सऊदी उच्चायोग के भीतर कत्ल किए गए पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में रियाद की अदालत ने पांच लोगों को मौत की सजा सुनाई गई. सऊदी राजकुमार के करीबियों को क्लीन चिट मिली.
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सऊदी अरब की राजधानी रियाद में एक अदालत ने वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मुकदमे में आठ अभियुक्तों को दोषी करार दिया. 23 दिसंबर 2019 को फैसला सुनाते हुए अदालत ने पांच दोषियों की मौत की सजा सुनाई. तीन अन्य दोषियों को कैद की सजा दी गई है.
सऊदी अरब के सरकारी टेलिविजन अल-एकबरिया के मुताबिक दोषी सजा के खिलाफ अपील कर सकते हैं. ट्रायल के दौरान सऊदी अरब ने किसी भी अभियुक्त का नाम सार्वजनिक नहीं किया.
सऊदी अरब के राजकुमार के पूर्व शीर्ष सलाहकार सौद अल-काहतानी को एक तरह से क्लीन चिट दी गई है. सरकारी टीवी के मुताबिक अटॉर्नी जनरल की जांच में अल-काहतानी के हत्याकांड में शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिला. कोर्ट ने हत्याकांड के वक्त इंस्ताबुल के सऊदी उच्चायोग में तैनात कॉन्सुल जनरल मोहम्मद अल-ओतैबी को भी क्लीन चिट दी है. कोर्ट के फैसले के बाद अल-ओतैबी को जेल ने रिहा किया गया.
अमेरिका में रहने वाले सऊदी अरब के पत्रकार जमाल खशोगी की दो अक्टूबर 2018 को इस्तांबुल में सऊदी अरब के उच्चायोग में हत्या कर दी गई. 60 साल के खगोशी शादी के लिए जरूरी कुछ दस्तावेज लेने के लिए उच्चायोग के भीतर दाखिल हुए, लेकिन बाहर कभी नहीं लौटे. खशोगी की हत्या की जानकारी सबसे पहले तुर्की के मीडिया ने दी. तुर्की के जांच अधिकारियों के मुताबिक कॉन्सुलेट के भीतर सुनियोजित तरीके से खशोगी की हत्या की गई.
तुर्की और संयुक्त राष्ट्र समेत कुछ मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया कि खशोगी की हत्या सऊदी राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान के इशारों पर हुई. मीडिया रिपोर्टों, सीसीटीवी फुटेज और तुर्की के आरोपों के बाद कई पश्चिमी देशों ने भी सऊदी अरब पर खशोगी की हत्यारों को सजा देने का दबाव बनाया. बढ़ते दबाव के बीच खुद सऊदी अरब ने स्वीकार किया कि एक "रफ ऑपरेशन" में खशोगी की मौत हो गई.
खशोगी निर्वासन में अमेरिका में रह रहे थे. वह सऊदी अरब की राजशाही के आलोचक थे. अमेरिका ने हत्याकांड में कथित भूमिका के लिए राजकुमार के पूर्व सलाहकार सौद अल-काहतानी पर प्रतिबंध भी लगा रखे हैं.
नौ सत्रों की सुनवाई के बाद सोमवार को रियाद की अदालत ने कहा कि पहले दोषियों को हत्या करने का इरादा नहीं था. हत्याकांड की सुनवाई भी बहुत ही गोपनीय तरीके से हुई. सुनवाई के दौरान सिर्फ तुर्की के कुछ कूटनीतिक अधिकारी और खशोगी परिवार के सदस्य ही मौजूद रहे.
मीडिया की आजादी पर कहीं कम खतरा है तो कहीं ज्यादा. वन फ्री प्रेस कॉलिशन का उद्देश्य इसी को उजागर करना है. संस्था ऐसे पत्रकारों के बारे में जागरूक करना चाहती है जिनकी जान को या तो खतरा बना हुआ है या फिर जान ली जा चुकी है.
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वन फ्री प्रेस कॉलिशन
मार्च 2019 में "वन फ्री प्रेस कॉलिशन" की स्थापना हुई जो कि दुनिया भर के मीडिया संस्थानों का ऐसा मंच है जहां अभिव्यक्ति की आजादी पर चर्चा होती है. डॉयचे वेले भी इससे जुड़ा है. हर महीने प्रेस फ्रीडम से जुड़े दस मामलों की सूची जारी की जाएगी. जानिए अप्रैल 2019 की सूची में कौन कौन है.
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मिरोस्लावा ब्रीच वेलदुसेआ, मेक्सिको
मार्च 2017 में मेक्सिको की मिरोस्लावा ब्रीच की हत्या कर दी गई. मिरोस्लावा नेताओं और माफिया के संबंधों पर रिपोर्टिंग कर रही थीं. हत्या से पहले तीन बार उन्हें धमकियां मिली थीं. फिलहाल एक संदिग्ध हिरासत में है और मामला अदालत में चल रहा है.
