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खाने की मेज पर चिंपांजी

२५ अक्टूबर २०१२

युगांडा में चिंपांजियों को बचाने की मुहिम चला रहे कार्यकर्ताओं को अब एक नया मसला परेशान कर रहा है. उनके मुताबिक संरक्षित जंगलों के आसपास रह रहे लोगों ने चिंपांजियों को खाना शुरू कर दिया है.

तस्वीर: AP

गांबा चिंपांजी सेंचुरी में काम कर रही लिली आजारोवा को डर लग रहा है. उन्होंने नहीं सोचा था कि स्थानीय लोग चिंपांजी खाते होंगे. लेकिन अब उन्हें पता चला है कि चिंपांजी ही नहीं, बल्कि बंदर भी लोगों की मेज पर दिखने लगे हैं. गांबा सैंक्चुअरी लेक विक्टोरिया के पास एक द्वीप पर स्थित है. इसमें करीब 48 चिंपांजी हैं जिन्हें आजाद किया गया और यहां लाया गया. कई दशकों पहले इस इलाके में हजारों चिंपांजी घूमा करते थे. उस वक्त विक्टोरिया झील के आसपाल का अल्बर्टाइन रिफ्ट इलाका घने जंगलों से ढका हुआ था. यह इलाका युगांडा के पश्चिमोत्तर से लेकर देश के दक्षिण पश्चिमी इलाके तक फैला हुआ था.

लेकिन जंगल काफी हद तक गायब हो चुके हैं और विश्व वन्यजीव फंड डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक चिंपांजी चार अफ्रीकी देशों से गायब हो चुके हैं और कई दूसरे देशों में उनकी संख्या लगातार घटती जा रही है, ज्यादातर इसलिए क्योंकि लोग इनके मांस के लिए इन्हें मार रहे हैं. युगांडा में इस वक्त केवल 5,000 चिंपांजी बचे हैं. इनमें से कई चिंपांजी सुरक्षित अभयारण्य में रह रहे हैं जबकि कुछ निजी जंगलों में हैं.

संरक्षण कार्यकर्ता आजारोवा कहती हैं कि दो साल पहले उनके साथ काम कर रहे लोगों ने पता किया कि स्थानीय निवास चिंपांजियों का मीट खा रहे हैं. इनमें से कई पड़ोसी देश लोकतांत्रिक कांगो गणराज्य से आए शरणार्थी थे क्योंकि युगांडा में ज्यादातर लोग चिंपांजी का मांस नहीं खाते हैं, "इस इलाके में कांगो के कई शरणार्थी हैं और हो सकता है कि यहां के निवासियों ने उनसे प्रभावित होकर यह मांस खाना शुरू किया हो. यह युगांडा की संस्कृति का हिस्सा नहीं है लेकिन अब यह बड़ा मुद्दा बन रहा है. अब पूरे पश्चिमी इलाके में यह परेशानी बन रहा है." कांगो से शरणार्थियों के आने से युगांडा की जनसंख्या और वहां की संस्कृति पर असर पड़ा है. युगांडा बड़ी मुश्किल से शरणार्थियों को रख पा रहा है. करीब 16,000 कांगो शरणार्थी पश्चिम युगांडा में रह रहे हैं.

तस्वीर: AP

हालांकि अधिकारी कहते हैं कि इलाके में गरीबी भी इसकी वजह हो सकती है. स्थानीय लोग खाने के लिए जंगलों पर निर्भर है और ज्यादातर लोग बाजार से खाने का सामान खरीदने की हालत में नहीं है. आजारोवा कहती हैं, "लोग बेबस हैं और गरीब हैं क्योंकि यहां विकास नहीं है. वे जंगलों पर निर्भर हैं, शिकार पर भी और हो सकता है कि इस वजह से उन्होंने बंदरों और चिंपांजियों को खाना शुरू कर दिया हो."

लेकिन बात केवल चिंपांजियों की नहीं है. उनका गायब होना एक परेशानी है, लेकिन विशेषज्ञों को डर है कि इलाके में रह रहे लोग ईबोला नाम की बीमारी का शिकार होंगे. यह एक ऐसा बुखार है जिससे मौत भी हो सकती है और यह जानवरों से मनुष्य में फैलता है. युगांडा वाइल्डलाइफ प्राधिकरण के ऐंड्रू सेगूया कहते हैं कि किसी भी मांस को खाने से पहले जांच की जानी चाहिए. बंदर खाने वाले लोगों में खास बीमारियां देखी जाती हैं और ईबोला इनमें से एक है.

जुलाई में युगांडा के पश्चिमी किबाले जिले में महामारी फैल गई थी. डॉक्टरों का मानना है कि यह ईबोला बुखार का मामला था. जांच अभी चल रही है लेकिन मीडिया के मुताबिक 17 लोग मारे गए. इस बीच संरक्षण कार्यकर्ता आजारोवा कहती हैं कि लोगों के रवैये को बदलने की कोशिश की जा रही है और उन्हें बंदरों का मांस से होने वाली बीमारियों के बारे में बताया जा रहा है.

एमजी/एएम(आईपीएस)

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