भारत के कई शहरों में सार्वजनिक स्थलों की सफाई से जुड़े कड़े कानून बनाए गए हैं. क्या अब नहीं दिखेगा कचरा और पान की पीक. कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने पर उठ रहे हैं सवाल.
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कोलकाता की सड़कों पर थूकने या कचरा फेंकने वालों को एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है, वहीं महाराष्ट्र के पुणे शहर में ऐसा करने वालों की जान महज डेढ़ सौ रुपए में ही छूट सकती है. लेकिन इसके साथ ही उनको कचरे या पान और गुटखे की पीक खुद साफ भी करनी होगी. कोलकाता और पुणे नगर निगमों की ओर से नवंबर महीने में शुरू किए गए इन अलग-अलग अभियानों का कुछ शुरुआती असर तो नजर आ रहा है. लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठने लगा है कि यह कानून कितना असरदार साबित होगा. क्या सचमुच इससे इन दोनों शहरों को साफ करने में सहायता मिलेगी?
कोलकाता में अभियान
पश्चिम बंगाल विधानसभा की ओर से पारित एक नए कानून के तहत अब कोलकाता के लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर थूकना और कचरा फेंकना या फैलाना भारी पड़ेगा. ऐसा करने वालों को एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है. विधानसभा में पारित कोलकाता नगर निगम (द्वितीय संशोधन) अधिनियम के जरिए धारा 338 में किए गए संशोधन से अब जुर्माने की रकम बढ़ा दी गई है.
इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दक्षिणेश्वर में बने राज्य के पहले स्काईवाक पर पान व गुटखे की पीक फेंकने पर गहरी नाराजगी जताई थी. ममता ने हाल में ही उस स्काईवाक का उद्घाटन किया था. उसके बाद ही सरकार ने कानून में संशोधन का फैसला किया. नए विधेयक में कचरा फैलाने वालों पर जुर्माने की रकम बढ़ा कर न्यूनतम पांच हजार और अधिकतम एक लाख रुपए कर दी गई है. पहले इसके लिए न्यूनतम जुर्माना 50 रुपए और अधिकतम पांच हजार रुपए तक का प्रावधान था.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और कचरा फैलाने पर अंकुश लगाने के लिए 11 सदस्यों की एक समिति का गठन किया है. कोलकाता नगर निगम के नए मेयर फिरहाद हकीम बताते हैं, "महानगर को साफ-सुथरा रखने के लिए नगर निगम बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाएगा.”
पुणे मेंं अनोखी पहल
महाराष्ट्र के शहर पुणे के नगर निगम ने भी हाल में इसी तरह का अभियान शुरू किया है. इसके तहत कचरा फैलाने या पान व गुटखे की पीक थूकने वालों से जुर्माना तो डेढ़ सौ रुपए ही वसूला जाएगा. लेकिन ऐसा करने वालों को खुद ही गंदगी भी साफ करनी होगी. पुणे के सैनिटरी इंस्पेक्टर शिवाजी गायकवाड़ दोषियों से सवाल करते हैं, "क्या आप अपने घर में पान या गुटखा थूकते हैं? अगर नहीं तो फिर सड़क पर ऐसा क्यों करते हैं?” गायकवाड़ बताते हैं कि इस अभियान का खासा असर हो रहा है. अब तक जुर्माने के तौर पर 50 हजार से ज्यादा की रकम वसूली जा चुकी है. वह कहते हैं, "एक बार सड़क साफ करने वाला व्यक्ति कम से कम दोबारा ऐसी गलती नहीं करेगा. यही नहीं, शर्म की वजह से दूसरों को सड़क साफ करते देखने वाले लोग भी ऐसा करने की हिमाकत नहीं करेंगे.”
ये हैं भारत के सबसे स्वच्छ शहर
भारत सरकार के स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 के नतीजे आ चुके हैं. इस साल 4200 शहरों के आंकड़े जमा किए गए हैं और नागरिकों के मतों को ज्यादा तवज्जो दी गई है. जानिए कौन से शहर हैं सबसे स्वच्छ.
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अव्वल
आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 में भारत के सबसे साफ सुथरे शहरों में पहले नंबर पर रहा इंदौर. दूसरा स्थान मिला भोपाल को और तीसरा चंडीगढ़ को.
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श्रेणियां
आबादी के हिसाब से शहर तीन श्रेणियों में बांटे गए: दस लाख से अधिक आबादी वाले बड़े शहर, तीन से दस लाख की आबादी वाले मझोले शहर और एक से तीन लाख की आबादी वाले छोटे शहर.
