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खास बीमारी का खास दिन

२८ फ़रवरी २०१३

फिल्म पा में अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे व्यक्ति का किरदार अदा किया जिसे प्रोजेरिया सिंड्रोम है. एक ऐसी बीमारी जो लाखों में किसी एक को ही होती है. ऐसे ही लोगों को समर्पित है फरवरी का आखिरी दिन.

तस्वीर: AP

उन्हें चिकित्सा के सौतेले बच्चे भी कहा जाता है. इसलिए क्योंकि आधुनिक दवाएं भी उनकी मदद करने में सहायक नहीं हैं. ये वे लोग हैं जिन्हें रेयर डिजीज यानी ऐसी बीमारियां हैं जो हजारों में से किसी एक को ही होती है. कुछ ऐसी अनोखी बीमारियां जिन्हें अब तक विज्ञान समझ ही नहीं पाया है. अकेले जर्मनी में ही ऐसे 40 लाख लोग हैं. दुनिया भर में यह आंकडा 25 करोड़ का है.

ये दिखाने के लिए कि इन बीमारियों से जूझ रहे लोग अपनी जंग में अकेले नहीं है, फरवरी के आखिरी दिन को इंटरनेशनल डे ऑफ रेयर डिजीज के तौर पर मनाया जाता है. यूरोपीय संघ की परिभाषा के अनुसार रेयर डिजीज उन बीमारियों को कहा जाता है जो 10 हजार में से पांच से भी कम लोगों को हो. मशहूर खगोल वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग इसी तरह की बीमारी का एक बड़ा उदाहरण हैं.

मदद करने वाला कोई नहीं

दिक्कतें वहीं शुरू हो जाती हैं जब बीमारी के बारे में पता चलता है. ये बीमारियां इतनी दुर्लभ हैं कि अधिकतर डॉक्टरों को भी नहीं समझ आता कि करना क्या है. बहुत अच्छे तजुर्बे वाले डॉक्टर का भी जीवन में शायद एक बार ऐसे किसी मरीज से सामना होता है. जर्मनी में काम करने वाले डॉक्टर गीजबेर्ट फोइग्ट का कहना है कि डॉक्टर इस हालत में ही नहीं होते की मरीज को कुछ भी ठोस बता सकें. इसलिए मरीज और परिवार वाले बहुत बेबस महसूस करने लगते हैं, क्योंकि उनकी मदद करने वाला कोई भी नहीं होता. अधिकतर मरीजों से कहा जाता है कि उन्हें साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर है, यानी कोई ऐसी बीमारी जो उनके दिमाग और शरीर दोनों पर असर कर रही है. लेकिन किस तरह का असर है और उसे रोका कैसे जा सकता है यह समझने में सालों लग जाते हैं.

जर्मनी में नवंबर 2008 से ऐसे लोगों की मदद के लिए आख्से नाम की संस्था का गठन किया गया. संस्था की अध्यक्ष मिरियम मन बताती हैं, "यूरोप के दूसरे देशों में रेयर डिजीज की दिशा में काम किया जा रहा था, मिसाल के तौर पर फ्रांस और डेनमार्क में और अमेरिका में भी." लेकिन जर्मनी में ना तो ऐसी कोई संस्था थी और ना ही ऐसे मरीजों के लिए अलग अस्पताल. पिछले कुछ सालों में यह स्थित बदली है.

ऑर्फन डिजीज

आख्से बर्लिन के मेडिकल स्कूल चारिटे के साथ मिल कर काम कर रहा है. डॉक्टरों और मरीजों को यहां रेयर डिजीज पर जानकारी दी जाती है. लोग सलाह मशवरे के लिए भी यहां आ सकते हैं. इसके साथ साथ ऑर्फा.नेट पर यूरोप के 30 देशों के आंकड़े भी देख सकते हैं. दरअसल रेयर डिजीज को ऑर्फन डिजीज भी कहा जाता है. इस वेबसाइट को पैरिस से चलाया जाता है और इसमें 5600 अलग अलग दुर्लभ बीमारियों के बारे में बताया गया है. साथ ही अलग अलग देशों में काम कर रही संस्थाओं की सूची भी शामिल की गयी है.

2010 में ट्यूबिंगन के यूनिवर्सिटी क्लिनिक में रेयर डिजीज को समझने के लिए शोध केंद्र खोला गया. इस साल अप्रैल में यहां एक और केंद्र खोला जाएगा. डॉक्टर यहां रिसर्चरों के साथ मिल कर बीमारी को समझने के प्रयास कर रहे हैं. मरीजों के लिए यह उम्मीद की एक किरण जैसा है. यूनिवर्सिटी क्लिनिक के अध्यक्ष ओलाफ रीस का कहना है कि जर्मनी भर में सुविधाएं तो बहुत हैं, लेकिन अधिकतर डॉक्टर ही इनके बारे में नहीं जानते. इंटरनेट पर इतनी जानकारी जमा है कि डॉक्टरों को बीमारी के लक्षणों को बस डेटाबेस में डालना है और उन्हें उस पर जानकारी मिल जाएगी. इसके लिए सहयोग की जरूरत है. केवल जर्मनी या यूरोप में ही नहीं, दुनिया भर में. यही वजह है कि 2007 से फरवरी के आखिरी दिन को इन लोगों को समर्पित किया जा रहा है.

रिपोर्ट: गुडरुन हाइजे /आईबी

संपादन: आभा मोंढे

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