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खनन माफिया से घिरी शिवराज सरकार

९ मार्च २०१२

डकैतों के लिए कुख्यात रहा मध्य प्रदेश का चंबल अब अवैध रेत और पत्थर खदान माफिया का पर्याय बनता जा रहा है. रेतीली तथा पथरीली भूमि को खोदकर इस इलाके में रुपयों की बड़ी फसल काटी जा रही है.

तस्वीर: DW

मध्य प्रदेश में खनन माफिया के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि वे सरकारी अफसरों पर हमला करने से भी नहीं चूक रहे. गुरुवार को मुरैना के अनुविभागीय अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह की हत्या से पहले भी इस क्षेत्र में अधिकारियों को आए दिन धमकी मिलती रही हैं. नरेंद्र कुमार के पिता ने इलाके के कुछ नेताओं पर आईपीएस की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया है.

राज्य में खनन माफिया की सक्रियता को लेकर बीजेपी के ही सहयोगी दल जेडीयू के अध्यक्ष शरद यादव ने 2011 में कहा था कि अगर अवैध खनन के मामलों की निष्पक्ष जांच की जाए तो मध्य प्रदेश में कर्नाटक के बेल्लारी से भी बड़ा मामला सामने आ सकता है. नरेंद्र कुमार हत्याकांड पर शरद यादव ने कहा कि अगर सरकार समय रहते कदम उठाती तो यह हादसा नहीं होता.

अपराधियों का बोलबाला

नेताओं और अपराधियों के साठगांठ की निशानी मध्य प्रदेश पर आए दिन होते अपराध के घावों में साफ दिखाई देती है. एक ओर राज्य में बढ़ते अपराधों से जनता क्षुब्ध है, वहीं राज्य सरकार इसे महज हादसा करार देने में जुटी है. गृह राज्यमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने इसमें माफिया का हाथ होने की बात से इनकार कर दिया है. सरकार मान रही है कि ट्रैक्टर चालक ने जब ट्रॉली को गलत तरीके से रोकने की कोशिश की तो ट्रॉली पलट गई और उसमें भरे पत्थर नरेंद्र कुमार पर आ गिरे, जिससे उनकी मौत हो गई.

हालांकि सरकार ने मीडिया के बढ़ते दबाव के बीच इस मामले की न्यायिक जांच का आदेश दे दिया है. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने माना है कि उन्होंने खुद 2009 बैच के आईपीएस नरेन्द्र कुमार सिंह को माफिया के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया था.

कई जगह माफिया

सिर्फ चंबल ही नहीं, नर्मदा के तटीय इलाकों सहित पूरे प्रदेश में खनन माफिया सक्रिय है. पिछले दिनों मुख्यमंत्री चौहान के गृह नगर बुधनी तक में रेत के अवैध खनन का मामला सामने आया.

तस्वीर: AP

राज्य की नदियों से रेत निकाले जाने और पहाड़ खोदने को लेकर कई संगठनों ने इस पर रोक लगाने की मांग की है. लगातार मिल रही शिकायतों के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को कार्रवाई के निर्देश दिये हैं. इसके बाद सरकार ने अनमने ढंग से कुछ दिन अभियान चलाया जिसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला.

अवैध खनन का नतीजा जंगलों को भी भुगतना पड़ रहा है. राज्य के जंगल तेजी से कम होते जा रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां पिछले 15 साल में (1995 से 2010) जंगल 51 घनमीटर प्रति हेक्टेयर से 35 घनमीटर प्रति हेक्टेयर पर सिमट आए हैं.

तीन साल में (2008 से 2011) 33590 हेक्टेयर जंगल भूमि 300 से अधिक खदानों के लिए परिवर्तित कर दी गई. एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में हर साल 11196 हेक्टेयर खदानों के लिए परिवर्तित कर दी जाती है.

मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 5 सालों (2005-10) में अवैध खनन के कारण सरकार को 1400 करोड़ रुपये की हानि हुई है.

रिपोर्टः संदीप सिसोदिया, वेबदुनिया

संपादनः ए जमाल

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