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खदान से बाहर निकले खनिक

१३ अक्टूबर २०१०

चिली में 70 दिनों से खदान में फंसे खनिकों को बाहर निकाला जा रहा है. वहां उपस्थित लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पहले फ्लोंरेंशियो अवालोस और फिर मारिया सेपुलवेडा बाहर निकले. परिजनों और राष्ट्रपति ने गले लगाया.

तस्वीर: AP

दो महीने से 650 मीटर नीचे फंसे खनिकों को बाहर निकालने के लिए मध्यरात्रि के करीब बचावकर्मी कैप्सूल में नीचे गए जिसमें बंद होकर खनिकों को एक एक कर ऊपर लाया जा रहा है. उनके परिवार वाले बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहे हैं.

इससे पहले बचाव कैप्सूल को नीचे भेजने और बाहर निकालने के चार परीक्षण बिना किसी समस्या के पूरे हुए. चार बचावकर्मियों ने नीचे जाकर खनिकों को बाहर निकलने के बारे में निर्देश दिए. सान होजे के सोने और तांबे की खदाने के बाहर दुनिया भर के पत्रकार ऐतिहासिक बचाव अभियान को देखने के लिए मौजूद हैं.

चिली के राष्ट्रपति सेबास्टियन पिनेरा भी वहां पहुंच गए हैं. उन्होंने बचावकर्मियों से भी मुलाकात की जो मजदूरों को बाहर निकालने के लिए कैप्सूल में बैठकर अंदर गए. इन कैप्सूलों को फोनेक्स नाम दिया गया है.

इस कैप्सूल में निकलेंगे खनिकतस्वीर: AP

33 मजदूर पिछले 69 दिनों से खान के भीतर जमीन से 622 मीटर की गहराई पर रह रहे हैं. इन कैप्सूलों को स्टील की मोटी रस्सियों से बांधा गया है. पहली बार में चार बचावकर्मी इसमें बैठकर भीतर गए और उसके बाद से मजदूरों का बाहर निकलना शुरू हो गया. परीक्षण के तौर पर कई बार खाली कैप्सूल को जमीन के भीतर ले जाकर बाहर लाया गया.

66 सेंटीमीटर की गोलाई वाले कैप्सूल की लंबाई चार मीटर है और वजन करीब 450 किलो. कैप्सूल को एक बार नीचे जाने में 15 मिनट लग रहा है. इतना ही समय उसे ऊपर आने में भी लग रहा है. कैप्सूल में ऑक्सीजन टैंक, बातचीत के लिए कम्यूनिकेशन सिस्टम, खनिकों की शारीरिक गतिविधियों पर निगाह रखने के लिए खास बेल्ट मौजूद है. कैप्सूल को झटकों से बचाने के लिए भी खास इंतजाम किए गये हैं क्योंकि इसे पथरीले रास्ते पर चलना है.

देखभाल की पूरी तैयारीतस्वीर: AP

पिछले कुछ दिनों से खनिकों को बाहर आने के अनुकूल बनाने के लिए केवल तरल भोजन दिया जा रहा है. ये भोजन उनके ब्लडप्रेशर पर नियंत्रण रखेगा. साथ ही उन्हें चक्कर या उल्टी आने की शिकायत भी नहीं होगी. ये भी खबर मिली है कि खनिकों को खास तरह के मोजे और दूसरे कपड़े भी पहनाए गए हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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