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समाज

खुद को नुकसान पहुंचाते समलैंगिक किशोर

२९ अगस्त २०१८

ब्रिटेन में करीब आधे समलैंगिक किशोर ऐसे हैं, जिन्होंने कभी न कभी खुद को नुकसान पहुंचाया है. एक नई स्टडी बताती है कि अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर जूझने वाले ये किशोर अपने जीवन से संतुष्ट नहीं होते.

Mexiko - Transgender
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Guttierrez

'द चिल्ड्रंस सोसायटी' की रिपोर्ट बताती है कि समलैंगिकों को नापसंद करने और बुलिंग किए जाने से एलजीबीटी युवाओं पर दबाव बढ़ रहा है जो पहले ही अपने लैंगिक झुकाव को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.

'द चिल्ड्रंस सोसायटी' में रिसर्च मैनेजर रिचर्ड क्रेलिन कहते हैं, ''आज भी एलजीटीबी समुदाय को कलंक माना जाता है''. उनके मुताबिक, ''कई ऐसे स्कूल हैं, जहां गे कहलाना अपमान माना जाता है. वहां सभी को साथ लेकर चलने का माहौल नहीं है और युवा लोग अपनी सेक्सुएलिटी को छिपाते हैं. उन्हें डर लगता है कि स्कूल का स्टाफ या सहपाठी उन्हें तंग करेंगे.''

हालांकि ब्रिटेन उन चुनिंदा देशों में एक से हैं जहां एलजीबीटी समुदाय को बराबर संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसके बावजूद युवाओं को अक्सर सेक्सुएलिटी के मामले में भारी दबाव सहना पड़ता है. स्टोनवॉल संस्था की पिछले साल की रिपोर्ट बताती है कि करीब आधे समलैंगिक छात्रों की बुलिंग की गई.

हाल में अमेरिका के कोलोराडो राज्य में अपने साथियों द्वारा बार-बार परेशान किए जाने के बाद एक नौ साल के लड़के ने अपनी जान दे दी. लड़के की मां लीया पियर्से ने स्थानीय मीडिया को बताया, ''मेरे बेटे ने मेरी सबसे बड़ी बेटी को बताया था कि उसके स्कूली साथियों ने उससे खुद की जान लेने के लिए कहा था.''

'द चिल्ड्रंस सोसायटी' ने साल 2015 में 14 साल के करीब 19 हजार किशोरों से मिली जानकारी का विश्लेषण किया. संस्था की रिपोर्ट बताती है कि समान लिंग के प्रति आकर्षण रखने वाले किशोरों और बाकी किशोरों के बीच खुशी के मामले में काफी अंतर था. एक चौथाई से ज्यादा समलैंगिक किशोर अपने जीवन से कम संतुष्ट थे. वहीं सर्वे में शामिल सभी लोगों के बीच यह आंकड़ा महज 10 फीसदी तक था.

करीब 40 फीसदी किशोरों में अत्यधिक डिप्रेशन के लक्षण पाए गए. रिपोर्ट कहती है कि कि सभी किशोरों में से करीब 15 फीसदी ने पिछले साल खुद को नुकसान पहुंचाया. वहीं समलैंगिक किशोरों में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 50 फीसदी के बराबर थी.

एलजीबीटी समुदाय के लिए काम करने वाली संस्था स्टोनवॉल का कहना है कि स्कूलों और अभिभावकों को मिल कर ऐसे बच्चों का साथ देना चाहिए. संस्था के प्रवक्ता के मुताबिक, ''अगर बुलिंग के मामलों को निपटा नहीं जाए तो आगे चल कर इसका युवाओं पर इसका लंबा और गहरा असर पड़ता है.''

वह आगे कहते हैं, ''हम ऐसे स्कूलों का बढ़ावा देंगे जो एलजीबीटी छात्रों की मदद करना चाहते हैं ताकि यह सुनिश्तिच हो सके कि डराने-धमकाने के मामलों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.''

वीसी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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