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खेल सफल हो भी जाएं, फायदा होता है क्या?

८ अक्टूबर २०१०

बड़े खेलों का आयोजन यह कह कर किया जाता है कि आर्थिक रूप से बहुत फायदा होगा और देश को नाम मिलेगा. क्या ये फायदे असल में मिल पाते हैं. बीजिंग या दक्षिण अफ्रीका या सोल को वह सब मिला जिसकी उम्मीद थी?

तस्वीर: UNI

भारत में कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन को लेकर जबरदस्त उत्साह रहा. हालांकि उसे इस आयोजन से पहले काफी किरकिरी भी झेलनी पड़ी लेकिन तब भी इसे देश के लिए गर्व और गौरव की बात कहकर प्रचारित किया गया. जब भी दुनिया में किसी शहर में इस स्तर की खेल प्रतियोगिता का आयोजन होता है तो इसी तरह की बातें सामने आती हैं. लेकिन क्या वाकई इस आयोजन से शहर को, देश को या समाज को कोई फायदा होता है?

भारत के लिए तो यह आयोजन इसलिए उलटा पड़ा क्योंकि उसने सही तरीके से तैयारी ही नहीं की. भारत उम्मीद कर रहा था कि इन खेलों के जरिए वह अपनी ताकत को दुनिया के सामने पेश करेगा और उसकी छवि एक मजबूत देश की बनेगी. उसके सामने 2008 के बीजिंग ओलिंपिक का उदाहरण भी था और खुद को चीन से बेहतर साबित करने का मौका भी. लेकिन पासा पलट गया और जो राष्ट्रीय गर्व का विषय कहा जा रहा था उसे राष्ट्रीय शर्म का विषय बनने से बचाने के लिए दौड़भाग करनी पड़ी.

तस्वीर: AP

अमेरिका के रोड आईलैंड में नेवल वॉर कॉलेज में पढ़ाने वाले निकोलस ग्वोसदेव इसे अलग तरह से देखते हैं. वह कहते हैं, "भारत की समस्या खराब पब्लिक रिलेशंस बना. इसी वजह से आज वह चीन से कम काबिल नजर आ रहा है."

आयोजक अब भी कह रहे हैं कि समस्याएं छोटी मोटी ही हैं लेकिन भारत ने इस आयोजन के जरिए अपनी बेहतर छवि पेश करके निवेशकों को लुभाने का जो सपना देखा था, उसमें जरूर रोड़े अटक गए हैं. राजनीतिक विश्लेषक रेबेका जैक्सन कहती हैं, "यह संभव है कि कॉमनवेल्थ खेलों का मुद्दा भारत में निवेश के माहौल की खराब छवि पेश करे."

इसके बावजूद बहुत से विश्लेषक सवाल उठाते हैं कि खेलों के सफल हो जाने से भी कितना फायदा होता होगा. बेहद सफल आयोजनों में गिने जाने वाले बीजिंग ओलंपिक या 1988 के सोल ओलंपिक या फिर इस साल का दक्षिण अफ्रीका का फुटबॉल विश्व कप भी अपने देश को कितना फायदा पहुंचा पाया? विश्लेषक कहते हैं कि सफलता की भी अपनी समस्याएं हैं. ब्रिटेन के पूर्व राजनयिक क्रिस्टोफर मेयर कहते हैं, "इस तरह के विशाल खेल आयोजनों से निवेश के मामले में ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता जो बहुत ज्यादा लंबे समय तक टिका रहे."

तस्वीर: picture alliance / dpa

इस मामले में दिल्ली के आयोजक एथेंस ओलंपिक की मिसाल पेश करते हैं. 2004 के इन खेलों को लेकर ग्रीस पर खूब छींटाकशी हुई थी लेकिन बाद में ये सफल साबित हुए. हालांकि इन पर जो खर्च हुआ वह भी ग्रीस के उस आर्थिक संकट की एक वजह बना जिसने पूरे यूरोप को हिला दिया.

दक्षिण अफ्रीका भी इसकी एक मिसाल है.स्टैंडर्ड चार्टर्ड बेंक की मुख्य अफ्रीकी अर्थशास्त्री रजिया खान कहती हैं, "फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन से दक्षिण अफ्रीका को जितना फायदा हुआ उतना कम ही आयोजकों को मिलता है. उसे खूब नाम मिला. लेकिन आर्थिक फायदों की जहां तक बात की है तो शायद ही उनकी उम्मीद पूरी हो." दक्षिण अफ्रीका का कहना है कि फुटबॉल ने देश के सालाना विकास में 0.4 फीसदी हिस्सा जोड़ा. उधर बीजिंग में तो संभवतया आर्थिक नुकसान ही हुआ क्योंकि प्रदूषण कम करने के लिए बहुत से कारखाने कुछ समय के लिए बंद करने पड़े.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः आभा एम

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