सऊदी अरब को अपनी आर्थिक खस्ताहाली के कारण इस्लामिक कैलेंडर छोड़ना पड़ा है. उसका कहना है कि अब से वेतन देने के लिए पश्चिमी कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाएगा.
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दरअसल इस्लामी कैलेंडर का एक साल पश्चिमी कैलेंडर के मुकाबले 11 दिन छोटा होता है. इस तरह पश्चिमी कैलेंडर के मुताबिक सऊदी सरकार को सरकारी कर्मचारियों को सालाना 11 दिन का वेतन कम देना पड़ेगा. अरब न्यूज की खबर के अनुसार सऊदी कैबिनेट ने पिछले हफ्ते ही इस फैसले को हरी झंडी दे दी और ये एक अक्टूबर से लागू हो गया है.
पिछले हफ्ते ही कैबिनेट ने मंत्रियों के वेतन में 15 प्रतिशत की कटौती का फैसला भी किया जबकि सरकारी कर्मचारियों को 20 प्रतिशत कटौती झेलनी होगी. ज्यादातर सऊदी लोग सरकारी कंपनियों में काम करते हैं जहां काम के घंटे कम होते हैं और छुट्टियां ज्यादा होती हैं.
हज में क्या करते हैं लोग
दुनिया भर से लाखों मुसलमान हर साल हज के लिए सऊदी अरब जाते हैं. लेकिन वहां जाकर वे करते क्या हैं? जानिए...
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इहराम
श्रद्धालुओं को खास तरह के कपड़े पहनने होते हैं. पुरुष दो टुकड़ों वाला एक बिना सिलाई का सफेद चोगा पहनते हैं. महिलाएं भी सेफद रंग के खुले कपड़े पहनती हैं जिनमें बस उनके हाथ और चेहरा बिना ढका रहता है. इस दौरान श्रद्धालुओं को सेक्स, लड़ाई-झगड़े, खुशबू और बाल व नाखून काटने से परहेज करना होता है.
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तवाफ
मक्का में पहुंचकर श्रद्धालु तवाफ करते हैं. यानी काबा का सात बार घड़ी की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं.
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सई
हाजी मस्जिद के दो पत्थरों के बीच सात बार चक्कर लगाते हैं. इसे सई कहते हैं. यह इब्राहिम की बीवी हाजरा की पानी की तलाश की प्रतिमूर्ति होता है.
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अब तक उमरा
अब तक जो हुआ वह हज नहीं है. इसे उमरा कहते हैं. हज की मुख्य रस्में इसके बाद शुरू होती हैं. इसकी शुरुआत शनिवार से होती है जब हाजी मुख्य मस्जिद से पांच किलोमीटर दूर मीना पहुंचते हैं.
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जबल उर रहमा
अगले दिन लोग जबल उर रहमा नामक पहाड़ी के पास जमा होते हैं. मीना से 10 किलोमीटर दूर अराफात पहाड़ी के इर्द गिर्द जमा ये लोग नमाज अता करते हैं.
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मुजदलफा
सूरज छिपने के बाद हाजी अराफात और मीना के बीच स्थित मुजदलफा जाते हैं. वहां वे आधी रात तक रहते हैं. वहीं वे शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा करते हैं.
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फिर ईद
अगला दिन ईद के जश्न का होता है जब हाजी मीना लौटते हैं. वहां वे रोजाना के तीन बार के पत्थर मारने की रस्म निभाते हैं. आमतौर पर सात पत्थर मारने होते हैं.
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पहली बार के बाद
पहली बार पत्थर मारने के बाद बकरे हलाल किये जाते हैं और जरूरतमंद लोगों के बीच मांस बांटा जाता है. बकरे की हलाली को अब्राहम के अल्लाह की खातिर अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी का प्रतीक माना जाता है.
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सफाई
अब हाजी अपने बाल कटाते हैं. पुरुष पूरी तरह गंजे हो जाते हैं जबकि महिलाएं एक उंगल बाल कटवाती हैं. यहां से वे अपने सामान्य कपड़े पहन सकते हैं.
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फिर से तवाफ
हाजी दोबारा मक्का की मुख्य मस्जिद में लौटते हैं और काबा के सात चक्कर लगाते हैं.
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पत्थर
हाजी दोबारा मीना जाते हैं और अगले दो-तीन दिन तक पत्थर मारने की रस्म अदायगी होती है.
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और फिर काबा
एक बार फिर लोग काबा जाते हैं और उसके सात चक्कर लगाते हैं. इसके साथ ही हज पूरा हो जाता है.
