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'खामोश हुई दिलों की धड़कन'

१० अक्टूबर २०११

गजलों की दुनिया जब नूर जहां, बेगम अख्तर, मेहदी हसन, तलत महमूद, मल्लिका पुखराज की महफिलों में खोई थी तब गंगानगर की गलियों से एक आवाज बड़ी सादगी से उठी और लोगों के दिलों तक पहुंची.

तस्वीर: AP

जगजीत सिंह की इस आवाज में निकली बात बहुत दूर तलक गई.

गजलों और गीतों के बीच एक मोटी लकीर हमेशा से रही है. शास्त्रीय धुनों पर गाई गजलों में आधुनिक साजों का इस्तेमाल कर जगजीत ने इस लकीर को मिटा दिया. यह तब की बात है जब गजल के साजिंदे बस सारंगी और तबला हुआ करते थे. जगजीत ने इसे बदल दिया. सारंगी की जगह वायलिन ने ले ली, गिटार इसमें और जुड़ गया जो कमी बाकी रही वह संतूर ने पूरा किया जरुरत पड़ी तो तबला और ढोलक के साथ ड्रम को भी जोड़ दिया. इन सब के साथ खूब पढ़ लिख कर चुनी गई शायरी तो है ही, सबके ऊपर थी उनकी आवाज जो एक साथ नर्म, मुलायम, साफ,खरी, करारी और मखमली थी. उनकी पकाई ये खिचड़ी लोगों को इतनी पसंद आई कि लोग इसी स्वाद में गजलों का मजा लेने लगे और बाकी सारे जायके पीछे छूट गए.

तस्वीर: AP

अनफॉरगेटेबल जगजीत

1976 में आया जगजीत सिंह का पहला बड़ा अलबम अनफॉरगेटबल सचमुच एक कभी न भूलने वाली सौगात बना. बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी इसी अलबम की नज्म है. कहते हैं कि किसी पत्रिका में जगजीत ने इस गजल को पढ़ा उसके बाद पहले इसे एक अलबम के लिए भूपेंद्र की आवाज में तैयार किया गया लेकिन किसी वजह से यह अलबम जारी नहीं हो सका फिर इसे एक फिल्म के लिए कंपोज किया गया लेकिन वह फिल्म भी रुक गई इसके बाज जब एचएमवी ने जगजीत का पहला एलपी रिकॉर्ड करने की मंजूरी दी तब उन्होंने इस नज्म को भी इस अलबम में शामिल किया. अनफॉरगेटेबल की इस नज्म ने जगजीत को परंपरागत गजल गायकों की भीड़ से अलग ला खड़ा किया. इसी से शुरु हुई सादगी से गजलों को अर्धशास्त्रीय अंदाज में गाने की परंपरा और जो गजलें कभी खास लोगों के महफिलों की मिल्कियत हुआ करती थीं वो वहां से उठ कर आम लोगों के घर आंगन तक पहुंचने लगीं.

आलोचना

जाहिर था कि आलोचकों को यह सब कुछ पसंद नहीं आया और गजल की गंभीरता से खिलवाड़ करने जैसी बातें हुई लेकिन लोकप्रियता जब बुलंदी पर हो तो आलोचनाओं की परवाह कौन करता है. इस खास अंदाज के बलबूते ही जगजीत की अलग पहचान बन रही थी. बड़े जतन से चुनी गई शायरी और फिर उतनी ही मेहनत से तैयार किया गया संगीत इन सब के साथ जब बोल जगजीत के होठों पर सजते तो उन्हें अमर होना ही पड़ता.

एक के एक बाद कर अंग्रेजी नाम वाले अलबम आते गए, अ साउंड अफेयर, पैशन्स, बियॉन्ड टाइम, एस्केटेसीज, द माइलस्टोन, विजंस, द लेटेस्ट, के साथ आगे बढ़ता ये सिलसिला विजंस, इनकोर, इनसर्च, इनसाइट, फेस टु फेस, मिराज और लव इज ब्लाइंड, तक जाता है.

बदलाव

इसके बाद आए जगजीत के अलबमों का नाम हिंदुस्तानी जबान में रखे जाने लगे सिलसिले, मरासिम,संवेदना, सोज, सहर, आईना, कोई बात चले इसी दौर के अलबम हैं. जगजीत सिंह के गाए कुल 80 अलबमों ने पिछले चार दशकों से गजल के मुरीदों को अपना बना रखा है. हर किसी के पास जगजीत को पसंद करने की अपनी अपनी वजहें है और इनमें बड़े राजनेताओं से लेकर फिल्मी दुनिया और खेल के साथ ही बड़ी तादाद में आम लोगों की पसंद शामिल है.

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सबकी पसंद

मशहूर शायर गुलजार कहते हैं,"जगजीत भारत के इकलौते गायक हैं जिन्होंने उर्दू के साथ न्याय किया है." गुलजार के टीवी सीरियल मिर्जा गालिब में लोगों ने नसीरुद्दीन शाह की अदाकारी में गालिब को चलते उठते बैठते और हंसते गुनगुनाते देखा लेकिन उनकी आवाज तो जगजीत सिंह ही बने. बहुत से लोग मानते हैं की जगजीत ने अपने आवाज और अंदाज के बलबूते करीब पौने दो सौ साल बाद गालिब को दोबारा जिंदा कर दिया. मौजूदा दौर के शायरों में निदा फाजली, सुदर्शन फाकिर, बशीर बद्र, शाहिद कबीर, कतिल शिफाई से लेकर जावेद अख्तर और गुलजार तक सबकी शायरी की आवाज जगजीत के गले से निकलती रही है. यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री और मशहूर कवि अटल बिहारी बाजपेयी की कविताओं को भी जब आवाज देने की बात आई तो उसका पता भी जगजीत सिंह के घर का ही मिला. संवेदना और नई दिशा इसी कोशिश की पैदाइश हैं.

