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"खुद को सक्षम करे भारत"

२६ जुलाई २०१४

भारत विश्व और दक्षिण एशिया में अपनी पैठ कैसे बढ़ा सकता है. सीमा पर ऐसे कौन मुद्दे हैं, जो भारत को जल्द से जल्द सुलझाने होंगे. जनरल अशोक मेहता (रिटायर्ड) ने डॉयचे वेले से बात की.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

डीडब्ल्यूः भारत की सीमाएं चीन, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से मिली हुई हैं. इस तथ्य को देखा जाए तो भारत की सुरक्षा स्थिति कितनी नाजुक है?

जनरल मेहता: भारत दुनिया में एकमात्र देश है जिसका अपने दो पड़ोसी देशों से सीमा को लेकर विवाद है. उसने दोनों से लड़ाइयां भी लड़ी हैं. और तीनों देश, भारत, चीन और पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं. इसलिए यह एक नाजुक सुरक्षा स्थिति है क्योंकि भारत के दो दुश्मन आपस में दोस्त हैं, यानी चीन और पाकिस्तान. यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है.

डीडब्ल्यूः मोदी सरकार ने चीन के प्रति अपना झुकाव दिखाया है. क्या इससे फर्क पड़ेगा?

अभी इसके बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी कि नई सरकार मोदी की अगुवाई में चीन के करीब जाएगी. हम वहां नहीं पहुंचे हैं. लेकिन हो सकता है कि भारत अपनी भाषा कड़ी करे, अपनी मूलभूत संरचना को तेजी से विकसित करे, खास तौर से चीन की सीमा पर. हाल ही में 74 सड़कों को बनाकर खत्म करने की बात है. इसके लिए पैसे भी हैं.

हमने देखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने ताइवान सरकार के प्रतिनिधि को बुलाया. भारत ताइवान को अलग देश के तौर पर मान्यता नहीं देता क्योंकि भारत एक चीन वाली नीति का सम्मान करता है. फिर तिब्बत सरकार के भी प्रधानमंत्री पहुंचे. पुरानी सरकार ऐसा कभी नहीं करती.

डीडब्ल्यूः तो क्या 'दोस्ती पर भरोसा' नहीं करने से आपका यही मतलब है?

भारत को अपने को सक्षम करना है. कड़े शब्दों से कुछ नहीं होगा, कुछ करने की क्षमता भी होनी चाहिए. चीन के स्तर तक पहुंचने के लिए मूलभूत संरचना बेहतर करनी होगी. अपने परमाणु हथियारों की पहुंच को बढ़ाना होगा और सरहद पर लड़ाई करने की क्षमता बढ़ानी होगी. मुझे लगता है कि यह काम अब पहले से ज्यादा तेजी से होगा.

जनरल अशोक मेहता (रिटायर्ड)तस्वीर: DW/M. Jha

डीडब्ल्यूः तो क्या आपको लगता है कि सरकार सुरक्षा और व्यापार को अलग रखेगी?

पहले भी ऐसा ही था. चीन के साथ सीमा विवाद को परे हटाकर विश्वास बढ़ाने वाले कदमों पर ध्यान दिया है, व्यापार पर ध्यान दिया है. व्यापार में भी भारत को घाटा है, इसे सही करना होगा. लेकिन सामान्य ज्ञान जो कहता है, कि व्यापार करने से राजनीतिक संबंध बेहतर होते हैं, ऐसा आम तौर पर नहीं होता है. चीन और जापान के बीच भी नहीं.

यह सरकार व्यापार और राजनीति अलग रख रही है लेकिन उसने कहा है कि चीन को नियंत्रण रेखा नहीं लांघनी चाहिए. भारत ने यह भी कहा है कि सीमा विवाद को खत्म करना होगा, जल्द से जल्द.

डीडब्ल्यूः क्या आपको लगता है कि मोदी अपने समारोह के दौरान सार्क देशों के प्रतिनिधियों को बुलाकर चीन को एक संदेश भेज रहे थे?

कोशिश तो यही है. सार्क बहुत ही ढीला संगठन है और भारत और पाकिस्तान के बीच के मसले हमेशा इस संगठन के काम में अडंगा डालते आए हैं. मोदी कहना चाहते थे कि देश को स्थिर रखने के लिए क्षेत्र को स्थिर रखना होगा. उन्होंने विकास और बढ़ोत्तरी, इन दो शब्दों का इस्तेमाल किया. और अगर भारत आगे बढ़ना चाहता है तो क्षेत्र में शांति की जरूरत होगी.

यह सब अपनी जगह है लेकिन जब तक पाकिस्तान के साथ मुद्दे हल नहीं होते, तब तक कोई फर्क नहीं पड़ेगा. वहीं चीन के सारे सार्क देशों से अच्छे संबंध हैं. नेपाल, मालदीव के तो हमारे मुकाबले चीन के साथ बेहतर रिश्ते हैं.

डीडब्ल्यूः क्या सार्क एक होने के लिए कुछ नए कार्यक्रमों की योजना बना रहा है?

अंतरराष्ट्रीय शांति सैनिकों में 40 प्रतिशत सार्क देशों से आते हैं. इनमें अच्छे सैनिक होते हैं, जिनकी अच्छी ट्रेनिंग होती है जिनके पास बहुत अनुभव है, जिन्होंने आतंकवाद से लड़ाई लड़ी है. यह अंतरराष्ट्रीय इलाकों की परेशानियां समझते हैं. बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान के सैनिक विकास की परेशानी समझते हैं, उन्हें उपनिवेशवाद के बारे में पता है. वह वहां की संस्कृति समझते हैं. अगर इसे सार्क देशों के एजेंडे में डाला जाए तो देशों में इस बारे में बहस होगी.

हालांकि सार्क समझौते के मुताबिक सुरक्षा पर बात नहीं हो सकती है. लेकिन शांति सैनिक एक नर्म मुद्दा है. इसमें शांति की बात हो रही है, लड़ाई की नहीं. हो सकता है कि सार्क देशों को इस मुद्दे पर बात करने में दिक्कत न हो.

इंटरव्यूः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनःओंकार सिंह जनौटी

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