खत्म हो रहे हैं कीट, इंसान से लेकर परिदों तक पर आएगी आफत
२१ अप्रैल २०२२![Symbolbild Natur Hornisse](https://static.dw.com/image/61544396_800.webp)
रिसर्चरों ने दुनिया भर के कई इलाकों में कीटों की संख्या के साथ ही प्रजातियों की संख्या की भी गणना की है. इन आंकड़ों की तुलना कीटों के प्राचीन आवासों के आंकड़ों से करने पर वैज्ञानिकों को यह जानकारी मिली है. इसके बारे में प्रतिष्ठित साइंस मैगजीन 'नेचर' में छपी रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि ग्लोबर वार्मिंग और घटते आवासों के कारणकीटों की ना सिर्फ आबादी घट रही है बल्कि उनके प्रजातियों की विविधता में भी लगभग 27 फीसदी की कमी आई है.
रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखक चार्ली आउथवाइट यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड इनवायरनमेंटल रिसर्च में मैक्रोइकोलॉजिस्ट हैं. उनका कहना है, "यह कमी सबसे ज्यादा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में है." हालांकि इस इलाके से कम आंकड़ें आये हैं जबकि यहां जैव विविधता ज्यादा है. जाहिर है कि जितना इस रिसर्च से पता चला है, हालात उससे कहीं ज्यादा बुरे हो सकते हैं.
गणना भी बहुत रुढ़िवादी तरीके से की गई है क्योंकि बेंचमार्क बदलाव के लिए जिन इलाकों का इस्तेमाल किया गया है वो धरती पर सबसे पुराने तो हैं लेकिन वहां भी इंसानी गतिविधियों के कारण हालात कुछ बिगड़े हैं.
कीटों में कमी पुराने आकलनों के अनुसार ही है, हालांकि नय आंकड़े नये तरीकों से निकाले गये हैं. इसमें बीटल से लेकर बटरफ्लाई और मक्खियों के 1800 प्रजातियों को शामिल किया गया है. स्टडी में 1992 से लेकर 2012 के बीच 6000 जगहों से 750,000 डाटा पॉइंट से आंकड़े जुटाए गए. आउथवाइट का कहना है, "पुराने अध्ययन छोटे स्तर पर कम संख्या में प्रजातियों या प्रजाति समूहों पर किये गये."
कीटों की कमी का नतीजा
कीटों के कम होने का परिणाम बहुत गंभीर है. दुनिया भर के खाने में जो 115 सबसे प्रमुख फसलें हैं वो कीट परागण पर निर्भर हैं. इनमें कोकोआ से लेकर, कॉफी, बादाम और चेरी तक शामिल हैं. कुछ कीट तो नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों पर नियंत्रण के लिए भी जरूरी हैं. लेडीबग, प्रेयिंग मान्टिस, ग्राउंट बीटल्स, वैस्प और मकड़े एफीड से लेकर फ्ली, कटवर्म और कैटरपिलर जैसे हानिकारक कीड़ों को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा कीट कचरे को अपघटित करने और पोषण चक्र के लिए भी बहुत जरूरी हैं.
पहली बार इस रिसर्च में बढ़ते तापमान और औद्योगिक खेती के संयुक्त प्रभाव के बारे में जानकारी जुटाई गई है. इनमें बड़े पैमाने पर कीटनाशकों का इस्तेमाल भी शामिल है.
अकसर केवल एक ही कारण पर ध्यान दिया जाता है जबकि कई कारण एक साथ काम कर रहे होते हैं और इन कारणों का मिल जाने से नुकसान बहुत ज्यादा होता है. यहां तक कि बना जलवायु परिवर्तन के भी किसी उष्णकटिबंधीय जंगल को अगर खेती की जमीन में बदल दिया जाये तो वहां की जलवायु गर्म और सूखी हो जायेगी. क्योंकि पेड़ पौधे ना सिर्फ जमीन को छाया देते हैं बल्कि हवा और जमीन में नमी भी बनाए रखते हैं. अब इसमें अगर ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक दो डिग्री तापमान और बढ़ जाये तो ये इलाके और गर्म होंगे जिसका नतीजा कीटों की कई प्रजाति के लिए विनाशकारी हो जायेगा.
धरती पर कई इलाको में कीट ज्यादा समय तक गर्मी का अनुभव कर रहे हैं जिसमें तापमान अपनी पिछली सीमाओं के पार जा रहा है. खासतौर से अगर एक शताब्दी पहले के समय से तुलना करें तो. बड़े पैमाने पर खेती और आवासों के नुकसान के कारण कीटों की संख्या तेजी से घट रही है. पहले के रिसर्चों में आकलन किया गया कि पूरे यूरोप में उड़ने वाले कीटों की संख्या औसतन 80 फीसदी तक कम हो गई है. इसकी वजह से पिछले तीन दशकों में चिड़ियों की संख्या 40 करोड़ से ज्यादा घट गई है.
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में अप्लायड इकोलॉजी के प्रोफेसर टॉम ओलिवर का कहना है, "हम जानते हैं कि प्रजातियों का लगातार घटते जाना आखिरकार एक विनाशकारी नतीजे का कारण बनेगा."
कैसे बचेंगे कीट
नये रिसर्च ने खतरे में पड़े कीटों के जीवनचक्र को बढ़ाने की रणनीति के लिए कुछ बिंदुओं की ओर ध्यान खींचा है. जिन इलाकों में कम खेती होती है, कम रसायन का इस्तेमाल होता है और मोनोकल्चर यानी एक ही तरह की खेती नहीं होती उनके आस पास कम से कम 75 फीसदी प्राकृतिक आवासों में कीटों की संख्या महज सात फीसदी कम हुई है.
हालांकि ऐसे प्राकृतिक आवासों का घनत्व अगर 25 फीसदी से कम हो जाये तो कीटों की आबादी दो तिहाई घट जायेगी.
यॉर्क यूनिवर्सिटी में इकोलॉजी के प्रोफेसर जेन हिल का कहना है, "मेरे ख्याल से इन खोजों ने हमें यह उम्मीद दी है कि हम ऐसे लैंडस्केप डिजाइन कर सकते हैं जहां खाना पैदा होने के साथ जैवविविधता भी पनप सके."
कीट दुनिया भर में मौजूद सभी प्रजातियों का लगभगत दो तिहाई हिस्सा हैं. बीते 40 करोड़ सालों में ईकोसिस्टम के निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही है. चूहों से लेकर, छिपकली, उभयचर, चमगादड़, चिड़िया और तमाम ऐसे जीव हैं जिनके लिए कीट सीधे आहार का काम करते हैं जबकि इंसानों के भोजन का बड़ा हिस्सा उनकी वजह से पैदा होता है.
एनआर/आरपी (एएफपी)