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मारिया रेसा, फिलीपींस
13 फरवरी 2019 को फिलीपींस के नेशनल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने मारिया रेसा को गिरफ्तार किया. उन पर साइबर कानून के उल्लंघन का मामला दर्ज था. अगले दिन उन्हें रिहा तो कर दिया गया लेकिन उनकी कंपनी रैपलर पर टैक्स संबंधी मामले शुरू कर दिए गए. 28 मार्च को रैपलर के कई पत्रकारों के खिलाफ वॉरंट जारी किए गए.
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त्रान थी नगा, वियतनाम
अदालत में महज एक दिन की पेशी के बाद इन्हें नौ साल की कैद की सजा सुना दी गई. इन पर आरोप है कि इन्होंने सरकार के खिलाफ प्रचार किया. त्रान थी को नकारात्मक प्रोपेगैंडा चलाने का दोषी पाया गया क्योंकि उन्होंने ऐसे कई वीडियो बनाए थे जो प्रशासन की आलोचना करते थे और भ्रष्टाचार को दर्शाते थे.
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आजिमजोन अस्कारोव, किर्गिस्तान
इन्होंने देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाई और कई रिपोर्टें बनाईं. अपने इस जुर्म की सजा के तौर पर ये नौ साल जेल में बिता चुके हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के आग्रहों के बावजूद किर्गिस्तान सरकार सजा खत्म करने के लिए राजी नहीं है.
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राणा अयूब, भारत
भारत में राणा अयूब एक जाना माना नाम है. राणा स्वतंत्र पत्रकार हैं और अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर आवाज उठाती रही हैं. इसके लिए उन्हें लगातार ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता रहा है. राणा को जान से मार देने की धमकियां मिलीं, उनके चेहरे को मॉर्फ कर नग्न तस्वीरों के साथ लगाया गया और उनका पता और फोन नंबर सार्वजानिक किया गया.
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मिगेल मोरा और लुसिया पिनेडा उबाउ, निकारागुआ
दिसंबर 2018 में निकारागुआ पुलिस 100% नोटिसियास नाम के टीवी चैनल के दफ्तर में पहुंची और स्टेशन डायरेक्टर मिगेल मोरा और न्यूज डायरेक्टर लुसिया पिनेडा उबाउ को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पत्रकारों को नफरत और हिंसा फैलाने के जुर्म में कैद किया गया है. उन्हें उनके कानूनी अधिकारों से भी वंचित रखा जा रहा है.
तस्वीर: 100% Noticias
आना निमिरियानो, दक्षिण सूडान
इन्हें सरकार की ओर से अपना अखबार "जूबा मॉनिटर" बंद करने को कहा गया है. आए दिन इनके पत्रकारों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है और इनका सारा समय उन्हें जेल से रिहा कराने में लग जाता है. इनके काम को भी लगातार सेंसर किया जाता है. लेकिन इसके बावजूद इन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं.
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अमादे अबुबकार, मोजाम्बिक
जनवरी 2019 को इन्हें सैन्य हमले से भागते परिवारों की तस्वीर खींचते हुए गिरफ्तार किया गया था. कई दिन सेना की कैद में गुजारने के बाद इन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन इनकी रिहाई के कोई आसार नहीं दिखते क्योंकि बिना कानूनी कार्रवाई के ही इन्हें कैद में रखा जा रहा है.
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क्लाउडिया डुकु, कोलंबिया
2010 में इंटरनेशनल वुमेंस मीडिया फाउंडेशन ने इन्हें "करेज इन जर्नलिज्म" पुरस्कार से नवाजा था. क्लाउडिया का अपहरण किया गया, उन्हें मानसिक रूप से टॉर्चर किया गया और गैरकानूनी रूप से उन पर लगातार नजर रखी गई. अदालत ने क्लाउडिया और उनकी बेटी की प्रताड़ना के आरोप में खुफिया सेवा के तीन उच्च अधिकारियों को दोषी पाया लेकिन जनवरी 2019 में ये सब रिहा हो गए.
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ओसमान मीरगनी, सूडान
फरवरी 2019 में अल तयार नाम के अखबार के मुख्य संपादक मीरगनी को गिरफ्तार किया गया. अब तक यह नहीं बताया गया है कि उन पर क्या आरोप लगाए गए हैं. रिपोर्टों के अनुसार कैद में उनकी सेहत लगातार बिगड़ रही है. गिरफ्तारी से ठीक पहले वे सूडान में सरकार के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों पर लिख रहे थे.