार कर रहे हैं. कई पीढ़ियों से इस इमारत के सामने अपने तांगे पर पर्यटकों को आसपास के इलाके की सैर कराने वाले मोहम्मद जाकिर कहते हैं, "यह हमारा पुश्तैनी धंधा है. अब अचानक पुलिस ने हमें यह इलाका छोड़ने का निर्देश दिया है. अब इस उम्र में हम दूसरा क्या काम कर सकते हैं ?"

पुराना इतिहास

विक्टोरिया और फिटन कहे जाने वाले ऐसे तांगों का इतिहास एक सदी से भी ज्यादा पुराना है. पहले यहां सैकड़ों तांगे चलते थे. लेकिन कमाई कम होने की वजह से इनकी तादाद घटते-घटते अब पचास रह गई है. यह तांगे आम तांगों से अलग हैं. यह देखने में वैसे ही हैं जिन पर पहले राजा-महाराजा सैर करने निकलते थे. ब्रिटिश शासनकाल से ही यह तांगे देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं. यहां तांगा चलाने वाला जावेद कहता है, "पहले के मुकाबले अब कमाई घट कर आधी रह गई है. समझ में नहीं आता कि इस कमाई में खुद क्या खाएं और घोड़ों को क्या खिलाएं? पुलिस के निर्देश ने तो हमारी कमर ही तोड़ दी है."

तस्वीर: DW

यह तांगे वाले पर्यटकों को विक्टोरिया से लेकर फोर्ट विलियम तक सैर कराते हैं.एक ट्रिप के लिए उनको कम से कम सौ रुपए मिलते हैं. तांगा चालक अनवर अली कहते हैं, "पुलिस के इस नये फरमान से बेरोजगार होने का भय सताने लगा है.हमलोग वर्षो से तांगा चलाने के पेशे से जुड़े हुए हैं.लेकिन पुलिस के इस निर्देश से हमारी रोजी-रोटी पर संकट आ गया है."

पांबदी नहीं, नियंत्रण

कोलकाता पुलिस के उपायुक्त (दक्षिण) डीपी सिंह कहते हैं, "अब इस इलाके में दोपहर दो बजे से रात आठ बजे तक तांगा नहीं चलाया जा सकेगा.यहां दिनभर तांगों के चलने और घोड़े की लीद से रास्ते पर गंदगी फैलती है. इससे यहां आने वाले पर्यटकों को काफी मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. इन तांगों की वजह से यहां आए दिन ट्रैफिक जाम हो जाता है." वह कहते हैं कि तांगा चलाने पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लगाई गई है. महज इसका समय तय कर दिया गया है. पुलिस अब इन तांगे वालों से लाइसेंस भी मांग रही है. उसका आरोप है कि पचास तांगे वालों में से महज छह ने ही पिछले दो दशकों के दौरान अपने लाइसेंस का नवीनीकरण कराया है. दूसरी ओर, तांगे वालों का आरोप है कि कोलकाता नगर निगम उनके लाइसेंसों का नवीनीकरण ही नहीं कर रहा है.

तस्वीर: DW

विक्टोरिया के आसपास से तांगे गायब होने से पर्यटक भी परेशान हैं. मुंबई से आए नवीन खांडेकर कहते हैं, "यहां के तांगों का बड़ा नाम सुना था. लेकिन शाम के समय यहां एक भी तांगा नहीं है. इससे हमें काफी निराशा हुई है." दरअसल, विक्टोरिया मेमोरियल मे दोपहर बाद ही पर्यटकों की सबसे ज्यादा भीड़ होती है. लेकिन अब उस दौरान तांगे नजर नहीं आते. इस दौरान वहां गलती से भी जाने वाले तांगा वालों से सौ-सौ रुपए जुर्माना वसूला जा रहा है.

आंदोलन की योजना

तांगे वाले पुलिस के इस निर्देश के खिलाफ आंदोलन की भी योजना बना रहे हैं. पिछले सप्ताह निर्देश जारी होने के बाद भी तांगे वाले जब इलाके से नहीं हे तो पुलिस ने उन पर लाठी चार्ज किया था. तांगा चालक चुन्नू अली कहते हैं, "पुलिस ने इलाके में गंदगी फैलाने की दलील दी है. लेकिन क्या पहले गंदगी नहीं फैलती थी? सवारी नहीं मिलने की हालत में हमारे घोड़े और परिवार तो भुखमरी के शिकार हो ही जाएंगे, सदियों पुराना यह पेशा भी खत्म हो जाएगा."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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