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खस्ताहाल है भारतीय पीएम का पाकिस्तानी गांव

२५ अगस्त २०१२

कई साल पहले गुलाम मोहम्मद खान को लगता था कि उनका बुद्धिमान स्कूली साथी 1947 में हुए भारत पाक के बंटवारे में मारा गया. जब उन्होंने मनमोहन सिंह को भारतीय प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हुए देखा तो उनका दिल बाग बाग हो गया.

To go with AFP story Pakistan-India-politics-people,FEATURE by Khurram Shahzad This picture taken on August 4, 2012 shows Pakistani children in a street in Gah village, where Indian Prime Minister Manmohan Singh was born. Not long after taking office, Singh wrote to Pakistan's then ruler, General Pervez Musharraf, asking that Gah be earmarked for development. AFP PHOTO / Farooq NAEEM (Photo credit should read FAROOQ NAEEM/AFP/GettyImages)
तस्वीर: AFP/Getty Images

पाकिस्तान के गाह गांव में रहने वाले खान बताते हैं, "वह हमारे क्लास के मॉनिटर थे. हम साथ खेलते थे. वह बहुत ही बुद्धिमान थे. हमारे टीचर कहते कि कुछ समझ न आए तो उनसे पूछ लिया करो."

इस्लामाबाद से सौ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में बसे गाह के ढाई हजार निवासियों की मनमोहन सिंह मदद करना चाहते थे. जिस मॉडल गांव की कल्पना मनमोहन सिंह ने की थी, वह आज खंडहर और खाली पड़ा है. जिन इमारतों को बनाने में कई सौ डॉलर लगे, वे खाली और आधी अधूरी पड़ी हुई हैं. सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इन्हें ठीक करने के लिए कभी कुछ करेगा.

प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने तुरंत तत्कालीन शासक जनरल परवेज मुशर्रफ को लिखा कि गाह में विकास के कार्य किए जाएं. प्रांतीय पंजाब सरकार ने गांव को जाने वाला एक बढ़िया हाइवे बनाया. लड़के और लड़कियों के लिए हाई स्कूल खोला, इतना ही नहीं पालतू पशुओं के लिए एक अस्पताल बनाना भी शुरू किया और गांव में पानी की सप्लाई शुरू की.

मनमोहन सिंह का पाकिस्तानी गांव गाहतस्वीर: AFP/Getty Images

सिंह ने एक भारतीय कंपनी को वहां सोलर स्ट्रीट लाइटें लगाने के लिए कहा. साथ ही वहां के 51 घरों को भी सौर ऊर्जा से बिजली मिलने लगी. मनमोहन सिंह के पुराने घर के पास वाली मस्जिद में पानी गर्म करने का सिस्टम लगाया गया. लेकिन 2008 में जब यह प्रोजेक्ट लगा तो पाकिस्तान में चुनाव हुए और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग एन पंजाब प्रांत में सत्ता में आई. मुशर्रफ को सत्ता से हटना पड़ा.

आज स्कूल और अस्पताल खाली पड़े हैं. न कोई टीचर है न कोई डॉक्टर. गांव वालों का कहना है कि विकास इसलिए नहीं हुआ कि इसका श्रेय पुरानी सरकार को जाता, नई को नहीं. गाह के मेयर आशिक हुसैन कहते हैं, "हमने जिला अधिकारियों और सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों से कई बार मुलाकात की लेकिन वह कहते हैं कि सुविधाओं के लिए कोई फंड नहीं है, वह इसे केंद्र सरकार से लेने की कोशिश कर रहे हैं."

वहीं पंजाब सरकार के प्रवक्ता परवेज रशीद का कहना है कि यह बिलकुल आधारहीन बात है. "राजनीतिक कारणों से गाह में कोई प्रोजेक्ट नहीं रोका गया है. प्रांत में इस वजह से कोई भी स्कीम नहीं रोकी गई. गांव का अस्पताल अभी भी बन रहा है. बाउंड्री वॉल इस साल बनेगी और अस्पताल के उपकरण भी इसी दौरान दिए जाएंगे." काम पूरा होने के बाद स्टाफ की नियुक्ति होगी. साथ ही सितंबर में स्कूल शुरू करने की बात उन्होंने कही.

गांव के युवा, वृद्ध सभी मनमोहन सिंह को देखने की उम्मीद लगाए हैं. खान ने एएफपी समाचार एजेंसी को बताया, "सभी उन्हें देखना चाहते हैं और धन्यवाद देना चाहते हैं. हम इसलिए भी उन्हें यहां बुलाना चाहते हैं कि यहां आने से पहले निश्चित ही अधूरी चीजें पूरी की जाएंगी और विकास होगा. स्कूलों और अस्पताल के लिए स्टाफ भी मिल जाएगा." मेयर को उम्मीद है कि अगर सितंबर में मनमोहन सिंह के 80वें जन्मदिन समारोह में पंजाब के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ शामिल हुए तो भी गांव का विकास कार्य पूरा हो जाएगा.

विकास का इंतजारतस्वीर: AFP/Getty Images

भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते चाहे जैसे भी हों, गाह के अधिकतर लोग मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने पर गर्व महसूस कहते हैं. खान कहते हैं, "वह इस मिट्टी में पैदा हुए हैं. हम चाहते हैं कि वह भारत पाकिस्तान की दोस्ती के हीरो बनें. वे कश्मीर मुद्दा हल करें. जब भी वे यहां आएंगे मैं उनसे इस बारे में जरूर बात करूंगा."

मनमोहन सिंह का पुश्तैनी घर भले ही टूट गया हो, लेकिन जिस प्राइमरी स्कूल में सिंह ने पढ़ाई की थी वह आज भी है. उनकी मार्कशीट स्कूल की दीवारों पर लगी है ताकि अच्छे नंबरों को देख कर नए बच्चे प्रोत्साहित हों और दुनिया के अहम पदों पर अपना नाम रौशन करें.

एएम/एमजे (एएफपी)

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