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अलग अलग जोन
प्रांतीय राजधानियों और केंद्र शासित प्रदेशों की भी एक सूची तैयार की गई है. जोन के हिसाब से पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण की सूचियां भी बनाई गईं.
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सबसे साफ
बड़े शहरों में आंध्र प्रदेश का विजयवाड़ा को सबसे स्वच्छ घोषित किया गया. मझोले शहरों में यह खिताब मैसूरु को मिला, जबकि छोटे शहरों में नई दिल्ली का एनडीएमसी क्षेत्र सबसे स्वच्छ बताया गया.
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स्वच्छ राजधानी
सबसे स्वच्छ राजधानी का खिताब महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के नाम रहा. लगभग सवा करोड़ की आबादी वाला मुंबई देश की व्यावासयिक राजधानी भी कहा जाता है.
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फास्टेस्ट मूवर
सबसे तेजी से साफ हो रहे शहरों में यूपी का गाजियाबाद (बड़ा शहर), महाराष्ट्र का भिवांडी (मझोला शहर) और भुसावल (छोटा शहर) तथा राजस्थान के जयपुर (राजधानी) शामिल हैं.
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लोगों की राय
सिटीजन फीडबैक के अनुसार राजस्थान का कोटा (बड़ा शहर), महाराष्ट्र का परभणी (मझोला शहर), झारखंड का गिरिडीह (छोटा शहर) और रांची (राजधानी) सबसे स्वच्छ बताए गए हैं.
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नए आइडिया वाले
इनोवेशन एंड बेस्ट प्रैक्टिस की श्रेणी में सबसे आगे रहे: महाराष्ट्र का नागपुर, उत्तर प्रदेश का अलीगढ़, छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर और गोवा का पणजी.
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कैंटोनमेंट
सबसे स्वच्छ कैंटोनमेंट इलाका रहा दिल्ली का. इसके बाद नंबर आता है उत्तराखंड के अल्मोड़ा और रानीखेत का.
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सबसे स्वच्छ राज्य
जहां तक बात भारत के सबसे साफ राज्यों की है तो पहले नंबर पर झारखंड, दूसरे पर महाराष्ट्र और तीसरे पर छत्तीसगढ़ के नाम रहे.
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दरअसल, नगर निगम के सफाई विभाग के अधिकारी ऐसा करने वालों की तस्वीर खींच कर कुछ देर के लिए अपनी वेबसाइट पर भी डाल देते हैं. पुणे नगर निगम के ठोस कचरा प्रबंधन विभाग के प्रमुख ध्यानेश्वर मोलक कहते हैं, "महज जुर्माने से काम नहीं होते देख कर ही हमे दोषी लोगों से गंदगी साफ कराने का फैसला किया. इससे शर्म के मारे लोग दोबारा ऐसा नहीं करते.” वह बताते हैं कि अब तक किसी भी व्यक्ति को दोबारा नहीं पकड़ा गया है. निगम के डाटा बेस में इन दोषियों के आंकड़ों के मिलान से यह बात पता चली है. मोलक बताते हैं, "अभियान शुरू होने के बाद पहले आठ दिनों के दौरान ही 156 लोगों को पकड़ा गया था.”
सैनिटरी इंस्पेक्टर शिवाजी गायकवाड़ बताते हैं, "शहर के लोग हमारे अभियान की काफी सराहना कर रहे हैं. इससे लोगों में धीरे-धीरे ही सही, जागरुकता बढ़ रही है.”
कितना कारगर होगा
लेकिन इस नए कानून पर सवाल भी उठ रहे हैं. कोलकाता के लोगों का सवाल है कि नगर निगम पहले 50 रुपए का जुर्माना भी नहीं वसूल पाता था. अब नए कानून के तहत वह इतनी बड़ी रकम कैसे वसूल करेगा? एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुखअसीम सरकार कहते हैं, "सरकार ने कानून तो बना दिया है. लेकिन इसे लागू करने का कोई तंत्र नहीं विकसित किया है. ऐसे में इससे खास फायदे की उम्मीद नहीं है.” हालांकि कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम का दावा है कि निगम इसे कड़ाई से लागू करेगा. साथ ही बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान भी चलाया जाएगा. लेकिन आम लोगों व सामाजिक संगठनों को उनके दावे पर संदेह है. पुणे के औंध इलाके में रहने वाले हनुमंत रणदिवे कहते हैं, "यह सब चार दिन के चोंचले व प्रचार पाने का जरिया है.उसके बाद फिर सब कुछ जस का तस हो जाएगा.”