जगजीत चित्रा की जोड़ी

अनफॉरगेटेबल के जन्म से पहले ही संघर्ष के दिनों में विज्ञापन फिल्मों के जिंगल्स गाते गाते जगजीत की चित्रा के साथ जोड़ी बन गई थी. दोनों ने साथ मिल कर अपनी पहचान बनाने के लिए खूब संघर्ष किया और बाद में उतने ही कामयाब भी हुए. एक साथ महफिलें सजाते, सुर लगाते और गाते गुनगुनाते दोनों एक दूसरे के हो गए. वह भारत की पहली ऐसी जोड़ी थी जो गजल गाने के लिए एक साथ मंच पर आई. इन दोनों को एक साथ गाते देखना गजल प्रेमियों के लिए एक बड़ी सौगात हुआ करता. 1990 में इकलौते बेटे की कार दुर्घटना में दुखद मौत के बाद ये जोड़ी टूट गई चित्रा ने खामोशी की चादर ओढ़ ली, जगजीत गाते रहे पर उनकी आवाज पर बेटे के गम का दर्द हमेशा के लिए चस्पां हो गया. उन्हें सुनने वाले लोग उनकी आवाज में आए इस फर्क को पहचानते हैं.

प्लेबैक सिंगिंग

गजल गायक के रूप में जब उन्हें ख्याति मिलनी शुरु हो गई थी तभी वह हिंदी फिल्मों से प्लेबैक सिंगर और म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में भी जुड़े. प्रेमगीत के होठों से छू लो तुम... ने इस गाने के साथ साथ उनकी आवाज को भी हिंदी फिल्मों के लिए अमर कर दिया. साथ साथ, अर्थ, आज, लीला, दुश्मन, सरफरोश, तरकीब, जॉगर्स पार्क ऐसी ही कुछ फिल्में हैं जिनमें उनके संगीत या गायकी ने रंग भरे. टीवी सीरियलों में मिर्जा गालिब के अलावा कहकशां, नीम का पेड़ और हैलो जिंदगी जैसे कुछ और नाम भी हैं जिनमें जगजीत की आवाज और संगीत का रस घुला है. किंग ऑफ गजल के रूप में मशहूर जगजीत ने गजलों के साथ ही भक्ति संगीत में भी बराबर का दखल रखा है. हे राम, मां, सांवरा, कृष्ण भजन, कबीर जैसे कुछ बेहद कामयाब अलबमों से इसकी बानगी मिलती है. हिंदी, उर्दू के अलावा गुजराती, पंजाबी, बंगाली , सिंधी और नेपाली में भी जगजीत के सुर सजे हैं.

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युवाओं की पसंद

भारत के अलावा एशिया और दुनिया के बाकी हिस्से में भी जगजीत की महफिलों में भारी भीड़ उमड़ती और युवाओं की तो इसमें एक बहुत बड़ी तादाद होती. दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम का विशाल हॉल भी जगजीत के मुरीदों के लिए बहुत छोटा पड़ जाता. कई कई हजार रूपये की टिकट होने के बावजूद लोगों को जगह नहीं मिलती वह भी तब जबकि यहां हर दूसरे तीसरे महीने एक शो होता था. दिल्ली में आखिरी शो पिछले महीने ही हुआ था और तब भी ऐसे ही हालात थे. जिस दिन उनकी तबियत खराब हुई उस दिन भी उन्हें मुंबई के षण्मुगम हॉल में विख्यात गजल गायक गुलाम अली के साथ एक महफिल सजानी थी... अफसोस वो शो अब कभी नहीं हो सकेगा. पिछले तीन दशकों से भारत की गजल गायकी में एक ही नाम सबसे सिर चढ़ कर बोल रहा है और वह है जगजीत सिंह.

बच्चों के साथ

जगजीत सिंह की एक बहुत मशहूर गजल है वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी इस गीत के जरिए उन्होंने बचपन के सुनहरे दौर को जिया है और सुनने वाले इसे सुनकर बार बार अपने उन्हीं दिनों में लौट जाते हैं. बचपन से ये लगाव ही शायद जगजीत को सामाजिक कार्यों की तरफ ले गया. बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाओं से जुड़ कर उन्हें खुशी मिलती थी. क्राइ और प्रयास जैसे संगठनों के साथ मिल कर जगजीत ने भारत के बचपन को बचाने के लिए कई तरह से सहयोग किया.

करियर में आगे बढ़ने के साथ ही जगजीत ने युवा कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए भी काम किया. तलत अजीज, अभिजीत, विनोद सहगल, अशोक खोसला, शिजा रॉय, विक्रम सिंह जैसे नाम उन्हीं के सहयोग से अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए पर जगजीत के बाद उनकी तरह का गजल गायक नजर नहीं आता. जगजीत ने नई परंपरा तो शुरु की लेकिन उस परंपरा को उनसे आगे कोई ले जाए ऐसा कोई शिष्य तैयार करने में नाकाम रहे. यही वजह है कि अब उनके बाद भारत की गजल गायकी के आकाश में जो खालीपन है उसे भर पाना बेहद मुश्किल होगा.

पुरकशिश, पुरनूर, पुरसकून, और पुरसुखन जगजीत की गजलें पूरी दुनिया के लिए एक अमानत हैं. सदियां बीत जाएंगी पर इस आवाज से लोगों के दिल में उमड़ता जज्बातों का तूफान अपना असर दिखाता रहेगा.

रिपोर्टः एन रंजन

संपादनः आभा मोंढे

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