1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

खून से सने सीरिया का एक साल

१५ मार्च २०१२

सीरियाई लोगों को तुर्की भागने से रोकने के लिए सीमा पर बारूदी सुरंगें, शहरों से मिलने वाली लाशें जिन पर अत्याचार के निशान मौजूद हैं. सीरिया में साल भर से चल रही है असद के खिलाफ लड़ाई.

तस्वीर: AP

ट्यूनीशिया में सत्ताधारियों के खिलाफ शुरू हुई चिंगारी ने मिस्र और लीबिया को चपेट में ले लिया और लपटें सीरिया तक भी पहुंचीं. लेकिन लोकतंत्र की आहट का वहां दूर दूर तक निशान नहीं है. मिस्र के बाद लीबिया में गद्दाफी को हटाने में विद्रोहियों सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सांसें फूल गईं. आखिरकार गद्दाफी को मार डाला गया. वहां से सबक लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों ने सीरिया में फूंक फूंक कर कदम रखना ही उचित समझा.

सीरिया में सरकार के विरोध में जो संघर्ष शुरू हुआ वह गृह युद्ध जैसी हालत में बदल गया. हजारों की मौत. लेकिन हिंसा खत्म होने का दूर दूर तक निशान नहीं.

कैसे हुई शुरुआत

दमिश्क में राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ छात्रों की रैली से विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हुई. भाषण का मजमून कुछ ऐसा था, "आतंकियों के साथ कोई समझौता नहीं. हथियार लिए ये अफरातफरी फैला रहे हैं. इनके साथ कोई समझौता नहीं. इन लोगों ने दूसरे देशों के साथ मिल कर हमारे खिलाफ साजिश की है."

लेकिन असद और उनकी सरकार के लिए आतंकवादी वो स्कूली बच्चे हैं, जो दीवारों पर आजादी के नारे लिखते हैं. इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. असद के खिलाफ संघर्ष तेज होने का कारण था कि माता पिता अपने बच्चों की रिहाई की मांग कर रहे थे. "असद को फांसी" के नारों के साथ देश भर में आंदोलन तेज हुआ. और दमन चक्र भी. निहत्थों पर गोली, हर किसी की गिरफ्तारी और अत्याचार. दमिश्क के विश्लेषक थाबेत सलेम कहते हैं, "अगर लोगों को अपनी बात कहने की आजादी होती तो असद को कभी बहुमत नहीं मिलता. खासकर यह सब होने के बाद. हमें औपचारिक सर्वे की जरूरत है लेकिन मेरा मानना है कि असद के पीछे सिर्फ 30-35 फीसदी लोग हैं."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पर्याप्त विरोध नहीं

असद ने नए संविधान, पार्टी और चुनाव के वादे तो किए लेकिन इतनी हिंसा और सेना के हमलों के बाद इनका कोई मतलब नहीं. हालांकि पूरा सीरिया विद्रोह और असद विरोध के जोश में नहीं है. बेरूत में अमेरिकी यूनिवर्सिटी में सीरिया के जानकार हिलाल खशान कहते हैं, "सीरियाई धार्मिक हैं और कई जातियों में बंटे हैं. विपक्ष में सहमति नहीं है. राष्ट्रीय परिषद भी एकमत नहीं है." वैश्विक समुदाय भी एकमत नहीं, वह सीरिया में कदम नहीं रखना चाहता. उनके हिसाब से अरब देशों को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए. सीरिया के मित्र रूस और चीन बाकी देशों से अलग मुंह करके खड़े हैं. लेकिन अरब देश भी सीरिया के मामले में एक जैसा नहीं सोचते. कुछ असद को एक मौका और देना चाहते हैं, अल्जीरिया और लेबनान जैसे देश उसके साथ हैं और बाकियों का पता नहीं. कुल मिला कर असद की ताकत उनके विरोधियों की कमजोरी है और जनता का ध्रुवीकरण है."

बेबस अंतरराष्ट्रीय समुदाय

अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास असद के खिलाफ कुछ नहीं है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्ताव पर चीन और रूस ने दोनों बार वीटो कर दिया. उनका आश्वासन सीरिया के साथ है, वह उस देश में हथियार बेच रहे हैं. रूस और चीन लीबिया मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई से भी नाराज थे.

उधर आधुनिक हथियारों और टिप टॉप आर्मी में असद के अलावी शिया समुदाय के लोग है. वह हमेशा ध्यान रखते हैं कि सब मुट्ठी में रहें. असद अपने समर्थकों पर भरोसा कर सकते हैं. यह वे कुर्द, ईसाई, दुर्ज और सुन्नी संभ्रात वर्ग के लोग हैं जिन्हें मुंह बंद रखने के लिए पैसा मिला है.

तो यह विद्रोह कितना बड़ा है, दुनिया से कटा हुई सरकार में अटकलों का बाजार गर्म है. कई सीरियाई लोगों का भविष्य अनिश्चित है. पश्चिमी देशों के उपाय, अरब लीग का मरहम किसी काम नहीं आ रहा है. एक ऐसा विपक्ष है जो हत्यारी सरकार के साथ बातचीत नहीं करना चाहता. ऐसी स्थिति में बिना तकलीफ के कोई हल संभव नहीं है.

रिपोर्टः उलरिष लाइडहोल्ट (डॉयचे वेले)/आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें