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गंगा डॉल्फिन भारत का जल जीव घोषित

१९ मई २०१०

लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके गंगा डॉल्फिन को भारत का जल जीव घोषित कर दिया गया है. गंगा डॉल्फिन को बचाने की मुहिम तेज कर दी गई है. पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने यह एलान किया.

भारत का गंगा डॉल्फिन

रमेश ने कहा कि गंगा डॉल्फिन की प्रजाति खतरे में है और उसे राष्ट्रीय जल जीव घोषित करने के साथ सरकार लोगों में जागरूकता बढ़ाना चाहती है. साथ ही भारत सरकार उसकी रक्षा के लिए समर्थन जुटाना चाहती है. रमेश का मानना है कि इस कदम के साथ युवा पीढ़ी में डॉल्फिन के संरक्षण और उन्हें बचाए रखने की भावना जग सकेगी. हाल ही में बिहार में गंगा नदी के किनारे चार ऐसे डॉल्फिन मरे हुए पाए गए थे.

तस्वीर: AP

रिपोर्ट है कि शिकारियों ने इन डॉल्फिनों को जाल में फंसा कर तब तक पीटा, जब तक उनकी मौत न हो गई हो. डॉल्फिनों के पोस्ट मार्टम से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि उन्हें मारा गया था. डॉल्फिन की चर्बी से तैयार होने वाला तेल बेहद कीमती होता है और इसकी लालच में शिकारी गंगा डॉल्फिन का शिकार करते हैं. अवैध शिकार की वजह से भारत में इन डॉल्फिनों की संख्या सिर्फ 2000 रह गई है.

भारत में 1972 के वन संरक्षण कानून में ही इन डॉल्फिनों को लुप्त होने के कगार पर बताया गया था. गंगा डॉल्फिन उन चार डॉल्फिनों की जाति में से है, जो सिर्फ मीठे पानी यानी नदियों और तालाबों में पाए जाते हैं. गंगा डॉल्फिन गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना, कर्णफुली और संगू नदियों में पाया जाता है.

तस्वीर: Pascal Kobeh

चीन में यांग्त्से नदी में बायजी डॉल्फिन, पाकिस्तान में सिंधु नदी में भुलन डॉल्फिन और दक्षिण अमेरिका में अमेजन नदी में बोटो भी डॉल्फिन पाए जाते हैं, जो खत्म होने के कगार पर पहुंच चुके हैं. समुद्र में डॉल्फिनों की दूसरी जातियां होती हैं. 2006 में विशेषज्ञों ने चीन के मीठे पानी में पाए जाने वाले डॉल्फिन को विलुप्त बताया.

मीठे पानी के डॉल्फिन कई कारणों से खतरे में हैं. उनके तेल को पाने के लिए अवैध शिकार के अलावा वह मछुआरों की जालों में भी फंस कर मर जाते हैं. इसके अलावा नदियां प्रदूषित होती जा रही हैं और बांध बनाने की वजह से वह एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और उनका प्रजनन नहीं हो पाता. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत के स्थानीय संगठनों के साथ मिल कर यहां के डॉल्फिनों को बचाने की पहल की है.

रिपोर्टः पीटीआई/प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः ए जमाल

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