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खूनी विद्रोह में 723 जवानों को सजा

२० अक्टूबर २०१२

खूनी विद्रोह के दोषी बांग्लादेशी रायफल्स के 723 जवानों को जेल की सजा. तीन साल पहले हुआ विद्रोह बांग्लादेश के इतिहास का सबसे बड़ा मुकदमा है. यह ऐसा मामला है जिसने भारत जैसे देश को भी चिंता में डाल दिया.

तस्वीर: DW

2009 के विद्रोह में शामिल जवानों को 'विद्रोह में शामिल होने और उसकी अगुवाई करने' का दोषी करार दिया गया. तीन साल की कानूनी कार्रवाई के बाद शनिवार को अदालत ने 723 जवानों को सजा सुनाई. सरकारी वकील गाजी जिलुर रहमान के मुताबिक, "सभी 735 सीमा सुरक्षा बलों पर आरोप लगाए गए थे. सुनवाई के दौरान दो की मौत हो गई और 10 को बरी कर दिया गया. 723 को दोषी करार दिया गया, 64 जवानों को सात साल जेल की सजा दी गई." मुकदमे की सुनवाई सैन्य अधिकारियों की अध्यक्षता वाली अदालत में चली. सुनवाई में आरोपियों को कोई वकील नहीं दिया गया.

विद्रोह से जुड़े कुछ और केस अब भी अदालत में हैं. 86 जवानों पर हत्या का मुकदमा चल रहा है. इन मुकदमे की सुनवाई अलग नागरिक अदालत में चल रही है. ये आरोपी मौत की सजा का सामना कर रहे हैं.

बहरहाल शनिवार के फैसले के बाद एक अन्य वकील मोशर्रफ होसैन ने कहा कि विद्रोह में कुल 5,926 सैनिक दोषी करार दिये हैं. होसैन ने कहा, "आज के फैसले से बीडीआर विद्रोह मामले का अंत हो गया है. देश भर में बीडीआर की सभी 57 बटालियनो के 6,046 सैनिक इस सुनवाई का हिस्सा रहे. देश के इतिहास में यह सबसे बड़ा मुकदमा है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

खूनी विद्रोह

विद्रोह की शुरुआत 25 फरवरी को पिलखाना में बीडीआर के मुख्यालय से हुई. उन दिनों बीडीआर सप्ताह मनाया जा रहा था. मुख्यालय में डायरेक्टर जनरल शकील अहमद अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान कुछ हथियारबंद जवान आए. वे कमांडिग अफसरों और जवानों को समान अधिकार दिए जाने के नारे लगाने लगे. इस दौरान जवानों ने सभी अधिकारियों को सभागार में ही बंधक बना लिया. थोड़ी देर बाद मुख्यालय में फायरिंग शुरू हो गई. रातों रात विद्रोह देश के 12 शहरों में फैल गया. जवान अफसरों से भिड़ पड़े. विद्रोहियों ने बीडीआर के मुख्यालय पर कब्जा कर लिया. गुस्साए जवानों ने 57 वरिष्ठ अधिकारियों की हत्या कर दी. मृतकों में बीडीआर के डायरेक्टर जनरल भी थे.

बिगड़ते हालात देख यह भी आशंका जताई जाने लगी कि बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलट हो सकता है. शेख हसीना को बचाने के लिए भारत अपने विमानों का विशेष दस्ता ढाका भेजने को तैयार था.

विद्रोह के दूसरे दिन सरकार ने विद्रोहियों से बातचीत शुरू की. विद्रोहियों ने 22 मांगे रखीं. इस बीच बांग्लादेश की सेना बीडीआर के मुख्यालय को टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों से घेर लिया. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हथियार न डालने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही. 26 फरवरी की शाम सेना ने बॉर्डर सिक्योरिटी गार्ड के विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. शाम होते होते हालात शांत होने लगे.

तीसरे दिन से सेना ने विद्रोहियों को खोज खोजकर पकड़ना शुरू किया. 200 से ज्यादा जवानों को गिरफ्तार किया गया. जांचकर्ताओं के मुताबिक अब भी कुछ आरोपी हाथ नहीं आए हैं. बांग्लादेश को शक है कि कुछ विद्रोही भारत में छुपे हुए हैं. ढाका ने फरार विद्रोहियों को पकड़ने में भारत से मदद भी मांगी है.

पाकिस्तान के विभाजन से बना बांग्लादेश अब विद्रोह की यादों मिटाना चाहता है. सीमा सुरक्षा बल की इस कमान का नाम भी बदल दिया गया है. कड़वी यादों से पीछा छुड़ाने के लिए बीडीआर का नाम बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश यानी बीएजी कर दिया गया है.

ओएसजे/आईबी (एएफपी)

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