रस्सी पर लटकती सफाई कर्मचारियों की जान
गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियां साफ करना, यह सबसे जोखिम भरे कामों में से एक है. सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती. एक नजर इन सफाई कर्मचारियों की दुनिया पर.
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कोई कंमाडो सीन नहीं
यह किसी फिल्म का सीन नहीं है, बल्कि 110 मीटर की ऊंचाई पर खिड़कियां साफ करने वाले खास कर्मचारी हैं. साल में तीन बार प्रशिक्षित सफाई कर्मचारी हैम्बर्ग के एल्बफिलहार्मोनी इमारत की खिड़कियां साफ करते हैं.
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कड़ी मशक्कत का काम
नौ सफाई कर्मचारियों को पूरी इमारत की खिड़कियां साफ करने में तीन हफ्ते लगते हैं. इस दौरान उन्हें 16 हजार वर्गमीटर जितने बड़े इलाके को साफ करना होता है.
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ऊंचाई से डर नहीं
श्टेफान फाल्केबेर्ग के मुताबिक, "यह दुनिया का सबसे अच्छा काम है." 2017 में इस इमारत का उद्घाटन होने के बाद से श्टेफान इसकी सफाई का काम करते हैं. वह कहते हैं, "इस इमारत के ऊपर से गजब का नजारा दिखता है."
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सख्त नियम कायदे
दिन में श्टेफान जब अपने साथियों के साथ सफाई कर रहे होते हैं, उसी वक्त एल्बफिलहार्मोनी के भीतर संगीकार अपनी रिहर्सल कर रहे होते हैं. कानून के मुताबिक एक कर्मचारी रस्सी पर लगातार तीन घंटे से ज्यादा नहीं रह सकता. इसीलिए सफाई शिफ्ट में की जाती है और कर्मचारी एक दिन में अधिकतम छह घंटे ही काम कर सकता है.
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तेज हवा यानी खतरा
सफाई अभियान के दौरान हर वक्त मौसम पर नजर रखी जाती है. तेज हवा चलने या बारिश होने पर सफाई अभियान रोक दिया जाता है. श्टेफान के मुताबिक तेज हवा उन्हें इधर उधर पटक सकती है और बारिश के दौरान अच्छे से सफाई नहीं हो पाती.
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जीवनरक्षक उपकरण
सफाई कर्मचारी कई तरह के औजारों से लैस होते हैं. सुरक्षा के लिए हेल्मेट, खास दस्ताने, खास जूते और ड्रेस भी अलग तरह की होती है. इस दौरान कई तरह की रस्सियां, हुक और क्लाइंबिंग टूल्स भी उनके बदन पर लिपटे रहते हैं.
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हाई टेक सफाई
सफाई कर्मचारियों की छाती पर स्पेशल टेलिस्कोपिक रॉड रहती है, जो उन्हें कांच से चिपकाए रहती है. हुक के जरिए पीठ पर हाई प्रेशर वाला पानी का पाइप लटका रहता है. ताकतवर वॉटर स्प्रे और डिटरजेंट की मदद से कांच साफ किया जाता है.
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क्लीनिंग ट्रॉली
सैकड़ों मीटर ऊंची और कांच से लैस कुछ इमारतों की सफाई के लिए हैंगिंग ट्रॉली का भी सहारा लिया जाता है. वायर से लटकी और रिमोट से चलने वाली इस ट्रॉली में एक या दो सफाई कर्मचारी होते हैं, जो ऊपर नीचे या दाएं बाएं जाते हुए कांच की सफाई करते हैं.
रेस्क्यू ऑपरेशन
गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियां साफ करने में अकसर हादसे भी होते हैं. यह तस्वीर न्यूयॉर्क ही है, जहां सफाई के दौरान ट्रॉली का एक केबल टूट गया. सफाई कर्मचारी को कई घंटों की मशक्कत के बाद बचाया जा सका.
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सबके बस की बात नहीं
दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा हो या दूसरे गगनचुंबी ढांचे, साल में तीन से चार बार इनकी अच्छे ढंग से सफाई की जाती है, लेकिन इस काम को दुनिया भर में चुनिंदा लोग ही कर पाते हैं.