यूएन सुरक्षा परिषद में रूस ने अपने वीटो से यूक्रेन के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हुए एमएच17 पर एक प्रस्ताव को रोक दिया. गेरो श्लीस का मानना है कि संकट प्रबंधन में नाकाम रही सुरक्षा परिषद में वीटो का अधिकार ही हटा देना चाहिए.
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यही होना था. यात्री विमान एमएच 17 की दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए यूएन ट्रिब्यूनल की मांग के साथ मलेशिया और उसके समर्थक देश रूस पर विमान हादसे की जांच में भाग लेने के लिए दबाव बनाना चाहते थे. लेकिन मॉस्को के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी. जुलाई के शुरू में रूस ने स्रेब्रेनित्सा नरसंहार पर एक प्रस्ताव को रोक दिया था और अब उसने मलेशिया के प्रस्ताव को भी वीटो कर दिया.
17 जुलाई 2014 को इस हादसे में 298 लोगों की बेरहम मौत हुई थी. अमेरिका सहित अधिकांश देशों का मानना है कि पूर्वी यूक्रेन में विमान को मार गिराने में रूस समर्थित अलगाववादियों का हाथ था. लेकिन यही आरोप मास्को कीव की यूक्रेन सरकार पर लगा रहा है.
सिर्फ वीटो नहीं
यह वाकई शर्मनाक है कि संयुक्त राष्ट्र अब तक यात्रियों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों का नाम लेने और उनपर मुकदमा चलाने के लिए कुछ नहीं कर पाया है. सुरक्षा परिषद में एक साल पहले गठित संयुक्त जांच दल की रिपोर्ट भी अभी तक नहीं आई है. मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, यूक्रेन और नीदरलैंड के विशेषज्ञों से बना यह जांच दल अब तक रूस और यूक्रेनी अलगाववादियों से मदद लेने में नाकाम रहा है. सुरक्षा परिषद में रूस के वीटो के बाद यह उम्मीद भी खत्म हो गई है कि स्थिति बदलेगी.
इस तरह केवल एक महीने के भीतर रूस ने दो बार वीटो का इस्तेमाल कर सुरक्षा परिषद में प्रस्तावों को पास होने से रोका है. शायद ये कदम लंबे समय तक चलने वाले गहरे टकराव का संदेश है. कम से कम इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि सुरक्षा परिषद में आने वाले दिनों में माहौल शीतयुद्ध के समय जैसा उथल पुथल भरा और कठोर हो जाए.
प्रस्ताव पर हुए मतदान के बाद अब मलेशिया के लिए बहुत कुछ अच्छा निकलने की उम्मीद नहीं बची है. यूएन की सबसे महत्वपूर्ण संस्था बुरी तरह नाकाम रही है. इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर वह अपना रुख तय करने में विफल रही है.
राजनीति से प्रभावित वीटो
यह कोई अकेली घटना नहीं है बल्कि खोए हुए अवसरों का एक ताजा मुकाम है. ऐसा भी नहीं है कि केवल रूस ही वीटो के अपने अधिकार का दुरुपयोग करता है. पिछले साल गाजा पट्टी पर इस्राएल के हमले के मामले में अमेरिका ने भी इस्राएल के खिलाफ प्रस्ताव लाए जाने को रोका था. रूस अब तक सीरिया में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर रोक लगाने के मकसद से लाए गए प्रस्ताव को रोक रहा है.
अमेरिका, रूस और सुरक्षा परिषद के दूसरे सदस्य सीरिया में रासायनिक हथियारों को खत्म किए जाने के पक्ष में थे, यह बात उम्मीद जगाती है. लेकिन यूएन खुद तय लक्ष्यों को पूरा करने में ही काफी पिछड़ गया है. ऐसे बुनियादी सवालों और बड़े विवादों पर सामूहिक चुप्पी से खुद यूएन सुरक्षा परिषद को ही भारी नुकसान पहुंचा है. यदि वीटो लगाकर खुद को रोकने की कोशिशें जारी रहती हैं तो ऐसी संस्था के औचित्य पर संदेह करने वाली आवाजें तेज हो जाएंगी. और ये उचित ही होगा. आखिर दुनिया को ऐसी सुरक्षा परिषद की क्या जरूरत है जहां सिर्फ एक बात तय हो: खुद की नाकेबंदी.
सामयिक नहीं वीटो
यूएन में सुधार लाए जाने की जरूरत है. दूसरे विश्व युद्ध के अनुभव के बाद पांच देशों को मिले वीटो के अधिकार अब समसामयिक नहीं हैं. समय समय पर उठने वाली ये मांग अब तक सुरक्षा परिषद के बैठक तक नहीं पहुंची है. लेकिन ये अपेक्षा करना बेकार है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन स्वयं अपनी इच्छा से यह अधिकार छोड़ेंगे. वीटो का अधिकार खत्म करने के किसी प्रस्ताव को वे रोक देंगे, इसी वीटो का इस्तेमाल कर.
फ्रांस की ओर से हाल ही में पेश हुआ प्रस्ताव एक शुरुआत हो सकती है. फ्रांस ने रवांडा नरसंहार से सबक लेकर ऐसे भयंकर मामलों में वीटो का अधिकार समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है. इसका फायदा यह होगा कि बहुमत की मदद से सुरक्षा परिषद गंभीर मानवीय आपदा की स्थिति में कार्रवाई कर पाएगी. लेकिन सुधार लाने के असफल प्रयासों की लंबी सूची निराश करती है. संभावनाओं से भरा ये सुधार प्रस्ताव भी स्वार्थ और हितों के चक्रव्यूह में फंसकर रह जाएगा.
