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गंगा की सफाई के दावे में कितना दम है?

शिवप्रसाद जोशी
१४ मई २०१८

गंगा के अपार प्रदूषण, उसके व्यवसायीकरण और सफाई के एक के बाद एक अभियानों के बीच केंद्र सरकार का दावा है कि मार्च 2019 तक गंगा 80 फीसदी तक साफ हो जाएगी. गंगा की गंदगी को देखकर ये लक्ष्य उम्मीद से अधिक संदेह पैदा करता है.

Indien Ganges ghats von Haridwar
तस्वीर: DW/R. Chakraborty

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि गंगा 70-80 प्रतिशत साफ हो जाएगी. उनके मुताबिक ये कहना गलत है कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत कुछ खास काम नहीं हुआ क्योंकि चार साल में अभियान के नतीजे दिखने लगे हैं. राष्ट्रीय गंगा सफाई मिशन (एनएमसीजी) के तहत करीब 21 हजार करोड़ रुपए की कुल 195 परियोजनाएं संबद्ध राज्यों में चलाई जा रही हैं. सरकार का दावा है कि सफाई के वृहद अभियान का ही नतीजा है कि गंगा के जलस्तर में उसकी सेहत का अंदाजा लगाने वाले तीन पैमानों पर सुधार हुआ है- बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), डिसॉल्व्ड ऑक्सीजन (डीओ) और कोलिफोर्म. 2016 के मुकाबले 2017 में गंगा प्रवाह के 80 स्थानों पर जलस्तर में सुधार पाया गया. 33 जगहों पर डीओ स्तर बेहतर हुआ है तो 26 जगहों पर बीओडी लेवल सुधरा है. तीस जगहों पर कोलीफोर्म बैक्टीरिया काउंट में गिरावट आई है. लेकिन 2500 किलोमीटर लंबी नदी के लिए ये आंकड़ा पर्याप्त नहीं है.

जानकारों को इस दावे पर संदेह है. मार्च 2019 तक गंगा के 80 फीसदी साफ हो जाने की बात भी उनके गले नहीं उतर रही है. उनका कहना है कि अगले 11 महीनों में इतनी सफाई हो जाने का लक्ष्य वास्तविक नहीं लगता है. गडकरी से पहले उमा भारती के पास गंगा के पुनरुद्धार का प्रभार था लेकिन उन्हें हटाकर गडकरी को इसका दायित्व सौंपा गया जो अपने नए कार्यकाल के कुछ ही महीनों में कह रहे हैं कि अगले साल तक गंगा साफ है.

गडकरी ही हैं जिन्होंने गंगा वॉटर वे का झंडा बुलंद किया हुआ है. और उन्होंने ही ये प्रस्ताव दिया था कि गंगा मार्ग के हर 50 किलोमीटर पर एक बैराज बनाया जाए. ये बैराज फिर जलमार्ग के काम आएंगे. इसका प्रस्ताव विश्व बैंक को भी भेजा गया. ये अब निर्विवाद है कि बैराजों के निर्माण को विश्वस्तर पर जानकार और सरकारें खारिज करती रही हैं क्योंकि उन्हें प्रवाह को अवरुद्ध करने, सिल्टेशन और बाढ़ का बड़ा कारण माना जाता है. एक तरह से गडकरी गंगा के मैनेजर बनकर आए हैं. जबकि गंगा को क्लीनर चाहिए.

माना रहा है कि सिर्फ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बना देने से समस्या का हल नहीं हो जाता है. और अगर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की ही बात करें तो एनएमसीजी के तहत 2311 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) सीवेज सफाई का लक्ष्य रखा गया था लेकिन अभी सिर्फ 11 प्रतिशत सफाई क्षमता ही विकसित हो पाई है. यानी 259 एमएलडी सीवेज. बड़े पैमाने पर गंदगी और मलबा गंगा में अब भी जा रहा है. कुल 100 प्लांट बनाए जाने हैं. और अब तक कुल 49 प्लांट ही बने हैं. गंगा सफाई मिशन के मुताबिक 100 सीवेज ट्रीटमेंट प्रोजेक्ट के तहत 43 प्रोजेक्ट पुराने हैं जो 2015 से पहले शुरू हो चुके थे, बाकी 57 नये हैं. पुराने 43 प्रोजेक्टों में से 17 तैयार हो चुके हैं और इनकी क्षमता 259 एमएलडी की है. सीवेज ट्रीटमेंट के नाम गंगा सफाई अभियान की एक बड़ी धनराशि आवंटित की गई है लेकिन इसका 17 प्रतिशत ही इस्तेमाल हो पाया है.

13 मई 2015 को नमामि गंगे परियोजना को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी. पांच साल की अवधि के भीतर गंगा की सफाई के लिए ये करीब 21 हजार करोड़ रुपए की विराट कार्ययोजना थी. असल में गंगा की सफाई के लिए एक बहुआयामी नजरिया चाहिए और सबसे महत्त्वपूर्ण काम ये है कि गंगा में ताजा पानी का प्रवाह बना रहे जिससे प्रदूषण में गिरावट आ सके. इस बीच केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि गंगा पर नए बांध नहीं बनाए जाएंगे. लेकिन कॉरपोरेट जगत की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं नए रास्ते बना ही लेती हैं. पिछले दिनों डॉयचे वेले के एक ब्लॉग में बताया गया था कि किस तरह गंगा जल मार्ग के लिए भारी निवेश किया जा रहा है और बहुराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियां वाराणसी से हल्दिया तक गंगा वॉटर वे पर काम शुरू कर रही हैं.

इस वॉटर वे के लिए गंगा किनारे निर्माण प्रक्रियाएं शुरू हो चुकी हैं और गंगा अब एक नए किस्म के मलबे से घिर रही है. धार्मिक जड़ता और अंधविश्वासों और फैक्ट्रियों से उत्पन्न प्रदूषणों और अपने किनारों के ठिकानों के कचरों से गंगा पहले ही अवरुद्ध है. इस नदी को मोक्षदायिनी कहकर अनुष्ठानिक या मुनाफादायिनी कहकर कॉरपोरेटी प्यास बुझा लीजिए लेकिन सच्चाई ये है कि गंगा को वर्षों से खुद अपनी मुक्ति की तलाश है. एक नदी की सफाई का अभियान उसका जीवन लौटाने का अभियान होना चाहिए, उसे निवेश के नए प्रवाहों पर मोड़ने का अभियान नहीं.

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