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तेल के दामों में आई गिरावट के कारण सऊदी अरब को भारी घाटा उठाना पड़ा है और इससे निपटने के लिए वह अपने खर्चों में कटौती कर रहा है. अप्रैल में सऊदी शाह सलमान के बेटे डिप्टी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अर्थव्यवस्था में विविधता लाने के लिए विजन 2030 योजना पेश की थी. इसमें निजी क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देना और 2020 तक बजट में वेतन की हिस्सेदारी को 45 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी करना शामिल है. वह तेल उत्पादन पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को कम करना चाहते हैं. 2014 से ही तेल के दामों में गिरावट हो रही है जिसकी सीधी मार सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था पर पड़ रही है.
सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले कई बोनस भी बंद कर दिए गए हैं जबकि आमदनी बढ़ाने के लिए वीजा फीस बढ़ाने जैसे कदम भी उठाए गए हैं. हर साल दुनिया भर से लाखों लोग हज करने सऊदी अरब जाते हैं जहां मुसलमानों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थल हैं. इस्लामी हिजरी कैलेंडर में भी 12 महीने होते हैं लेकिन चांद दिखने के आधार पर दिनों की संख्या 30 या 29 होती है. इसलिए उसका साल दुनिया भर में प्रचलित पश्चिमी कैलेंडर से छोटा होता है. 1932 में आधुनिक सऊदी अरब की स्थापना के बाद से ही वहां इस्लामिक कैलेंडर चल रहा था.
रिपोर्ट: एके/वीके (एएफपी, डीपीए)
इन हकों के लिए अब भी तरस रही हैं सऊदी महिलाएं
सऊदी अरब में लंबी जद्दोजहद के बाद महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार तो मिल गया है. लेकिन कई बुनियादी हकों के लिए वे अब भी जूझ रही हैं.
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पुरुषों के बगैर नहीं
सऊदी अरब में औरतें किसी मर्द के बगैर घर में भी नहीं रह सकती हैं. अगर घर के मर्द नहीं हैं तो गार्ड का होना जरूरी है. बाहर जाने के लिए घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी है, फिर चाहे डॉक्टर के यहां जाना हो या खरीदारी करने.
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फैशन और मेकअप
देश भर में महिलाओं को घर से बाहर निकलने के लिए कपड़ों के तौर तरीकों के कुछ खास नियमों का पालन करना होता है. बाहर निकलने वाले कपड़े तंग नहीं होने चाहिए. पूरा शरीर सिर से पांव तक ढका होना चाहिए, जिसके लिए बुर्के को उपयुक्त माना जाता है. हालांकि चेहरे को ढकने के नियम नहीं हैं लेकिन इसकी मांग उठती रहती है. महिलाओं को बहुत ज्यादा मेकअप होने पर भी टोका जाता है.
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मर्दों से संपर्क
ऐसी महिला और पुरुष का साथ होना जिनके बीच खून का संबंध नहीं है, अच्छा नहीं माना जाता. डेली टेलीग्राफ के मुताबिक सामाजिक स्थलों पर महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रवेश द्वार भी अलग अलग होते हैं. सामाजिक स्थलों जैसे पार्कों, समुद्र किनारे और यातायात के दौरान भी महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग व्यवस्था होती है. अगर उन्हें अनुमति के बगैर साथ पाया गया तो भारी हर्जाना देना पड़ सकता है.
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रोजगार
सऊदी सरकार चाहती है कि महिलाएं कामकाजी बनें. कई सऊदी महिलाएं रिटेल सेक्टर के अलावा ट्रैफिक कंट्रोल और इमरजेंसी कॉल सेंटर में नौकरी कर रही हैं. लेकिन उच्च पदों पर महिलाएं ना के बराबर हैं और दफ्तर में उनके लिए खास सुविधाएं भी नहीं है.
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आधी गवाही
सऊदी अरब में महिलाएं अदालत में जाकर गवाही दे सकती हैं, लेकिन कुछ मामलों में उनकी गवाही को पुरुषों के मुकाबले आधा ही माना जाता है. सऊदी अरब में पहली बार 2013 में एक महिला वकील को प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिला था.
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खेलकूद में
सऊदी अरब में लोगों के लिए यह स्वीकारना मुश्किल है कि महिलाएं भी खेलकूद में हिस्सा ले सकती हैं. जब सऊदी अरब ने 2012 में पहली बार महिला एथलीट्स को लंदन भेजा तो कट्टरपंथी नेताओं ने उन्हें "यौनकर्मी" कह कर पुकारा. महिलाओं के कसरत करने को भी कई लोग अच्छा नहीं मानते हैं. रियो ओलंपिक में सऊदी अरब ने चार महिला खिलाड़ियों को भेजा था.
तस्वीर: Fotolia/Kzenon
संपत्ति खरीदने का हक
ऐसी औपचारिक बंदिश तो नहीं है जो सऊदी अरब में महिलाओं को संपत्ति खरीदने या किराये पर लेने से रोकती हो, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि किसी पुरुष रिश्तेदार के बिना महिलाओं के लिए ऐसा करना खासा मुश्किल काम है.