दुनिया के हर इंसान के हक में...
मानव अधिकारों के अपने सार्वभौमिक घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सभी सदस्य देशों के नागरिकों के लिए कुछ मौलिक अधिकार सुनिश्चित करने की बात कही है. आइए देखें क्या हैं वे अधिकार...
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सब के लिए समान अधिकार (अनुच्छेद 1)
"सभी मनुष्य स्वतंत्र हैं और समान गरिमा और अधिकारों के साथ पैदा होते हैं," संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को पेरिस में मानवाधिकारों की इस सार्वभौम घोषणा को अपनाया गया. विश्व भर में इनके लागू होने में अभी वक्त है.
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जीने का अधिकार (अनुच्छेद 2)
घोषणापत्र के सभी अधिकार सब लोगों पर लागू होते हैं. भले ही वे किसी भी "जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक विचारधारा, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल" के हों.
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जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 3,4,5)
"प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वाधीनता और वैयक्तिक सुरक्षा का अधिकार है." (3) "किसी को भी गुलामी या दासता की हालत में नहीं रखा जाना चाहिए." (4) (5) "किसी को भी यातना या क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए." एमनेस्टी इंटरनेशनल को पिछले पांच सालों में ही 141 देशों से प्रताड़ना और दुर्व्यवहार की रिपोर्टें मिली हैं.
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कानून सबके लिए समान (अनुच्छेद 6 से 12)
हर इंसान को निष्पक्ष अदालती सुनवाई और कानूनी संरक्षण (6,8,10,12) का अधिकार है. जब तक किसी पर कोई दोष सिद्ध नहीं होता तब तक उसे निर्दोष माना जाएगा. (11) कानून के समक्ष सभी बराबर हैं. "किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, हिरासत में नहीं रखा जा सकता या देशनिकाला नहीं दिया जा सकता." (7, 9)
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कोई नहीं है अवैध (अनुच्छेद 13,14,15)
"हर कोई किसी भी देश में खुलकर आने जाने और अपने निवास स्थान का चयन करने के लिए स्वतंत्र है." हर किसी को कोई भी देश छोड़ने का अधिकार (13) है. (14) "उत्पीड़न से परेशान होने पर हर किसी को अन्य देशों में शरण की तलाश करने और पाने का अधिकार है." (15) "हर व्यक्ति को कोई एक राष्ट्रीयता रखने का अधिकार है." संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का अनुमान है कि कम से कम 10 लाख लोग आज भी राज्यविहीन हैं.
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जबरन शादी के खिलाफ संरक्षण (अनुच्छेद 16)
घोषणापत्र में पुरुषों और महिलाओं को जबर्दस्ती शादी रोकने का भी समान अधिकार मिला है. शादी "भावी दम्पत्ति की पूर्ण और स्वतंत्र सहमति के साथ ही हो सकेगी." परिवार को समाज तथा राज्य द्वारा संरक्षण पाने का पूरा अधिकार है. संयुक्त राष्ट्र संस्था यूनिसेफ का कहना है कि विश्व भर में 70 करोड़ महिलाएं जबरन कराई गई शादी में रह रहे हैं.
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संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 17)
"हर किसी को अकेले अपने नाम या फिर किसी के साथ संपत्ति रखने का अधिकार है. किसी को भी मनमाने ढंग से उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता." लेकिन दुनिया भर में बहुत से लोगों को शहर के विकास, खनन, खेती या बांध बनाने के लिए उनकी जमीन से बेदखल कर दिया जाता है क्योंकि उनके पास जमीन के वैध कागजात नहीं हैं. कई लोगों के पास उनकी ही संपत्ति के सही कागज नहीं होते.
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विचारों की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 18,19,20)
"प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार, अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है." (18) "हर कोई अपनी राय और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकारी है." (19) "हर कोई शांतिपूर्ण सभा करने और संघ बनाने के लिए स्वतंत्र है." (20) लेकिन रिपोर्टर विदाउट बोर्डर्स के अनुसार दुनिया भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामलों में इस समय 350 से भी अधिक पत्रकार हिरासत में हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सहनिर्णय का अधिकार (अनुच्छेद 21,22)
"हर व्यक्ति को सीधे या निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से सार्वजनिक मामलों के निबटारे में हिस्सा लेने का अधिकार है." (21) घोषणापत्र में कहा गया है कि लोगों को "सामाजिक सुरक्षा का अधिकार" और आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों का हक है जो "उनकी गरिमा के लिए अपरिहार्य है." (22) सऊदी अरब के स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाएं पहली बार 2015 में मतदान कर सकेंगी.
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रोजगार का अधिकार (अनुच्छेद 23,24)
"हर किसी को रोजगार का अधिकार है." इसके साथ "हर कोई समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकारी है." हर कामगार को उचित और संतोेषजनक वेतन पाने और काम से जुड़े ट्रेड यूनियन में शामिल होने का भी अधिकार है." (23) "हर व्यक्ति को खाली समय पाने का भी अधिकार है." (24) अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार आज भी करीब 20 करोड़ लोग बेरोजगार हैं.