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खिलौनों और वीडियो गेम्स के बाजार में भारत के लिए मौके हैं

महेश झा
१ सितम्बर २०२०

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में भारत में खिलौनों के उत्पादन का मुद्दा उठाया है. कोई संयोग नहीं कि इसी हफ्ते जर्मनी के कोलोन में अंतरराष्ट्रीय मेला गेम्सकॉम हुआ, जो वीडियो गेम्स का भविष्य तय करता है.

BG Italien im Lockdown | Familie in San Fiorano
तस्वीर: Reuters/M. Toniolo

प्रधानमंत्री मन की बात में हमेशा ऐसे मुद्दे उठाते हैं जो देश को लोगों को प्रेरणा दें, कुछ नया करने के लिए उनका उत्साह बढ़ाएं. उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के तहत देश को दुनिया भर के लिए खिलौनों के उत्पादन का केंद्र बनाने की वकालत की है. वोकल अबाउट लोकल टॉयज का नारा भले ही चीन की जगह भरने की कोशिश का हिस्सा हो, लेकिन यह पहला मौका है जब देश के बच्चों की खिलौनों की जरूरत के बारे में सोचा जा रहा है.

भारत में सारा जोर खेलने के बदले पढ़ने पर रहा है. इस बात की चिंता करने के लिए मां बाप को अकेला छोड़ दिया है कि उनके बच्चों को खिलौना मिले या नहीं, वे खेलने जाएं या नहीं. स्कूली शिक्षा के प्रसार के साथ खेलने का समय कम होता गया है. प्रधानमंत्री ने खिलौनों के उत्पादन में देश की समृद्ध परंपरा की ओर ध्यान खींचा है और यह भी कहा है कि बच्चों के विकास के लिए खिलौने बहुत जरूरी हैं.

भारत में खिलौनों की संभावना

इसमें कोई शक नहीं कि अगर भारत खिलौनों के अपने बाजार का विकास कर ले तो वह बड़ी आसानी से दुनिया के लिए भी खिलौने बना सकता है. ये ना सिर्फ पुराने हुनरमंदों को रोजगार देगा बल्कि ऑनलाइन गेम्स के विकास में भी बहुत से युवा प्रतिभाओं को आकर्षित करेगा.

तस्वीर: Imago Images/AFLO/Y. Tsunoda

प्रधानमंत्री का अपना संसदीय क्षेत्र वाराणसी काठ के खिलौनों के लिए प्रसिद्ध है. शहर के कश्मीरीगंज और आसपास के इलाके में लकड़ी के खिलौनों का 30 करोड़ रुपये का कारोबार है. करीब 3,000 लोगों को रोजगार देने वाला ये कारोबार फिलहाल कोरोना महामारी के कारण ठप्प पड़ा है, लेकिन उसे बढ़ाकर दोगुना करने का इरादा है. कर्नाटक में खिलौनों के उत्पादन के लिए कोप्पला में 400 एकड़ का एक औद्योगिक क्लस्टर बनाया जा रहा है और कर्नाटक के मुख्यमंत्री को उम्मीद है कि आने वाले पांच वर्षों में करीब 5,000 करोड़ रुपये का निवेश आएगा. साथ ही करीब 40,000 नए रोजगारों का सृजन होगा.

खिलौनों का वैश्विक बाजार करीब 90 अरब यूरो का है. इसका मूल्य करीब 8,000 अरब रुपये के बराबर है लेकिन इसमें भारत का हिस्सा बहुत कम है. इसलिए कर्नाटक सरकार ने वैश्विक खिलौना उत्पादकों को कोप्पला में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के खिलौनों का हिस्सा सिर्फ 45 करोड़ यूरो का है. भारत का बाजार चीन में बने खिलौनों से भरा है. एक अनुमान के अनुसार भारत के बाजार में 90 फीसदी गैर ब्रांडेड चीनी खिलौने हैं. चीन के साथ लद्दाख में चल रहे विवाद में दबाव डालने के लिए भारत खिलौना उद्योग में भी आत्मनिर्भरता बढ़ाना चाहता है और स्थानीय उत्पादकों को बढ़ावा देना चाहता है. दुनिया में 12 साल तक की उम्र के बच्चों की आबादी का 25 फीसदी भारत में रहता है और इस बाजार की बड़ी संभावनाएं हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Karmann

जर्मन बाजार से तुलना

जर्मनी में 2019 में 3.4 अरब यूरो के खिलौने बेचे गए. वैश्विक तुलना में जर्मन बाजार बहुत बड़ा नहीं है, इसलिए यहां करीब 200 छोटी कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही हैं. फिर भी दबदबा इस समय लेगो कंपनी का है जिसका अंतरराष्ट्रीय कारोबार करीब 5 अरब यूरो का है. उसके बाद अमेरिकी कंपनियों हासब्रो और माटेल का नंबर है. जर्मन कंपनियां जिम्बा जिकी और प्लेमोबिल बाजार पर कब्जे की रेस में हैं. दोनों का सालाना कारोबार करीब 70 करोड़ यूरो का है.

