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खूनखराबे से बढ़ा मिस्र संकट

८ जुलाई २०१३

काहिरा में रिपब्लिकन गार्ड के मुख्यालय के बाहर गोलीबारी में 35 लोगों के मरने की खबर स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी है. मुस्लिम ब्रदरहुड ने मिस्रवासियों से क्रांति "चुराने की चाहत" रखने वालों के खिलाफ खड़े होने की अपील की है.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo

मिस्र में खूनखराबे ने राजनीतिक संकट बढ़ा दिया है. मुस्लिम ब्रदरहुड का कहना है कि मुहम्मद मुरसी को सेना की जिस इमारत में रखा गया है उस के बाहर उनके समर्थकों पर गोलीबारी की गई. सेना का कहना है कि "एक आतंकवादी गुट" रिपब्लिकन गार्ड के परिसर पर हमला किया जिसमें सेना का एक अधिकारी मारा गया और 40 घायल हो गए.

सेना के सूत्रों ने खबर दी है कि हथियारबंद हमलावरों पर इसके बाद सैनिकों ने हमला किया. ब्रदरहुड के प्रवक्ता गेहाद अल हद्दाद का कहना है कि 37 मुरसी समर्थक मारे गए हैं. उनका कहना है कि फायरिंग सुबह सुबह की गई, जिस वक्त लोग नमाज अदा कर रहे थे और रिपब्लिकन गार्ड बैरक के बाहर शांतिपूर्ण धरना दे रहे थे. सेना की गाड़ियों ने राबा अदाविया मस्जिद के आसपास के बड़े इलाके को गाड़ियों से सील कर दिया है और यहां आवाजाही बंद है. मुस्लिम ब्रदरहुड के वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में मुरसी समर्थक उन्हें सत्ता से हटाए जाने के बाद यहीं डटे हुए हैं. सेना ने नील नदी पर दो मुख्य पुलों को भी बख्तरबंद गाड़ियों की सहायता से सील कर दिया है. मिस्र की सेना या सेना का मिस्र

तस्वीर: Reuters

इन सबका तात्कालिक असर यह हुआ कि कट्टरपंथी इस्लामी नूर पार्टी जो पहले सेना के दखल का समर्थन कर रही थी उसने नए चुनाव कराने के लिए अंतरिम सरकार बनाने पर बातचीत से खुद को बाहर कर लिया है. वैसे नई सरकार बनाने के लिए बातचीत पहले ही संकट में है. नूर पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए आदली मंसूर के सुझाए दो उदारवादी नामों को खारिज कर दिया. मिस्र में नूर इस्लामियों की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है और ऐसे में नए प्रशासन को इस्लामियों के समर्थन के लिहाज से बेहद जरूरी है. पार्टी के प्रवक्ता नादिर बाकर ने एलान किया है, "हर तरह की बातचीत से बाहर होना हमारी पहली प्रतिक्रिया है."

अरब में सबसे ज्यादा करीब 8.4 करोड़ की आबादी वाले देश में हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के बीच ज्यादा देर तक राजनीतिक शून्य की स्थिति सेना के लिए भी सहन करना मुश्किल है. काहिरा, सिकंदरिया और देश भर के दूसरे शहरों में मुरसी के समर्थकों और विरोधियों के बीच सड़कों पर झड़पों ने मिस्र के सहयोगी देशों को चिंता में डाल रखा है. इनमें अमेरिका, यूरोप और इस्राएल जैसे देश शामिल हैं जो 1979 में शांति समझौते के बाद से ही मिस्र की आर्थिक मदद कर रहे हैं.

तस्वीर: Getty Images

मंगलवार से रमजान शुरू हो रहा है और सेना चाहती है कि उससे पहले विरोध प्रदर्शन बंद हो जाएं. हालांकि सोमवार की घटना से पहले ही बहुत से लोग विरोध में जान देने पर भी उतारू हो गए. सेना की इमारत के बाहर धरने पर बैठी मुरसी समर्थक 55 साल की अली अल सावी का कहना है, "जब तक मुरसी नहीं लौटते हम नहीं जाएंगे, या फिर शहीदों की तरह जान दे देंगे." सावी अपने पांच बच्चों के साथ सख्त गर्मी में सेना के बैरक के बाहर बैठी हैं और कांटेदार तारों के पीछे से सेना के जवान उन्हें देख रहे हैं.

एनआर/एजेए (रॉयटर्स)

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