जर्मनी में इस समय ये बहस चल रही है कि बच्चों के खिलौने किस तरह के हों. देश में शुरू से ही काउबॉय और रेड इंडियन का खेल बहुत लोकप्रिय रहा है जिसमें हाथ उठाओ नहीं तो गोली चलाता हूं जैसी लाइनें बोलीं जाती है. खेल की दुनिया में इनका कोई महत्व नहीं लेकिन हिंसा के बढ़ते दौर में शिक्षाशास्त्रियों को लगता है कि बच्चों के हाथ में खिलौनों के रूप में बंदूकें थमाने से उनमें हिंसा की प्रवृति बढ़ती है. मनोवैज्ञानिकों की राय अलग है. उनका मानना है कि जो बचपन में युद्ध और हमले का खेल खेलता है वह जरूरी नहीं कि बड़ा होकर सेना का जनरल या डकैत बने.

तस्वीर: Spielwarenmesse eG/Peter Dörfel Fotodesign

ये खिलौने बच्चों में लोकप्रिय हैं और खिलौना निर्माताओं को कई खिलौनों के लिए आलोचना भी झेलनी पड़ रही है. जैसे कि डेनमार्क की कंपनी लेगो को 1600 से ज्यादा टुकड़ों वाले लड़ाकू विमान के लिए जिसकी कीमत 125 यूरो है. जर्मनी में पिछले सालों में चली बहस के कारण बच्चों के कमरों में युद्धक खिलौनों की मात्रा घटी है. ये बात अभिभावकों के बीच हुए एक सर्वे से पता चली है. लेकिन इस बात के कोई आंकड़े नहीं हैं कि खिलौनों के कुल कारोबार में बंदूकों और लड़ाकू विमान जैसे खिलौना का कितना हिस्सा है.

वीडियो गेम्स का कोलोन मेला

जर्मनी में हर साल होने वाला खेल मेला गेम्सकॉम दरअसल गेम डेवलप करने वालों का मेला है. इस बार ये मेला कोरोना के साए में डिजिटल तरीके से हुआ. इसने डिजिटल गेमिंग को नई धार दी है. 31 मार्च तक पांच दिन चले मेले में करीब 20 लाख लोगों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया. कंप्यूटर और वीडियो गेम्स का ये अग्रणी मेला डिजिटल होने के कारण दुनिया भर के 180 देशों के लोगों को साथ लाने में कामयाब रहा. इस दौरान होने वाले बिजनेस प्लैटफॉर्म डेवकॉम में करीब 1000 कंपनियों के डेवलपरों और उनके साथ काम करने वाले लोगों ने हिस्सा लिया. करीब 3200 ऑनलाइन मीटिंगों में 45,000 दर्शक भी मौजूद थे.

वीडियो गेम्स में बढ़ती दिलचस्पीतस्वीर: DW/M. Smajic

जर्मनी में वीडियो और कंप्यूटर गेम्स का बाजार करीब 5 अरब यूरो का है. यह यूरोप की तुलना में भी तेजी से बढ़ता बाजार है. गेम्स हार्डवेयर की बिक्री में कमी आ रही है लेकिन गेम्स सॉफ्टवेयर की बिक्री बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर वीडियो गेम्स का बाजार करीब 82 अरब यूरो का है और 2025 तक इसके बढ़कर 90 अरब हो जाने का अनुमान है. इसमें मोबाइल गेम्स का हिस्सा करीब 50 अरब यूरो का होगा.

खिलौनों और वीडियो गेम्स दोनों को मिला दें तो बाजार करीब 200 अरब यूरो का है. प्रधानमंत्री ने खिलौनों पर ध्यान देने और भारतीय उद्यमियों को इनके विकास के क्षेत्र में आने का आह्वान कर जो पहल की है उसे अमल में लाने की जरूरत है. इस बाजार में हिस्सेदारी आसान नहीं है, भारत के कारीगरों और उद्यमियों के अलावा सरकार को भी प्रयास करना होगा और इसके लिए प्रशिक्षण, डेवलपमेंट क्लस्टर, कारखानों और ट्रांसपोर्ट का ढांचागत संरचना बनाना होगा.

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